Friday 29 April 2011

  चरण पादुका की अभिलाषा
          (स्व.) माखनलाल चतुर्वेदी से क्षमा याचना सहित

चाह नहीं मैं विश्व सुंदरी के पग में पहना जाऊं
चाह नहीं अब सम्राटों के चरणों में डाला जाऊं
चाह नहीं अब बड़े मॉल में बैठ भाग्य पर इठलाऊं
                मझे पैक करना तुम बढ़िया, उसके मुँह पर देना फैंक
                चले शान से जो तिहाड़ की राह, बेचकर अपाना देश

Tuesday 19 April 2011

  व्यंग्य 

  अनुवाद व उच्चारण में हिन्दी
स दिन खुश तो बहुत थे वे | पर शाम को
 उनकी खुशियाँ कार्यालयों के एक दिनी हिन्दी दिवसीय
उत्साह या  जीतेजी उपेक्षित मगर  श्राद्ध पक्ष में एक दिन
 तस्वीरों पर हार बदले जाने का सम्मान  पाने वाले मरहूमों
 की तरह काफूर हो गईं | नए-नए मित्र बने  बेनर्जी बाबू
 ने उन्हें शाम को अपने यहाँ 'भोजन' के लिए आमंत्रित
किया था | वे शाम को उनके घर सपरिवार 'मत्स्य-
भक्षण' का मन बनाकर पहुँचे तो देखते हैं कि हॉल का
 फर्नीचर हटाकर जमीन पर बैठक व्यवस्था  की गई है
और वहाँ तबला हारमोनियम आदि रखे हुए हैं | यानी
 बांग्लाभाषी बेनर्जी बाबू ने उन्हें 'भजन'  के लिए आमंत्रित
 किया था न कि 'भोजन' के लिए | यह और बात है कि बाबू
मोशाय ने उन्हें 'रोबिन्द्रो शोंगीत'  की मधुरता में डुबाकर  न
 सिर्फ भूख के अहसास से बचाया,बल्कि उन्हें  'जोल'
 और चाय भी 'खिलाई ' | मेरे एक तेलुगूभाषी मित्र हर वर्ष
 फरवरी-मार्च   में मुझसे 'बडजट' पर 'हानेस्टली' पूरे एक
 'हवर' तक चर्चा करते हैं | तीस वर्ष  से साथ काम कर रहे
 इस मित्र के मुख से आज तक मैंने कभी बजट, ऑनेस्टली
 या अवर नहीं सुना | इसी तरह  कभी-कभी अनुवाद की साधारण
 सी त्रुटि भी परिहास निर्मित कर देती है | टेलीप्रिंटर के युग में एक
अखबार में खबर छपी थी,''डाकुओं और पुलिस में गोलियों
 का आदान-प्रदान |" जाहिर है कि खबर थी कि , ''डेकोइट्स
 एंड पुलिस एक्सचेंज्ड फायर्स |'' अब 'एक्सचेंज् का शाब्दिक
 अनुवाद 'आदान-प्रदान' ही होना था | न्यूज़ पढ़कर ऐसा लगा
मानो पुलिस का शिष्टाचार सप्ताह चल रहा होगा जिस कारण
 पुलिस और डाकुओं में एक दूसरे को  मिठाइयों के साथ तश्तरी
 में रखकर लखनवी अंदाज में पहले आप -पहले आप कहते हुए
गोलियों का आदान-प्रदान संपन्न हुआ होगा | एक बड़े संस्थान
के फायर -ब्रिगेड के दफ्तर में स्थित स्टोर्स पर वर्षों तक 'अग्नि
 भण्डार' लिखा रहा | समझना मुश्किल था कि ये आग बुझाते हैं
 या  आग जारी करते हैं | बाद में उसे 'अग्नि शमन सामग्री भण्डार'
 लिखा गया उसी संस्थान में जनरल केशियर  को वहाँ के कर्मचारी
 वर्षों तक 'सामान्य रोकड़िया' लिखते व समझाते रहे | बाद में वहाँ
 'महारोकड़िया' किया गया | संजय दत्त जब जेल से रिहा हुए तो
 पत्रकारों के यह पूछने पर कि  ''अब वे कैसा महसूस कर रहे हैं?''
 उनका जवाब था, ''आय एम फीलिंग ग्रेट !" अनुवादक की त्रुटि
के कारण इसी समाचार का शीर्षक ''संजय खुद को महान समझने
 लगे" प्रकाशित हुआ | आस्तिक व्यक्ति सिर्फ ईश्वर को महान मानेगा
 और नास्तिक भी कम से कम खुद को महान तो नहीं कहेगा |
 हमारे गुणों के कारण दूसरा व्यक्ति भले ही हमें महान कहे, पर
 खुद को महान समझना रामायण  रचे जाने का कारण बन सकता है |
          क्रिकेट में जो बल्लेबाज पिच के स्वभाव व गेंदबाज व
 क्षेत्ररक्षण की खामियों का लाभ उठाकर रन बना ले उसे
 'अपार्चुनिस्ट बेट्समेन' कहा जाता है | एक बार रेडियो पर
 टेस्ट मैच की कामेंट्री में मैंने   एक्सपर्ट कमेंटेटर से सुना,
''उन्होंने उस स्थान पर फील्डर नहीं होने का फायदा उठाकर
 वहाँ शॉट लगाकर रन ले लिया है | वे एक अच्छे अवसरवादी
बल्लेबाज हैं | अँगरेजी में 'अपार्चुनिस्ट बेट्समैन' होना अच्छा
गुण हो सकता है, पर हिन्दी में किसी को अवसरवादी कहना
  निश्चित ही उसका घोर अपमान  करना है |
              और फिर भाषा तो अपने आप में ही महान होती है |
ऐसी छोटी -मोटी त्रुटियाँ या विसगतियाँ उसके प्रगति रथ को कभी
नहीं रोक सकतीं |
   व्हाट इज़ योर ओपिनियन सर ?

                                                 ओम वर्मा  
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ओम वर्मा
,100 , रामनगर एक्सटेंशन , देवास
मो.9302379199   

Friday 15 April 2011

 व्यंग्य     


मोहाली और एसएमएस
मोहाली सेमीफायनल में अंतिम बल्लेबाज के आउट होने तक जो रोमांच बना रहा उससे खेल की महानता व असीम लोकप्रियता तो सिद्ध हुई ही, मगर जुनून का एक अलग रूप मोबाइल संदेशों के रूप में देखने को भी मिला | सुबह से बल्कि एक दिन पूर्व से मैच के शुभारंभ तक कई चुटीले एसएमएस परिचालित होते रहे | कुछ रोचक बानगियाँ पेश हैं-
          प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह की पाक प्रधानमंत्री से लगी हार-जीत की शर्त! भाव एक का सात ! यदि भारत जीते तो पाकिस्तान भारत को सिर्फ एक 'व्यक्ति' दाउद सौंप देगा | और पाकिस्तान जीता तो मनजी उसे सात 'व्यक्ति' - मायावती, राजा, जयललिता, कलमाड़ी, ममता, मुलायम और लालूजी को सम्मान के साथ सौंप देंगे क्योंकि वे इन सातों से परेशान हैं | (सातों महानुभावों से क्षमा याचना सहित |)
      कप्तान अफरीदी ने ड्रेसिंग रूम में मीटिंग लेते हुए कहा, "हम सचिन को सौवीं सेंचुरी हरगिज़ नहीं बनाने देंगे ...!"
शोएब ने पूछा, "मगर हम उसे रोकेंगे कैसे? वो तो गजब के फॉर्म में हैं...!"
   "हम अगर पहले बेटिंग करेंगे  तो अंडर 100 ऑल आउट हो जाएंगे !"
           इसी प्रकार जैसे ही यह मालूम हुआ कि स्पिनर अश्विन के स्थान पर फास्ट बॉलर नेहरा को खिलाया जा रहा है, तो टीवी चैनलों पर 'विशेषज्ञों' की भौहें तन गईं  व आमजन भी सहमत नहीं थे | सभी धोनी की धुलाई करने पर तुले हुए थे | सभी के ज़हन में द. अफ्रीका के विरूद्ध नेहरा द्वारा आख़िरी ओवर में दिए गए चौदह रन और तीन विकेट से मिली पराजय की याद अभी मिटी नहीं थी ! हालाँकि बाद में नेहरा ने किफायती गेंदबाजी कर अपनी उपयोगिता साबित कर दी | मैच से पहले आया संदेश-
   धोनी का 'दबंग' डायलाग -"अफरीदी और अख्तर से डर  नहीं लगता साब !...मुनाफ और नेहरा से लगता है ...!"
  इसी प्रकार इधर सचिन के कैच छूट रहे थे और उधर संदेश चल रहा था-"शीला हमारी जवान है / मुन्नी हमारी बदनाम है /  जितने रन्स (runs) सचिन  के हैं / उतने स्क्वेअर फीट का तो पाकिस्तान है  |"
          और एक संदेश  अफरीदी
के चायपान पर | पत्नी (wife) ने उन्हें  चाय दी ... सिर्फ  प्लेट  में ...| उनके पूछे जाने पर कि कप में क्यों नहीं दी, पत्नी उवाच ..."आज तो प्लेट से ही काम चला लो ... कप तो धोनी भाईजान ले गए हैं |"
     इसी तरह मोटेरा क्वार्टर फायनल में  आस्ट्रेलिया को हराने पर आया सदेश - "जीव दया एक्टिविस्ट मेनका गांधी ने भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा 11  कंगारूओं का शिकार करने पर जीव हत्या का प्रकरण चलाए जाने की माँग की है |"
           और अंत में प्रार्थना
अगले दिन अफरीदी की मासूम बेटियों का विलाप जिसने कि हर बेटी के बाप का कलेजा हिला गया, उसके लिए तथा स्वदेश वापसी पर कप्तान अफरीदी ने हिन्दुस्तान के लिए जो दिली उद्गार व्यक्त किए उसके लिए जिसने  पाकिस्तान के भारत आगमन पर विरोध करने या पिच खोद डालने वाले 'देशभक्तों' के मुँह पर रिमोट चालित डिजिटल ताले लगा दिए हैं | उम्मीद करें कि यह खेल भावना मैत्री के नए पृष्ठ अवश्य खोलेगी |
                                            - आमीन  !   

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व्यंग्य
             सुनामी और भारत 

 सुनामी आई जापान में और लोग डराने लगे हिंदुस्तान में ! हमें पूरा विश्वास है कि कोई सुनामी हमारा बाल बांका नहीं कर  सकती ! हम सदियों से महाधार्मिक हैं |  हमारे यहाँ  पूरे समय 24x7  पर्व, त्योहार, भजन-कीर्तन, प्रवचन, उपवास, कन्या भोजन, भण्डारे, 'मामाओं' द्वारा भांजिओं के
कन्यादान , बाबाओं के आश्रम में तांत्रिक अनुष्ठान, इबादतें, झाड-फूंक,इत्यादि आयोजन चलते रहते हैं | तो हम क्यों डरें किसी सुनामी से ! मातृभूमि एवं मातृशक्ति की तो हम रात दिन 'पूजा' करते ही हैं, उन्हें देवी मानकर मंदिर में स्थापित करते हैं , उनके चीर हरण के समय भगवान उनका चीर वस्त्र गोदाम में परिवर्तित कर देते हैं ...ऐसी देवियों का सुनामी क्या बिगाड़ पाएगी ! पुरुषों को इसलिए नहीं डरना चाहिए कि बच्चों पर तो माताएं काजल का टीका लगाती ही हैं और सारे पतियों के लिए अर्ध्दांगिनियाँ हरतालिका तीज एवं करवा चतुर्थी जैसे व्रत उपवास करती हैं | फिर हमारे यहाँ तो सावित्रियाँ अपने सत्यवान को खींच लाने का जज्बा रखती हैं और कोई सुनामी क्या यमराज से बढ़कर हो सकती है ?
    क्या हम अपने देवी देवताओं, विशेषकर ऋद्धि- सिद्धि एवं बुद्धि के स्वामी गणेश को जो कई टेंकर दूध पिला चुके हैं क्या वह सुनामी आमंत्रित करने के लिए था ? ये वैज्ञानिक बकवास करते हैं कि सुनामी और भूकंप जैसी विपदाएं प्लेटों के खिसकने जैसी भूगर्भीय हलचलों के कारण आती हैं | क्या इन्हें यह पता नहीं कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है और ये सारी गड़बड़ें उनके फन हिला देने से होती हैं | और शेषनाग की  जिन संतानों को हम हर नागपंचमी के दिन सदियों से दूध पिलाते आ रहे हैं क्या वे इतने कृतघ्न  हो जाएंगे कि फन हिलाकर सुनामी और भूकंप को आमंत्रित कर देंगे ? जापानियों को कहीं ये  नागपंचमी न मनाने का दण्ड तो नहीं  है |
        हमारे पास समाधि लेने वाले कई  विशेषज्ञ उपलब्ध हैं जो अपनी जमीन के नीचे आठ-आठ दिन तक समाधि लेकर सकुशल बाहर आ जाते हैं | उनका यह ज्ञान आखिर किस दिन काम आएगा ? 
        हमें सुनामी या भूकंप के खतरे की इन गीदड़ भपकियों से कतई डरने की जरूरत नहीं है | जब हमारे देवता सूर्य को मुँह में भर सकते हैं, पर्वत को उँगली पर उठाकर उसके नीचे पूरे गाँव वालों को शरण दे सकते हैं ... वे क्या सुनामी और जलजले से हमारी रक्षा नहीं करेंगे ? साल में पूरे नौ दिन नरेंद्र चंचल गली गली अपनी 'बुलंद' आवाज द्वारा आव्हान करते हैं कि  "बेटा जो बुलाए माँ को आना चाहिए ...|'' तो क्या सुनामी के समय ये भजन चलवाने      पर भी माँ हमारी करुण पुकार नहीं सुनेंगी ?
          और इतनी सेवा, आयोजन एवं अनुष्ठानों के बावजूद भी यदि बेशर्म सुनामी आ ही जाती है तो वह निश्चित ही हमारे प्रारब्ध का फल होगी | ऐसे में मलमूत्र की इस नश्वर देह की क्या चिंता करना ! आत्मा तो वैसे भी अजर अमर है !
      इसलिए हम बेफिक्र थे, बेफिक्र हैं, और बेफिक्र रहेंगे !      जिसको आना है ...आए !