Wednesday 26 June 2013


--  जनवरी' 2013 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने  भारत  को  2-0 से शिकस्त दी। इस पर लिखा  'सिंह खोकर गढ़ जीता' शीर्षक से लिखा गया व्यंग्य जो  'पत्रिका', इंदौर  में 14.01.2013 को 'क्रिकेट में हार जीत' शीर्षक से प्रकाशित हुआ । 
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              सिंह खोकर गढ़ जीता
                 ओम वर्मा
                                                                                        
नके पास लड़की पटाने के नुस्खे तो हैं, पर सीरीज जीतने के नहीं । वे खाद्य पदार्थ में होने वाली मिलावट के खिलाफ जितने एकजुट खड़े नज़र आते हैं उतने प्रतिद्वंद्वी टीम के स्कोर के खिलाफ नहीं। उन्हें उनके मोबाइल पर अपनी माँ की पुकार तो सुना जाती है पर सौ करोड़ लालों की माँ की पुकार सुनने में वे असमर्थ हैं।
     वे जो एक देड़ वर्ष पहले तक शोले और दीवार के अमिताभ की तरह खेल के एंग्री यंगमेन थे,आज पा के अमिताभ होकर रह गए हैं। कभी वे बल्लेबाजी में हर गेंद पर कार्यक्रमों के कुशल मंच संचालकों की हाजिरजवाबी सी चपलता दिखाया करते थे और आज...आज कार्यक्रमों की अध्यक्षता कर रहे सम्मानीय बुज़र्गों की तरह खामोश होकर रह गए हैं। जिस तरह गठबंधन से चल रही सरकारें कई अच्छे कार्यक्रम या योजनाएं होते हुए भी इंप्लिमेंट नहीं कर पाती हैं उसी तरह इनके पास शॉट्स तो कई हैं पर वे मैदान में लगा नहीं पा रहे हैं। हमारी वर्ल्ड चैंपियन क्रिकेट टीम को अब राजकपूर की तरहज्यादा का लालच नहीं रहा, क्योंकि अब वे थोड़े में गुज़ारा करने लग गए हैं इसलिए सीरीज़ का गढ़’ हारकर मैच का सिंह जीत जाते हैं। चूँकि मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है इसलिए हम उसे हराकर एक गाल पर चपत पड़ने पर दूसरा गाल भी आगे करने की परंपरा वाले देश में इंसल्ट,कैसे कर सकते हैं !
           लेकिन क्या सारे उसूल क़ायदे या नीति शिक्षा सिर्फ हमारे ही लिए हैं ? क्या मेहमानों का कोई फर्ज़ नहीं बनता ? वे यह क्यों भूल जाते हैं कि हमने उनके एक लाड़ले सपूत को बिरियानी खिला खिलाकर अपने घर से भी ज्यादा महफूज़ रखा। हमने उनकी आस्तीन में पल रहे विषधर को भी नाम के आगे श्री लगाकर गौरवान्वित किया। उनके एक खिलाड़ी से हमारी एक लाड़ली लक्ष्मी का ब्याह कर उन्हें दसवें ग्रह जैसा सम्मान दिया और अमेरिका से लेकर भारत तक के मोस्ट वांटेड आतंकी के समधी को वीज़ा प्रदान कर गांधीगिरी की उच्चतम मिसाल पेश की...और तुम हो कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते हो !
      यह मत भूलो कि तुम हमारा ही हिस्सा हो और इस नाते रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप ही हुए ना ! और बाप की क्रिकेट में शहंशाहत बनी रहे इसके लिए तुम्हारा भी तो कुछ फर्ज़ बनता है कि नहीं !
     बेहतर होगा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तरह तुम हमें मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्ज़ा    दो  ताकि आइसीसी  अपने  नियमों  में संशोधन  कर  हमारी  टीम  को  कु अतिरिक्त छूट जैसे ग्यारह की जगह बारह या तेरह खिलाड़ी देना, हमें पचास की जगह साठ ओवर देना, और हर बेट्समेन को केबीसी की तरह डबल डिप यानी एक बार आउट होने पर उस गेंद को निरस्त कर फिर से डलवाना...। हमारी सद्भावना का आखिर कुछ तो खयाल करो भाई !
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     100, रामनगर एक्सटेंशन देवास 455001