Sunday, 31 January 2016
Friday, 22 January 2016
Monday, 18 January 2016
Sunday, 17 January 2016
Wednesday, 13 January 2016
Saturday, 9 January 2016
व्यंग्य -आखिर वे मान ही गए !, नईदुनिया (23.01.13)
व्यंग्य (नईदुनिया,
23.01.13)
आखिर वे मान ही गए !
ओम वर्मा
अंततः
वे मान ही गए ! उनके उद्गार सुन माता कुछ यूँ द्रवित हुईं जैसे राम की वनवास से
वापसी पर माता कौशल्या बिलखी थीं। भक्त उन्हें मन मंदिर में तो बसा ही चुके थे,
बस सियासी जमीन के मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा करना बाकी थी। उन्होंने
भी भक्तों को निराश नहीं किया या यों कहें कि निराश करने का ऑप्शन उनके पास था भी
नहीं। राजा सा. उन्हें अपने जीवन में एक बार राज सिंहासन पर देखने की मनोकामना से
बस एक कदम दूर हैं। एक बड़े भाई जी की मुराद है कि वे नायब सदर भले ही दिन के बारह
बजे बने हैं पर वज़ीरे आलम तो कम से कम रात के बारह बजे से ही बन जाएँ।
उनकी बात में एक खानदानी वज़न है। उनके पिताश्री
के नानाजी ने जैसे ही कहा था कि ‘आराम
हराम है’ कि तभी खट दनी
से चीन की फौज़ ने आराम करना छोड़कर सीमा पर आक्रमण कर दिया था। फिर उनकी दादीजी ने
जैसे ही ‘गरीबी हटाओ’
का नारा दिया कि कुछ पार्टीजनों ने अपनी व कुछ ने अपनी आने वाली पीढ़ियों की गरीबी
को जड़ से उखाड़ फेंका। बाकी बचे लोग आज डीज़ल-पेट्रोल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाकर
पेट्रोलियम कंपनियों की गरीबी हटाने में लगे हैं। दादी के बाद उनके पिताश्री ने
कुछ नापाकियों को नानी याद जरूर दिलाई थी मगर भाई लोग अपनी नानी के बजाय किसी
शैतान की नानी के पास पहुँच गए और वहाँ से सिर काट कर घर लाने की शिक्षा ले आए।
पिताश्री ने सिर्फ 15 फीसदी माल सही जगह पहुँचना कबूल तो किया था मगर शेष 85 फीसदी
माल किस ‘ब्लैक होल’
में चला जाता है यह आज तक बरमूडा त्रिकोणों के रहस्यों की तरह अबूझ है। देखना
दिलचस्प होगा कि उनका 15 को 99 तक लाने का नारा क्या गुल खिलाता है।
गब्बर की तरह इसी छिपे 85 फीसदी माल को ढूढ़
कर लाने के लिए वे ‘शोले’
के ठाकुर की तरह दो की जगह 40-50 फौज़ियों की तलाश में हैं। ऐसे ही खोज़ अभियान के
दौरान माताश्री कभी किसी को आदमखोर बताकर आत्मविभोर हो जाती हैं तो कभी लाल की
बलैयाँ लेने लगती हैं। वैसे माताश्री ने सही चेताया है कि आगे का जीवन जहर का
प्याला है। काश ! दरबारी लोग यह समझा पाते कि किसी को आदमखोर कह देने से,
किसी दलित के घर रात गुजार देने से या मंच पर कागज़ फाड़ देने से जहर की तासीर कम
नहीं हो सकती। जहर को अमृत बनाने के लिए रानी को भी ‘मीरा’
बनना पड़ता है।
फिलहाल तो दस,
जनपथ से लेकर जयपुर के चिंता भवन तक जय जयकार के शोर में घीसू माधो,
लंगड़
और दामिनियों की चीख पुकार घुटती जा रही है और ग्वाल बाल संग रास रचाने वाला या
सुदामा के संग वन से लकड़ी काटकर लाने वाला राजा बने उससे पूर्व ही मथुरा के
सिंहासन पर ‘ऊपर से लाकर’
बैठाने की तैयारी की जा चुकी है। कुछ नासमझ इसे वंशवाद के रूप में देखें तो देखें
!
***
100,
रामनगर एक्सटेंशन,
देवास 455001 (म.प्र.) मो. 9302379199
Friday, 8 January 2016
Monday, 4 January 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)