चुनावी कुण्डलियाँ
एक
टिकटों को लेकर
मची, कैसी हाहाकार।
कोई जिद पर है अड़ा, किया कहीं इनकार॥
किया कहीं इंकार, ‘आप’ देने को आतुर।
रहे 'कमल' को थाम, कई अब ‘हाथ बहादुर’॥
कहे ‘ओम’ कविराय, हकालों उन नकटों को।
बेच रहे ईमान, देखकर जो टिकटों को॥
कोई जिद पर है अड़ा, किया कहीं इनकार॥
किया कहीं इंकार, ‘आप’ देने को आतुर।
रहे 'कमल' को थाम, कई अब ‘हाथ बहादुर’॥
कहे ‘ओम’ कविराय, हकालों उन नकटों को।
बेच रहे ईमान, देखकर जो टिकटों को॥
दो
बिल्ली
मासी ठीक हो, या कोई
तकलीफ।
सुना तुम्हारे लाल को, आई थी कल छींक॥
आई थी कल छींक, रहे ना छींका खाली।
लगा पूछने श्वान, देखकर बिल्ली काली॥
कहे ‘ओम’ तज पाप, चलें जब सब जन काशी।
आए आम चुनाव, समझना बिल्ली मासी॥
सुना तुम्हारे लाल को, आई थी कल छींक॥
आई थी कल छींक, रहे ना छींका खाली।
लगा पूछने श्वान, देखकर बिल्ली काली॥
कहे ‘ओम’ तज पाप, चलें जब सब जन काशी।
आए आम चुनाव, समझना बिल्ली मासी॥
तीन
उनके वादे घोषणा, कपट तंत्र हैं मात्र।
जैसे उनके हाथ में, लगा है अक्षयपात्र॥
लगा है अक्षयपात्र, कहाँ से आए पैसा।
बंदर अब मत नाच, मदारी चाहे वैसा॥
कहे ‘ओम’ कविराय,समझ लो उधर इरादे।
हैं शिकार के जाल, आज सब उनके वादे॥
जैसे उनके हाथ में, लगा है अक्षयपात्र॥
लगा है अक्षयपात्र, कहाँ से आए पैसा।
बंदर अब मत नाच, मदारी चाहे वैसा॥
कहे ‘ओम’ कविराय,समझ लो उधर इरादे।
हैं शिकार के जाल, आज सब उनके वादे॥
चार
परसों उसकी
थी ‘सपा’, कल पंजे
का साथ। अब लगता है भाजपा, के बिन हुआ अनाथ॥
के बिन हुआ अनाथ, वहाँ कल दम था ‘घुटता’।
आज लगे वो पाक़, जहाँ सब कल था ‘लुटता’॥
कहे ‘ओम’ कविराय, लाभ बिन क्यों तुम तरसो।
थामेंगे कल ‘हाथ’, देखना फिर कल परसों॥
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बढ़िया कुण्डलियाँ :)
ReplyDeleteधन्यवाद संतोषजी ।
Delete-ओम