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Saturday, 16 April 2016
व्यंग्य - जब संकटमोचक भगवान पर भी आ गया कानूनी 'संकट'
व्यंग्य
जब संकटमोचक भगवान पर भी आ गया कानूनी 'संकट'
जब संकटमोचक भगवान पर भी आ गया कानूनी 'संकट'
ओम वर्मा
वैसे तो वे संकटमोचक हैं मगर एक दिन कुछ समय के लिए ही सही, संकट उन पर भी आ गया। बेगूसराय में कुछ भक्तजनों ने देश में कई अन्य स्थानों पर रातों रात ‘स्थापित’ कर दिए जाने वाले कुछ धार्मिक स्थलों की तरह सरकारी जमीन पर उनका मंदिर बना रखा था। अब सरकार का तो क्या है कि जब तक चाहे अतिक्रमण की तरफ से आँख मूँदकर साइलेंट मोड में बैठी रहे, चाहे तो उसे रातों-रात साबित होते हैं। वे अगर चाहें तो अतिक्रमण हटाने वालों की टंटफोर कर दें या चाहें तो खुद रथ वगैरह के साथ जुलूस लेकर चले जाएँ और बरसों से स्थापित किसी भी ‘संरचना’ को रातों –रात खंडहर में बदलकर वोट की खेती करने लायक चरागाह में तब्दील कर दें। ‘अतिक्रमण’ को लेकर कुछ लोगों का मिजाज देशकाल व परिस्थिति के अनुसार भी बदलता रहता है।
मगर यहाँ मामला कुछ अलग है। यहाँ सरकार को बनाना है एक ओवरब्रिज जिसके रास्ते में आ गए बजरंगबली। सरकारी महकमे में कोई नील व नल तो हैं नहीं जो आँख मीचकर जहाँ भी पत्थर फेंक दें, वहीं सेतु तैयार हो जाए! लिहाजा सरकार को यहाँ कानूनी प्रक्रिया ही अपनाना पड़ी। उन्होंने पुल की राह में बाधा बन रहे बजरंगबली के नाम ही तत्काल अतिक्रमण हटाने एवं न हटाने की सूरत में शासन द्वारा बलपूर्वक हटाए जाने पर खर्च की वसूली का कानूनी नोटिस जारी कर दिया।
सरकारी कारिंदा नोटिस लेकर बजरंगबली को खोजने पहुँचा तो उसे समझ में आया कि बजरंगबली उन हस्ती का नाम है जो नोटिस लेते नहीं बल्कि देते हैं जिसके लिए चाहे उन्हें समुद्र पार करके ही क्यों न जाना पड़े। वे नोटिस की अवहेलना करने वाले की वाटिका से लेकर स्वर्णनागरी तक को नेस्त-नाबूद कर सकते हैं। उनकी यह असहिष्णुता आज अपने ही स्वार्थ के लिए अपने ही देश की संपत्ति को फूँकने वालों से एकदम उलट है। उसे यह भी समझ में आ गया कि जिस शख्स के नाम का नोटिस वह लाया है वह अतिक्रमण या अधिग्रहण की सीमाओं से परे है। अगर रूबरू नोटिस उन्हें ही देना हो तो शायद स्वर्गलोक तक चक्कर लगाना पड़े। अब सरकार वहाँ तक का टीए/डीए देने से तो रही लिहाजा नोटिस में बजरंगबली की जगह पुजारी का नाम डालकर उसे थमा दिया गया।
कानूनी प्रक्रिया में आजकल देवी देवता व प्राणियों के मानवीकरण की घटनाएँ एक क्रांतिकारी टर्निंग पॉइंट है। बिहार के ही सीतामढ़ी में एक वकील ने अदालत में याचिका दाखिल कर प्रभु श्रीराम को पत्नी के परित्याग को लेकर स्त्री-उत्पीड़न की धारा के तहत समन जारी करने की मांग की जिसे शायद ‘कानून की नजर में सब बराबर होते हैं ‘ के सिद्धान्त के तहत ग्राह्य भी कर लिया गया था। बाद में शासकीय अधिवक्ता ने धार्मिक पेचीदगी के चलते प्रभु श्रीराम को अदालत में न बुला सकने की विवशता बताई तब प्रकरण खारिज हुआ। आज जरूरत इस बात की है कि सारे पौराणिक केस ‘रीओपन’ किए जाएँ...! अगर ऐसा हुआ तो दृश्य कुछ यूँ होगा कि भगवान शंकर पर एक तरफ पुत्र की गर्दन उड़ा देने का अभियोग चल रहा होगा तो दूसरी ओर उन्हें ‘प्लास्टिक सर्जरी’ का जनक बताकर चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की माँग भी उठ सकती है। कृष्ण भगवान पर माखनचोरी का अभियोग लगाया जा सकता है। लांड्री संचालक पर देवी सीता के खिलाफ विषवमन का आरोप, पहले कौरव –पांडव पर जुएबाजी और दुशासन पर महिला-उत्पीड़न का प्रकरण, लक्ष्मण पर शूर्पनखा के अंग-भंग का प्रकरण, इत्यादि, इत्यादि! उधर एक न्यायाधीश महोदय जब अपने बगीचे में बार बार घुस कर ‘चर’ जाने वाली एक बकरी से परेशान हो गए तो उन्होंने बकरी मालिक को बकरी सहित अदालत में हाजिर होने का समन जारी कर दिया था। इससे उम्मीद जागती है कि कल सरकारी फाइलें खा जाने वाली ‘दीमकों’ की‘खबर’ भी अवश्य ली जाएगी। बहरहाल बकरी की गिरफ्तारी या तदुपरान्त जमानत हुई या नहीं इस मामले में ‘सबसे पहले हमने दिखाया’ कहने वाले खबरिया चैनल भी अभी तक खामोश हैं।
100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
Friday, 15 April 2016
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