Sunday 29 July 2012


व्यंग्य                                       पत्रिका, 26/07/2012
                     ज़ीरो से हीरो 
                                             -ओम वर्मा  om.varma17@gmail.com 
 में  बचपन से स्कूलों में यह पढ़ाया गया है कि भारत ही वह देश है जहाँ शून्य की खोज़ हुई थी | बड़े-बड़े दार्शनिक यह कहते हुए कभी नहीं अघाते  कि शून्य से ही सृष्टि का जन्म हुआ है aऔर हर नश्वर वस्तु या जीव को  अंत में शून्य में ही समाना है | तो फिर आंध्रप्रदेश में इंजीनीयरिंग प्रवेश  परीक्षा में शून्य अंक के आधार पर हुए बाईस छात्रों के प्रवेश पर इतना  हंगामा क्यों ? दूसरों के बारे में तो अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता पर  मुझे इतना विश्वास है कि ये बाईस छात्र जरूर कुछ न कुछ अनहोनी करके  दिखाएंगे ! ये वो 'कूड़ा' है जिससे 'सोना' बनना तय है |
           ज़ीरो के आलोचक यह क्यों भूल जाते हैं कि आज दुनिया कम्प्युटर  के बिना नहीं चल सकती और कम्प्युटर की अवधारणा ही शून्य एवं एक पर आधारित  'बाइनरी डिजिट' की भाषा पर टिकी है | और क्या आप ज़ीरो का  महत्व नहीं समझते जो एक बार सही जगह पर लग जाए तो किसी भी संख्या की औकात बदल सकता है |
          लेट'स होप फॉर दि बेस्ट ! मीडिया और अखबार वालों को तो हर चीज़  में कुछ न कुछ 'बोफोर्स' ही नज़र आने लगता है | मुझे विश्वास है कि ज़ीरो  लाकर प्रवेश पाने वाले ये बाईस लोग उन बीस-बाईस 'हीरो'ज़' से तो बेहतर ही  साबित होंगे जिन्होंने पिछले बीस-बाईस वर्षों में देश की इज्ज़त खाक़ में मिला  दी है | मुझे यह भी विश्वास है कि ये भावी इंजीनियर कम से कम ऐसी सड़कें तो  नहीं बनवाएंगे कि राज्य के किसी मंत्री को नाराज़ होकर इन्हें उसी सड़क के गड्ढों में दफ़्न करने की बात कहना पड़ जाए ! और यह भी विश्वास है कि ये बाईस छात्र अपने कार्य को जैसा भी हो, स्वयं ही करेंगे न कि यू.पी. के उस  चिकित्सक की तरह जिसने मरीज़  को टाँके लगाने का कार्य सफाई कर्मी के  जिम्मे  छोड़ दिया था |
       हमारा देश और हमारे ग्रंथ चमत्कारों और कारनामों से भरे पड़े हैं | जब जिस डाली पर बैठा है उसी को काटने जैसी ज़ीरो नंबर लाने की समझ रखने  वाला शख्स हमारे यहाँ संस्कृत का 'हीरो नाटककार' बन सकता है तो आंध्र की प्रवेश  परीक्षा में ज़ीरो अंक लाकर प्रवेश पाने वाले बाईस छात्र राष्ट्र के कर्णधार  क्यों नहीं बन सकते ?
     इसलिए व्यंग्यकारों और कार्टूनिस्टों से अनुरोध है कि आंध्रप्रदेश की शिक्षा  व्यस्था पर ऊंगली उठाना बंद करें !

                                                                                           ***

Friday 20 July 2012

व्यंग्य - मुर्गी और अंडा (नईदुनिया -09 जनवरी '2011)


व्यंग्य - गरीबी रेखा के उस पार


                             (पत्रिका - 04 अक्टूबर 2011 )
-- व्यंग्य                
                                                      गरीबी रेखा के उस पार 
  वे सचमुच बड़े महान हैं | उन्हें देश की जनता का बार-बार प्रणाम है | उनमें कई पी.सी.सरकारों की आत्माएं प्रवेश कर गईं हैं | वे इतने मायावी हैं कि उन्होंने देश से एक झटके में गरीबी दूर कर दी है | वही गरीबी जिसके नाम पर कई चुनाव लड़े गए,वही गरीबी जिसको हटाते हटाते कई सरकारें हट गईं ...वही गरीबी अब सदन में दिए गए एक बयान के बाद एक झटके में ख़त्म हो गई है |
         गरीब यानी वह शख्स जो गरीबी की रेखा के नीचे गुजर बसर करता है ...लेकिन गरीब है कौन ? इस जटिल प्रश्न का हल फ्रांसीसी गणितज्ञ फर्मेट (Fermat) के उस अंतिम व  जटिल प्रमेय (Theorem) की तरह था जो वर्षों तक अनुत्तरित रहा | मगर योजना आयोग ने यह बताकर कि जो शख्स शहर में रहकर 32 रु. और गाँव में रहकर 26 रु. प्रतिदिन खर्च कर सकता है, वह गरीबी रेखा से ऊपर है.. यानी बीपीएल या गरीब नहीं है , वर्षों से चले आ रहे अनुत्तरित प्रश्न का हल आखिर खोज ही लिया है | 
         हमारे देश में कुछ लोगों को गरीब कहलाने या गरीब दिखने का कुछ ज्यादा ही शौक़ है | गरीबों की जमात में शामिल होकर ये लोग बिला वजह सरकार व योजनाकारों के लिए परेशानी पैदा करते रहे हैं | आज बत्तीस रु. तो बड़े शहरों का भिखारी भी कमा लेता है | तो देश में कहाँ बचा कोई गरीब ! सारे सुदामा एक झटके में गरीबी रेखा को पार कर गए हैं ! योजना आयोग ने कृष्ण सा मायावी रूप धारण कर उनके लिए महल न भी खड़े किए हों तो भी कम से कम एक मूल्य सूची पूरे भोजन मीनू के साथ जारी कर दी है | खबरदार ! कोई इधर से उधर हुआ तो ...136 ग्रा.चावल 3 रु....85 मिली. दूध 2  रु.30 पै.,90 ग्रा.प्याज, 180 ग्रा. आलू या कद्दू 1 रु.60 पै. में उपलब्ध हैं ( इन दुकानों को ढूढ़ने का थोड़ा परिश्रम आपको भी करना होगा ) ...जो इससे ज्यादा भाव लेगा उसके खिलाफ आतंकवाद के खिलाफ़ उठाए जा रहे कदमों जैसे 'ठोस' कदम उठाए जाएंगे |
        जिस योजना आयोग में दो महान अर्थशास्त्री मौजूद हैं उसकी बात पर हमें विश्वास करना ही होगा | अगर 32 रु. में  निर्वाह करने में किसी को जरा भी कठिनाई आएगी तो हर घर में कुंती के अक्षयपात्र की तरह  योजना आयोग के बयान या मूल्य सूची की एक-एक प्रति रखवा दी जाएगी ,  जिससे  की  अन्न का सिर्फ एक दाना ही सभी को मनचाहा सुख प्रदान कर देगा | सभी रचनाकर्मियों से भी अनुरोध है कि वे अब गरीब और गरीबी को बार बार भुनाना छोड़ दें | या गरीब के बारे में लिखने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उसकी आय सचमुच 32 रु. या ग्रामीण हो तो 26 रु. प्रतिदिन से कम ही है | इससे अधिक खर्च करने वालों पर आयकर का शिकंजा भी कसा जाना चाहिए | जैसे 32 रु.खर्च करने वालों के दिन फिरे , ऐसे दुनिया में  सबके फिरें...|    
                                                                                                                                                                                                                                               
                       - ओम वर्मा
                                   100, रामनगर एक्सटेंशन
                                                              देवास
दबंग दुनिया , 20/07/2012
व्यंग्य 


           नोट पर गांधी के विकल्प की तलाश 
                                                             -ओम वर्मा      

  हन चिंतन जारी था | चिंतकों में देश को चलाने वाले, या चलाते हुए   

दिखने वाले ...देश की राह में फूल बिछाने वाले से लेकर काँटे बिछाने वाले...यानी सभी तरह के लोग थे | चिंता का,या श्रेष्ठि वर्ग की भाषा में कहूँ  तो  'बहस'  का विषय था -'भारतीय करेंसी नोटों  पर महात्मा गांधी  के स्थान पर आखिर किसका फोटो छापा जाए !' मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मुद्रा पर महात्मा गांधी का एकाधिकार जल्द ही छिनने वाला है | यह भी खबर है कि करेंसी नोटों पर गांधी की जगह अन्य राष्ट्रीय नेताओं के फोटो देने के बारे में आरबीआई को कई सुझाव मिल चुके हैं और इस पर विचार भी कर रहे हैं | समझना मुश्किल है कि परेशानी आखिर किससे  है...  गांधी के नाम से; गांधी के विचार से या कि गांधी के नाम को भुनाने वालों से ...| गांधी के सिर्फ नोटों वाले फोटो हटाना है या गांधीवाद हटाना है ; या कि गांधी का नामो-निशान ही मिटाना है...|
              मैंने सोचा कि राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते इस मुद्दे पर मैं भी अपना कुछ योगदान दूँ | इसलिए मैंने कुछ विशिष्ट महानुभाओं से चर्चा की | सभी से मेरा यही प्रश्न था कि, "आपके अनुसार भारतीय करेंसी पर किसका फोटो होना चाहिए?" 
                सर्वप्रथम मैंने राजा सा. से संपर्क किया | मुँह पर ताला जड़ा होने के कारण राजाजी ने पहले तो कुछ भी कहने से इंकार कर दिया | मगर मैं भी कहाँ हार  मानने वाला था | मैंने कहा, "ताला आपके मुँह पर लगा है, हाथ और कलम पर तो नहीं ! आप अपनी राय लिखकर तो दे ही  सकते हैं |"
               "मैं भारतीय करेंसी पर सिर्फ और सिर्फ गांधी की तस्वीर चाहता हूँ |"  उन्होंने कहा...आय मीन... लिखा |
               "लेकिन गांधी जी की तस्वीर तो नोटों पर पहले से ही है |"
               "गांधी से मेरा तात्पर्य सोनिया गांधी जी से है | और हाँ, मैं जीवन में एक बार नोटों पर राहुल गांधी जी की तस्वीर भी देखना चाहता हूँ |"  उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी के पुष्प की तरह अपनी एकमात्र अभिलाषा व्यक्त की |  
          फिर मैंने बहिन जी को खोजा | प्रश्न सुनते ही उन्होंने पार्क में उनके  द्वारा  स्थापित  एक  संगमरमरी  हाथी की  पीठ पर बैठे-बैठे फरमाया, "मेरी और माननीय कांशीराम जी की फोटो तथा बीच में हाथी होना चाहिए |"
                "मगर बहिन जी, हाथी तो आपका चुनाव चिन्ह है इसलिए चुनाव आयोग  इसकी अनुमति नहीं देगा |"
 प्रतिप्रश्न  न सुनने की आदी बहिन जी को मैंने टोका |
                "नहीं, इसे चुनाव चिन्ह से मत जोडिए | करेंसी नोट यानी लक्ष्मी ! और लक्ष्मी जी के हर चित्र में आपको गजराज अवश्य दिखाई देंगे | मैं भी उन्हीं गजराज की बात कर रही हूँ | और इस पर भी यदि आपत्ति हो तो आम्बेडकर जी के चित्र पर विचार किया जा सकता है |"
              मैंने बहिन जी व पार्क में लगी सभी मूर्तियों को प्रणाम किया | दूसरी बहिन जी, क्षमा करें, दीदी को 'पोक' किया | दीदी ने प्रश्न सुनते ही आक्रामक अंदाज़ में कहा, "करेंसी नोट पर सिर्फ गुरुदेव  रोबिन्द्रोनाथ जी का चित्र होना चाहिए | उनका  नहीं  दे  सकते  तो  किसी भी गैर कांग्रेसी बंगाली का चित्र चलेगा |"
              मेरे ठाकरे परिवार से संपर्क करने पर आवाज आई कि किसी भी मराठी भाषी या मुंबईकर की तस्वीर लगाई जानी चाहिए | गड़करी जी ने गुरु गोवलकर जी की तस्वीर लगाने का सुझाव दिया |  नीतीशकुमार जी को भारतीय मुद्रा पर नरेंद्र मोदी को छोड़कर किसी की भी फोटो स्वीकार थी | कुछ 'कृपापात्र' भक्तों ने समागम में कृपादान करने वाले बाबा की तस्वीर लगाने की बात कही | आरक्षण के कोटे में 4.5 प्रतिशत उप कोटा देने की वकालात करने वाले एक महानुभाव ने  तो ने मुहम्मद अली जिन्ना का नाम भी सुझा डाला |
              चिंतन पर चिंतन और बहसों पर बहसें  जारी हैं | देश की जनता को सर्वसम्मत निर्णय की प्रतीक्षा है | 
                                ***
                                                                                                                                                                    

Tuesday 10 July 2012


पत्रिका , इंदौर 10/07/2012
      व्यंग्य                       साहित्यिक समागम 
                                                        ---ओम वर्मा  
 "बाबाजी को कोटि कोटि प्रणाम ! बाबा मैं पिछले दस साल से कविता  
 लिख रहा हूँ | अखबार वाले मेरी कविता छापने का नाम ही नहीं लेते |
 खेद व क्षमा के साथ वापस लौटा देते हैं | आपकी कृपा मुझ तक पहुँचे 
 तो काम बन जाए !"
             "आप कविताएँ कैसे भेजते हैं ?" बाबा ने रत्नजड़ित सिंहासन
 पर बैठे-बैठे फ़रमाया |
            "मैं अपने हाथ से लिखकर डाक से भेजता हूँ |" समागम में सभी 
 की तरह इक्यावन सौ रु. शुल्क देकर आए भक्त ने करबद्ध मुद्रा में उत्तर 
 दिया |"
         "किस रंग की स्याही से लिखते हैं ?" बाबा ने बाबानुमा प्रश्न दागा |
         " नीली स्याही से बाबा |"
         "बस यही गड़बड़ है | आप आज ही अपना नीली स्याही का पेन तोड़ 
  दें और पिंक कलर की स्याही से लिखना शुरू कर दें | आप तक कृपा पहुँच 
 जाएगी |" जाहिर है कि भक्त गदगद हो चुका था |
        यह संघर्षशील या कहें कि नवोदित रचनाकारों का समागम था | बाबा
 का इस फील्ड में सिर्फ इतना तज़ुर्बा  था कि पत्रकारिता व राजनीति  में पैर
 जमाने के लिए खुद का एक अधपन्ने का अखबार निकाला था  और खुद की 
 प्रेस भी खोल ली थी | सभी जगह असफल रहने के बाद उन्होंने 'कृपा' का 
 कारोबार शुरू किया, जिसमें जाहिर है कि चाँदी ही चाँदी थी | संपादकों की 
 कृपा से वंचित सारे उदीयमान रचनाकार शुल्क भुगतान,सुरक्षा जांच एवं 
 कृपा हो जाने पर दसबंध यानी टेन परसेंट का शपथपत्र भरकर अंदर आए थे |
             "बाबा , मैं अपने चुटकुले कई अखबारों में भेज चुका हूँ | एक भी नहीं 
 छपा !" चुटकलों को साहित्य समझने वाले तथा बढ़ी हुई दाड़ी व  लंबा कुर्ता
 पहने एक साहित्य प्रेमी ने पूछा |
              "आप कुर्ता कितने मीटर कपड़े का सिलवाते हैं ?" बाबा ने अपने 
 ज्ञान के खज़ाने से फिर एक तिलस्मी प्रश्न दागा |
             "जी बाबाजी, तीन मीटर कपड़े का !" भक्त ने अभिभूत होने की मुद्रा 
 में उत्तर दिया |
             "आप चार -चार मीटर कपड़े के कुर्ते सिलवाएँ...खुद भी पहनें और 
 दस कुर्ते गरीबों में भी बाँट दें | आप तक कृपा दौड़ी चली आएगी |" बाबाजी 
 ने फिर लालबुझक्कड़ शैली में एक चमत्कारी उपाय बताया |
            ऐसे ही जब एक अन्य रचनाकार ने अपनी असफलता का रोना रोया
 तो बाबाजी ने उसका नाम पूछा | उसके द्वारा नाम  गोपाल बताए जाने पर 
 बाबा  उवाच-
         "आपके नाम पर कृपा नहीं जाएगी | आप अपना नाम 'कुमार गोपाल'
 रख लें | कुमारों पर कृपा जल्दी पहुँचती है |" ऐसे ही किसी नवोदित रचनाकार 
 को  सफ़ेद कागज  पर काली स्याही से तो किसी को पीले कागज़ पर लाल स्याही 
 से लिखने की; किसी को रचना भेजने के लिए कूरियर कंपनी बदलने की तो किसी 
 को अपना मेल आइ डी बदलने की सलाह दी | कुछ नवोदित लेखिकाओं ने भी 
 संपादकीय कृपा न होने के एकता कपूरी आँसू बहाए ! बाबा ने किसी को अपना
  नाम 'शीला' तो किसी को 'मुन्नी' रखने का मंत्र दिया | कृपादान के कारोबार से 
  बाबा पर लक्ष्मी मैया की अटूट कृपा बरसने लगी | मगर समागम के तीन माह 
  बाद भी जब किसी की कोई रचना नहीं छपी तो सृजन में काम आ सकने वाली 
  प्रसव पीड़ा आक्रोष में बदल गई | कुछ ने पुलिस में रिपोर्ट की तो कुछ ने अदालती 
  कारवाई   कर दी | 
         बाबा फरार हैं और नवोदित रचनाकारों को किसी नए कृपादानी गुरू का 
 इंतज़ार है | 
                                                   ***