Sunday 19 August 2012


                              रोहित उवाच
               
                                                      
                   मुझको अपने  बाप से,  नहीं  चाहिए दाम |
             बस मुझको तो चाहिए, महज़ बाप का नाम ||1||

              शोहरत  पाई  आपने , मिला  आपको राज | 
              मुझको  मेरी  वल्दियत, मिल पाई है आज ||2||

               बेटा  नाज़ायज  नहीं ,  नाज़ायज  है  बाप |
               जिसके कारण 'उज्ज्वला',झेल रही अभिशाप||3||

               माँ  भी कुंती की तरह, कर सकती थी त्याग |
               लेकिन  मेरे  माथ  पर ,  नहीं  लगाया दाग ||4||

                तीस  बरस में आपको, कभी न आया ख्याल |
                बोया था जिस बीज को, अब वो है किस हाल ||5||

                 फिर से कोई उज्ज्वला ,  और  न हो बरबाद  |
                 रोहित जैसे सब नहीं ,  कर  सकते  फ़रियाद ||6||

                 किसी  सियासतदान  का ,  कैसे  करें यकीन |
                 कब  तक कोई उज्ज्वला , बची रहेगी क्लीन ||7||

                         खोज़  रहे  हैं  वे   उसे ,  जिसने  की  ईज़ाद |
                 पद्धतियाँ  वो जाँच  की, जिनसे बढ़ा विवाद ||8||
                                              *** 100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001    

Friday 3 August 2012


विचार


राहुल गांधी में चमत्कार खोजने की कोशिश
                                   
कांग्रेसियों की वर्षों पुरानी आदत या कहें कि राजनीतिक मजबूरी है कि वे नेहरू- गांधी परिवार का भाट-चारणों की तरह गुणगान करें | इसी भावना के तहत कोई जबरन  'युवा ह्रदय सम्राट' बनाए जा रहे राहुल गांधी को जीवन में एक बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहता है तो कोई 'वे चाहें तो रात को बारह बजे भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं ' जैसी अवधारणा  'सूर्य सदा पूर्व में ही उदित होता है ' जैसे युनिवर्सल फेक्ट की तरह जनमानस में स्थापित करना चाहता है |
       मगर ये ही बड़बोले जब कभी बहुत कड़वी और बहुत खरी बात भी कह जाते हैं तो उसकी चुभन सत्ता और दल के शिखर पुरुषों के मर्म को छेद कर रख देती है | नतीजा यह होता है कि या तो किसी के मुँह पर ताला लगा दिया जाता है या फिर कांग्रेस की वर्तमान स्थिति और राहुल गांधी के वर्तमान सोच व कार्यशैली पर कड़वा सच उगल देने वाले को अपनी बात 'संदर्भ से काटकर देखे जाने की ' सफाई देना पड़ती है | नेहरू अपने जीवनकाल में करिश्मा बने रहे, इंदिरा जी 'गरीबी  हटाने '   'हाथ मज़बूत ' करवाने के करिश्मों से ग्रीक पुराण के पक्षी फिनिक्स की तरह भस्म हो होकर पुनर्जन्म लेती रहीं...और राजीव गांधी प्रारम्भिक दौर में सहानुभूति व मासूमियत की वज़ह से 'मि. क्लीन' जरूर बन गए थे और उनके कार्यकाल का उत्तरार्द्ध भले ही उस सेंचुरी बेट्समेन की तरह था जिसने पहले पचास रन तो मात्र बीस गेंदों में ही बना लिए थे मगर अगले पचास रन बनाने में पचहत्तर गेंदें खेल ली हों...| मगर यह भी तय है कि राजीव गांधी का जब भी नाम लिया जाएगा, उनकी 'शहादत' का उल्लेख पहले होगा
            मगर राहुल गांधी में ऐसे किसी चमत्कार को खोजने की व्यर्थ कोशिश की जा रही हैं | इसी छवि को बनाने या चमकाने के चक्कर में उन्होंने कभी मंच पर कागज़ फाड़ने जैसी नाटकीय व बचकानी हरकत की तो कभी दलित के यहाँ पड़ाव डालकर गांधी से 'महात्मा गांधी ' बनने की अप्रासंगिक व नाकाम कोशिशें की | यह वैसा ही है जैसे आज कोई किसी दलित स्त्री के हाथों बेर खाकर सोचे कि वह 'राम' बन गया है | न तो आज कोई दलित शबरी की परंपरा का है और न ही आज के 'राजा' राम हैं | बीच में कुछ वानर जरूर उछल-कूद कर हरी भरी 'अशोक वाटिका ' को ध्वस्त करने पर तुले हुए हैं |
           कुल मिलाकर बात यह है कि इससे पहले कि देश में 'राहुल लाओ-देश बचाओ' जैसा कोई आंदोलन शुरू हो, कांग्रेस के हितचिंतकों और देश की जनता को सजग होना होगा और डायनेस्टीसिज्म व  नेपोटिज्म की उगाई जा रही फसल को कहीं भी खाद पानी लगने से रोकना होगा !   

                                                           *** 
                       - ओम वर्मा
                                   100, रामनगर एक्सटेंशन
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