Wednesday 1 July 2020

प्रसंग है कि (मूल रचना कवि ओमप्रकाश आदित्य की है। इसमें अंतिम पद मेरा रचा है। )

प्रसंग है कि -
एक अल्हड़ तरुणी बहुत ही उदास मन से एक छज्जे पर बैठी है, केश खुले हुए हैं और उदास मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली हैं।

सोचिये हिन्दी साहित्य के विभिन्न कवि इस प्रसंग पर कैसे लिखते.....
मैथिली शरण गुप्त -
अट्टालिका पर बैठकर क्यों अनमनी सी हो अहो 
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो ? 
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, कन्या न भूतल पर गिरे।

काका हाथरसी -
छत पर बैठी सुंदरी, कूदन को तैयार।  
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार॥  
भली करे करतार, न दे दे कोई धक्का।  
ऊपर मोटी नार, ज़मीं पर पतरे कक्का॥  
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ना।  
जी चाहे तहँ कूद, मेरे ऊपर न पड़ना॥ 

गुलजार -
वो बरसों पुरानी इमारत 
शायद 
आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी 
कई सदियों से 
उसकी छत से कोई कूदा नहीं था।
और आज 
इस तंगहाल 
परेशां 
स्याह आँखों वाली 
उस लड़की ने 
इमारत के सफ़े 
जैसे खोल ही दिए
आज फिर कुछ बात होगी 
सुना है इमारत खुश बहुत है...!

हरिवंश राय बच्चन -
किस उलझन से व्यथित आज हो  
निश्चय तुमने कर डाला
घर चौखट को चली त्यागकर 
चढ़ बैठी चौथा माला
     अभी शेष है, जीवन सुरभित
     छककर के रसपान करो 
अगर प्राण त्यागे जो तुमने, 
नहीं मिलेगी मधुशाला।

प्रसून जोशी
जिंदगी को तोड़ कर 
मरोड़ कर 
गुल्लकों को फोड़ कर 
क्या हुआ जो जा रही हो 
सोहबतों को छोड़ कर। 

रहीम
रहिमन कभउँ न फाँदिये, छत ऊपर दीवार।  
कर  छूटे  तो जा  गिरे, फूटै और कपार॥ 

तुलसी
छत पर जा चढ़ बैठी नारी। 
भई उदास कोप व्रतधारी। 
कूद न जाना ओ दुखियारी 
आने वाले हैं रघुरारी। 

कबीर-
छत से कभी न कूदिए, चाहे कष्ट हज़ार। 
तापे संकट ना कटे , खुले नरक का द्वार॥

श्याम नारायण पांडे -
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी 
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी 
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से 
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से 
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।

गोपाल दास नीरज -
हो न उदास रूपसी, तू मुस्कराती जा
हर कहीं तू ज़िंदगी के गुल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा। 

राम कुमार वर्मा -
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाट मत जोहो।
जानता हूँ ज़िंदगी का
खो चुकी हो चाव अब तुम
और चढ़ के छत पे भरसक
खा चुकी हो ताव अब तुम
उसके उर के भार को समझो।
जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोओ,
हे सुंदरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।

हनी सिंह
कूद जा डार्लिंग क्या रखा है 
इस बेदर्द जमाने में 
यो यो की तो सीडी बज री 
डिस्को में हरयाणे में 
रोना धोना बंद कर
कर ले डांस हनी के गाने में 
रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये 
फार्म हाउस के तहखाने में। 

ओम वर्मा  (व्यंग्यकार व दोहाकार)
गोरी छज्जे पर चढ़ी, मरने को तैयार।
पहुँच गया है मीडिया, फँसता देख शिकार॥ 
फँसता देख शिकार, पूछते प्रश्न अनोखे।
अवसर का ले लाभ, रखा है उसको रोके॥
कहे 'ओम' महसूस, कर रही कैसा छोरी। 
दे जा उन्हें जवाब, बाद में मरना गोरी॥
                    * * *