Tuesday 27 January 2015

 वेब पोर्टल 'हिंदी-सटायर'  पर 


Friday 23 January 2015

वेब पोर्टल 'Hindi Satire' में प्रकाशित व्यंग्य 


Tuesday 6 January 2015


शीत लहर- एक व्यंग्य शब्दचित्र
           
       मौसम का बिगड़ता मिजाज़
                                                   
                                 ओम वर्मा    
                                 om.varma17@gmail.com
था शिल्पी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात…!
     ठण्ड से ठिठुरते हलकू और मुन्नी...! मुन्नी हलकू को बार बार कोसती रहती है कि वह इफ़रात  में खर्च न करे ताकि कुछ बचत हो सके और ‘कम्मल(कंबल) खरीदा जा सके जिससे ‘पोस-माघ’ ढंग से कट सकें!
     आज भले ही हलकू हलकप्रसाद और मुन्नी मुन्नी मैडम में बदल गई हो मगर कुछ नहीं बदला तो वह है माघ पूस की रातें। कंबल हर घर में है मगर फिर भी सर्दियाँ हैं कि जान लेवा साबित हो रही हैं। आज मुन्नियाँ हलकुओं को कोस रही हैं- इस मुई ठण्ड का क्या करूँ...कहा था कि रजाई  भारी बनवाना... बनवा लाए चादरे जैसी...! रूम हीटर ही ले आते तो कमरा ही थोड़ा गर्म हो जाता...! अब इन मुन्नियों को कौन समझाए कि यदि रूम हीटर चलाए गए तो बाद में बिजली का बिल देख कर दिमाग पर जो गर्मी चढ़ेगी उसे उतारने के लिए केजरीवाल भी फ्री नहीं है।
    मौसम विज्ञानी दाड़ी बढ़ाकर अंधत्व निवारण शिविर से ऑपरेशन करवा कर लौटे रोगी या दक्षिण के अभिनेता से नेता बने राजनेता की तरह काला चश्मा लगा कर सूट टाई पर भी शॉल लपेटे छिपते फिर रहे हैं। एक श्रीमान अलाव तापते गरम हाथोंयानी रँगे हाथों पकड़ा ही गए। कल तक जो ग्लोबल वार्मिंग के नाम से डरा डरा कर मुंबई जैसे तटवर्ती शहरों के डूब जाने का खतरा बता रहे थे वे आज ग्लोबल कूलिंग की बात करते फिर रहे हैं।
     अपने राम को न तो वैज्ञानिकों की बात समझ में आती है और न ही ज्योतिषियों की। ज्वलंत विषयों पर दोनों वर्गों के लोग जो भविष्यवाणी करते हैं,वह प्रायः फेल हो जाती है। बाद में ये अपनी गणनाओं की त्रुटि का कारण बताने लगते हैं या फिर हमारा मतलब यह नहीं था...” जैसी बेमतलब की लीपापोती करने लग जाते है।
     लाख टके की बात यह है कि आखिर इस जमा देने वाले जाड़े से निज़ात मिले तो मिले कैसेइन दिनों कुछ ‘फायर ब्राण्ड’ बयानवीर अपने बयानों से सियासी आग भले ही लगा देते हों पर भौतिक रूप से गर्मी उत्पन्न नहीं कर सकते! इसी तरह कल तक जो मुझे राह रोक रोक कर पूछा करते थे कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ऊँट किस करवट बैठेगावे आज पूछते हैं कि नए टोपे बाज़ार में आए या नहींया ये स्वेटर कहाँ से लियाया यह कि आखिर ये ठण्ड कब खत्म होगी यार...! हिंदी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ का वह दृश्य रह रह कर कौंध जाता है जिसमें लहनासिंह के साथी ठण्ड से परेशान हैं और चाहते हैं कि एक बार जंग’ हो ही जाए ताकि कुछ गर्मी तो आए। कोहरे की वज़ह से ट्रैनें व उड़ानें लेट होने की तो बात पुरानी हो गई, हद तो तब हो गई जब दिल्ली में एक चोर ने महिला समझकर कुत्ते की ही चैन झपट ली...!
     इन दिनों जिसे देखो वही कुछ ठिगना नज़र आ रहा है। क्या लोगों की औसत उँचाई एक दो इंच कम हो गई है। ध्यान से देखने पर समझ में आता है कि हर शख्स सिकुड़कर गुड़ी-मुड़ी होकर चल रहा है। मिलते ही तपाक से हाथ मिलाने वाला शख्स देखते ही मुँह फेर रहा है कि कहीं गलती से जेब की गर्मी छोडकर हाथ बाहर न निकालना पड़ जाएँ। गलती से अगर उन्हें हाथ मिलाना भी पड़े तो सामने वाले से एक बत्ती कनेक्शन वाले की तरह ज्यादा से ज्यादा एनर्जी खींचने की कोशिश करने लगते हैं। इधर चौराहे पर क्या पुतला दहन हो रहा है? नहीं नहीं, यह जो आग जल रही है वह कोई विरोध प्रदर्शन या पुतला दहन नहीं बल्कि ठण्ड भगाने का इंतजाम है। जिन्हें मैं प्रदर्शनकारी समझ बैठा था वे और दो पुलिस के जवान मिलकर अलाव ताप रहे हैं।
     दिल्ली में इन दिनों मोदी की लहर है या केजरीवाल की इस पर शायद अलग अलग दावे हो सकते हैं लेकिन दिल्ली सहित पूरे उत्तरी भारत में इस समय शीत की लहर है, इस बात पर सभी एकमत हैं। भोपाल के यूनियन कार्बाइड में जैसे किसी की गलती से ‘मिक’ गैस के टेंक का वॉल्व खुल गया थावैसे ही शायद ऊपर वाले के दरबार में कोई मौसम का स्विच चेंजओवर करना भूलकर आराम से बीड़ी पीने चला गया है। नीचे वाले मरें तो मरेंउसकी बला से!
     सुबह हो गई है...दरवाजे पर पेपर फेंकने की आवाज आ चुकी है। कोई भी पेपर उठाकर लाने को तैयार नहीं है। रज़ाई कौन छोड़े! शीत लहर के चलते स्कूल खुलने का समय बढ़ा दिया गया है और कहीं तो छुट्टी ही कर दी गई है। इधर
किसकी हिम्मत जो मुझे जल्दी उठा सके। घर के अस्सी वर्षीय वरिष्ठ नागरिक अखबार के बिना छटपटाने लगते हैंऔर शॉलटोपेमोजे के जिरहबख्तर में क़ैद होकर जाकर उठा लाते हैं। श्रीमतीजी कुढ़मुढ़ा रही हैं कि बाई’ आज भी आती दिखाई नहीं देती।
     जहाँ छुट्टी नहीं है उन स्कूलों में सुबह सुबह बच्चे मुँह से वाष्प छोडकर सारी वैधानिक चेतावनियों को ठेंगा बताते हुए धूम्रपान की नकल करने लगते हैं। क...क...किरण बोलने वाले इस शख्स को आप शाहरुख खान समझने की भूल न करें। दरअसल ठण्ड के मारे इसके दाँत किटकिटा रहे हैं। पारा जितना नीचे होने लगता है उधर ‘भियाजी’ की लाल रंग की ‘दवा’ का डोज़ भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है। ठण्ड से अपने अपने ढंग से सबकी जंग जारी है।                ***
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