Friday 13 March 2015

सर जी ईमानदार है!

                               सर जी ईमानदार हैं!
                                                                  ओम वर्मा 
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र जी ईमानदार थे, ईमानदार हैं और ईमानदार रहेंगे! वे जहाँ खड़े हो जाते थे, ईमानदारी वहीं से शुरू होती थी। उनकी ईमानदारी पर भगवान सत्यनारायण सहित सारे देवी-देवतायक्षकिन्नरगांधर्व सभी आकाश से लगातार पुष्प वर्षा  कर रहे हैं।  "राम की चिड़िया राम का खेतखाओ री चिड़िया भर भर पेटउनके जीवन का शुरू से ही मूलमंत्र है इसलिए उन्होंने किसी खाने वाले की तरफ कभी आँख उठाकर भी नहीं देखा।


     वे ईमानदारी के विश्वामित्र हैं इसलिए बेईमानी की मेनका उनकी तपस्या कैसे भंग कर सकती थी?  वे ईमानदार हैं और ईमानदारी उनकी परिणीता है। उन्हें ईमानदार सत्यवान की तरह चिंता रहती है तो सिर्फ ईमानदारी की मूर्ति यानी अपनी सावित्री की जिससे कोई यमराज भी उन्हें जुदा नहीं कर सकता। अपने ईमानदार प्रभा मंडल पर वे ग्रीक देवता नार्सिसस की तरह आत्म मुग्ध हैं। जब वे सिंहासन पर आरूढ़ थे तब उन पर चढ़ा ईमानदारी का आवरण  इतना सख्त व ओपेक (opaque) यानी अल्पपारदर्शक था कि उसके पार प्रजा का हाल  देख पाने में वे असमर्थ थे।

    ईमानदार तो वे इतने रहे कि विपक्षी खेमों के सारे सेनापति भी अपने बच्चों व नाती-पोतों को उनकी ईमानदारी की कहानियाँ सुनाते हुए नहीं अघाते। वे ईमानदार हैं उस 'बाबाकी तरह जिसने ब्रह्मचर्य व्रत  ले रखा है और जो स्त्री की छाया से भी कोसों दूर भागता है। उनका कोई संगी-साथी उनके ही सामने किसी अबला का चीरहरण करता रहा और वे निस्पृह व शांतचित्त बैठे रहे। हालांकि  वे दुराचारी का वध करने में समर्थ थे  पर इसका जोखिम उन्होंने इसलिए नहीं उठाया कि उन्हें डर था कि इस चक्कर में स्त्री स्पर्श से कहीं उनका ब्रह्मचर्य न टूट जाए!


    वे ईमानदार हैं 'शोलेके ठाकुर की तरह जिसके हाथ उस गब्बर ने काट रखे थे जिसकी कोयले की खदानें हैं। इस ठाकुर की सहायता के लिए गाँव वाले सामने आ तो रहे हैं पर उनमें कोई जय या वीरू नहीं हैं। उनके सामने देश की कोयला खदानें तारामती की तरह गिड़गिड़ातीहीं  मगर वे हरीशचंद्र की तरह अपना फर्ज़ निभाने को मजबूर थे वे हेमलेट की तरह 'टू बी ऑर नॉट टू बीके द्वंद्व में फँसे ईमानदार राजकुमार हैं जिसे मालूम था कि कोयला खानों के लुटेरे के रूप में बाप का हत्यारा सामने है मगर मासूम प्रिंस हाथ  बाँधे  खड़ा है।


     'जाकी रही भावना जैसीप्रभु मूरत देखी तिन वैसीकी तर्ज पर वे ईमानदार हैं इसलिए स्टाफ और सारे सहयोगियों  में भी ईमानदार की छवि ही देखते रहे। जैसे भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली थीवैसे ही हमारे सर जी ने भी अपने कार्यकाल में कोयला खानों के आवंटन में कभी हस्तक्षेप न करने की शपथ ले रखी थी। वे धृतराष्ट्र की तरह ईमानदार हैं जिन्होंने 'कुछ भी होतेअपनी  आँखों से देखा ही नहीं है तो किसी को दोषी कैसे मानेंवे उस ईमानदार वणिक की तरह हैं जिसके लिए नौकाओं में भरा हुआ सारा माल-असबाब महज़ 'लता-पत्रही है। कोई 'राजा बेटा', कोई 'दाड़ी वाला' या  कोई हिंडाल्को उसमें सेंध लगा भी दे तो  क्या फर्क पड़ता है? उनके पार्टी के सारे सक्रिय कार्यकर्ता उनकी  ईमानदारी का स्तुतिगान करते हुए 24 अकबर रोड से 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग तक का लंबा मार्च कुछ इस अंदाज़ में निकालते नजर आए मानो उन्हें कोई समन नहीं सम्मान प्राप्त हुआ है।                        Description: Description: C:\Program Files\Microsoft Office\MEDIA\OFFICE14\Bullets\BD21296_.gif
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Wednesday 11 March 2015

पास्ट परफेक्ट का फेर

        
                      पास्ट परफेक्ट का फेर
                                                         ओम वर्मा
शाहिद अफरीदी, मदनलाल, कपिल देव, राशिद लतीफ, हरभजनसिंह और मुझमें एक जबर्दस्त समानता या गणित की भाषा में कहूँ तो कॉमन फेक्टर है हमारा अँगरेजी ज्ञान। मैं आज भी बेरन और भैंरो की पहेली सुलझा नहीं पाया हूँ और फेसबुक पर अँगरेजी में लिखी कमेंट पर बिना पढ़े लाइक ठोक दिया करता हूँ। मैं गाँव के स्कूलों में उस दौर में पढ़ा हूँ जब गुरुजी जिस विद्यार्थी से कहते थे कि जाकर छड़ी तोड़कर लाउसका पहला प्रयोग भी उसी पर करते थे।
    हमें अँगरेजी पढ़ाते थे मेहता सर। उनका विश्वास था कि अँगरेजी पढ़ाने के लिए जनरल डायर जैसे अँगरेज की तरह ही सख्त होना जरूरी है। जाहिर है कि उनका मुँह कम और हाथ ज्यादा चलते थे। चाक से ब्लैक-बोर्ड पर वे निशान कम बनाते थेहमारी हथेली पर उनकी छड़ी के निशान ज्यादा बनते थे। एक दिन पास्ट परफेक्ट टेंस पढ़ाते हुए उन्होंने ग्रामर की किताब से दो वाक्य लिखवाए - “मेरे स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रैन रवाना हो चुकी थी”, और “पुलिस के आने से पहले चोर भाग चुका था।“ फिर सबसे इसी टेंस के ऐसे बीस बीस वाक्य लिखने को कहा। कुछ ने एक-दो लिखे और और कई ने नहीं लिखे। जाहिर है कि सभी न लिखने वालों पर जिनमें मैं भी थामहँगाई भत्ते की किश्त न मिलने का गुस्सा उतरना ही था।
   अँगरेजी ज्ञान तो मेरा आज भी जस का तस है पर देखता हूँ कि ऐसे कथन तो चारों ओर बिखरे पड़े हैं जिन्हें पास्ट परफेक्ट टेंस के उदाहरण के रूप में व्याकरण की किताबों में दर्ज किया जा सकता है। कुछ उदाहरण आपके सम्मुख प्रस्तुत है।
  बज़ट सत्र प्रारंभ होने से पूर्व वित्त्मंत्री के भाषण की जानकारियाँ लीक हो चुकी थीं। सरकार के तेल और गैस के उत्पादन तथा आयात पर कोई नीति बनाने से पहले ही बिना गाजर खाए ही कुछ करमचंद जरूरी दस्तावेज़ तेल कंपनियों को पहुँचा कर उन्हें लाभान्वि कर चुके थे। बढ़ता तापमान ‘एच1एन1 वायरस’ को निष्क्रिय करे उससे पूर्व वह महामारी का रूप धारण कर कई लोगों की जान ले चुका था। बिहार में नाव के किनारे से पहुँचने से पहले ‘मांझी’ उसे मझधार में डूबता छोड़ चुके थे। दिल्ली में मुफ्त वाई-फाई शुरू होने से पहले ही कई लोग अपने पुराने मोबाइल डस्टबिन में फेककर नए स्मार्टफोन खरीद चुके थे। इसके पहले कि वहाँ पानी- बिजली मुफ्त होलोग या तो छोटी टंकियाँ तोड़कर बड़ी टंकियाँ बनवा चुके थे या प्लास्टिक की पुरानी छोटी टंकियों के बदले एक्सचेंज ऑफर में बड़ी टंकियाँ खरीद चुके थे और घरों में ए/सी लगवा चुके थे।  
   अपना नाम लिखे दस लाख के सूट को वे उतारकर रखते इससे पूर्व ही दिल्ली की जनता किसी और का नाम अपने मानस पटल पर लिख चुकी थी। वीआयपी सूट की निलामी में बोली पाँच करोड़ तक पहुँचने से पूर्व घड़ी शाम के पाँच बजा चुकी थी। सूखाग्रस्त क्षेत्र में मंत्री जी द्वारा घोषित सहायता राशि का वितरण होते होते वहाँ बाढ़ आ चुकी थी और बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में सहायता राशि पहुँचने से पहले वहाँ सूखे का प्रकोप प्रारंभ हो चुका था। पिता द्वारा लड़के वालों की माँग पूरी किए जाने से पहले बेटी ससुराल में जला दी गई थी। नई फिल्म के सिनेमा हॉल में रिलीज होने से पहले उसकी डीवीडी बाजार में आ चुकी थी। इससे पहले कि सरकार दिल्ली के वीभत्स काण्ड पर बनी डॉक्युमेंट्री को रुकवा पाते, बीबीसी वाले उसका प्रसारण कर चुके थे।
   दीनापुर में बलात्कार के आरोपी की अदालत में पेशी होने से पहले आक्रोषित जन समूह कानून हाथ में लेकर अभियुक्त को दण्डित कर चुका था। इससे पहले कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर सरकार से समर्थन वापसी पर विचार करती, वे एक खौफनाक अलगाववादी को रिहा कर चुके थे। होली पर मैं अपनी पत्नी को रंग लगाता उससे पहले मेरा 'मित्र' उसे मुगले आजम की रीलों की तरह संपूर्ण रंगीन बचा चुका था। मुंबई के दंगों में शहीद हुए हेमंत करकरे का उठावना होने से पहले जीबीनि के अधिकारी स्वयं उनकी बीमा राशि का चेक लेकर उनके घर पहुँच चुके थे। कन्या पक्ष के यहाँ बरात के पहुँचने से पूर्व दुल्हन अपने प्रेमी के साथ भाग चुकी थी। बजट सत्र शुरू होने से पहले  अपोजीशन लीडर चिंतन के लिए विदेश प्रस्थान कर चुके थे। इससे पूर्व कि आप दिल्ली में अपनी प्रशासनिक पकड़ जमा पाती, दो संस्थापक सदस्य बाग़ी करार देकर पीएसी से निकाले जा चुके थे।   
   2007 के वर्ल्ड कप में सीनियर खिलाड़ियों के फॉर्म में लौटने से पहले टीम मुकाबले से बाहर हो चुकी थी। इस वर्ल्ड कप में पड़ौसी देश की क्रिकेट टीम अपना अगला मुक़ाबला खेलने से पहले हार का ठीकरा पर्थ की पिच पर फोड़ चुके थे। मुंबई में एक बार एलबीडब्ल्यू की अपील पर अंपायर के उंगली उठाने से पहले ही एक भद्र बल्लेबाज पैवेलियन की राह पकड़ चुका था। इधर देश में एक धार्मिक नेता द्वारा बोले गए विषैले बोलों से हुई किरकिरी का डैमेज कंट्रोल कर पाते उसके पहले ही दूसरे धार्मिक नेता की जुबान रूपी कमान उससे कहीं अधिक विषैले तीर छोड़ चुकी थी। और अंत में यही कि उनके द्वारा जारी शांति अपील के छपकर आने से पहले धार्मिक नेता के बयानों से भड़की आग कई घर जला चुकी थी।
    दैनिक जीवन में इस टेंस के ऐसे वाक्यों की श्रृंखला अनवरत जारी है। मगर अफसोस कि अँगरेजी भाषा के मेरे ‘ज्ञानमें वृद्धि होने से पहले मेहता सर स्वर्ग सिधार चुके थे  
                                                                        
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Tuesday 3 March 2015

जरूरत है एक बजटावतार की !



            जरूरत है एक बज़टावतार की !
                                     ओम वर्मा 
                              
                                        
भारतीय अर्थ-व्यवस्था के फ़लक पर तीन बिंदु हैं- ‘सरकारी बज़ट’, ‘आम आदमी और वित्तमंत्री जिन्हें मिलाओ तो बनता है - ‘घाटे का त्रिकोण। दुर्भाग्य से इसके तीनों कोणों का योग कभी भी लाभ और समृद्धि के दो समकोणों के योग की बराबरी नहीं कर पाया है।
     हाँयह बजट का सत्र यदि किसी के लिए खुशगवार साबित होता है तो वे हैं हमारे त्वरित टिप्पणी विशेषज्ञकार्टूनिस्टऔर टीवी चैनलों के सूत्रधार! और कोई त्रिशंकु बन कर रह जाता है तो वह है हमारे प्रेमचंद का होरी और हमारे शिवपालगंज का शनिचर! हमारे अर्थशास्त्री विदेशी छात्रों के लिए किताबें लिख सकते हैंसालों तक रिज़र्व बैंक सम्हालने से लेकर लाल किले पर झण्डा फहरा सकते हैंतीस-बत्तीस रु. रोज में गरीबों को सुख से रहने का फरमान जारी कर सकते हैंलेकिन बजट का घाटा आज तक पूरा नहीं कर सके। होरी के सर पर कर्ज़ कल भी था तो आज भी है... लंगड़ फैसले की नकल के लिए कल भी अदालतों के चक्कर लगाता था और आज भी लगाता है। उधर  शिवाजी पार्क में नानी पालखीवाला का बजट भाषण सुनने के लिए साल दर साल ज्यों-ज्यों भीड़ बढ़ी थी, त्यों-त्यों  इधर बजट का घाटा और अमीरी गरीबी का फासला बढ़ता गया था।  
     जिस प्रकार मंचीय चुटकुलेबाजीतुकबंदी और ज़ुल्फों के पेचो-खम के वर्णन में उम्र गुजार देने वाले ‘कवियों’ को समकालीन कविता और सिर्फ सुंदरियों के चित्र बनाने वाले को एक अमूर्त चित्र कभी समझ में नहीं आताउसी प्रकार अपने राम को भी वित्तमंत्रियों का बजट भाषण आज तक कभी समझ में नहीं आया। मैंने एक त्वरित टिप्पणीकार अर्थशास्त्री से पूछा-
    “बजट आपकी राय में कैसा है?”
     उनके मुखारविंद पर प्रतिक्रिया तो धरना देने को उद्यत केजरीवाल की तरह तैयार बैठी थी। वे बोले-
    “बजट में डेफ़िसिट इतने से इतने परसेंट हो गया हैइससे इतने परसेंट इंफ्लेशन होगा और विकास की दर इतनी हो जाएगी... सेंसेक्स इतना गिर जाएगा...
     “शास्त्रीजीआप सिर्फ यह बताइए कि इससे आम आदमी के अच्छे दिन आएंगे या नहीं?” मैं अर्नब गोस्वामी के कांग्रेस उपाध्यक्ष से लिए गए अद्भुत इंटरव्यू की तरह सामने वाले की बालू में से तेल निकालने का प्रयास करने लगा।
     “यह बजट थोड़ा अच्छा है और थोड़ा खराब!एक डिप्लोमेटिक जवाब प्राप्त हुआ।
     “एक बात कुछ बोलिएअच्छा है या खराब?” मैंने भी चील के घोसले में माँस तलाशना चाहा।
     “यार हम इतने सालों से त्वरित टिप्पणी कर रहे हैंपर हमारी खुद समझ में नहीं आया कि हम बजट की तारीफ कर रहे हैं या आलोचना…,” चश्मा चढ़ाते हुए वे बोले, “आज तुम्हें क्या समझाएँचलो हटो! मुझे बजट पर परिचर्चा में भाग लेने के लिए स्टुडियो जाना है।
     मेरा मन बैरागी हो उठा और प्रभु स्मरण कर बैठा। हे दीनबंधु! हे दीनानाथ!! जैसे तुमने त्रेता में रावण को मारने के लिए और द्वापर में कंस के वध के लिए अवतार लिया था, वैसे ही कलयुग में अच्छे दिन लाने के लिए बजटावतार कब लोगे? अब गीता वाला वचन निभाने का समय आ ही गया है प्रभु!
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