Friday, 27 February 2015

विचार - न करो राहुल बिश्राम!


विचार
            न करो राहुल बिश्राम!
                                    ओम वर्मा
देश की सबसे बड़ी व सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होते हुए भी कांग्रेस आज हाशिए पर सिमटी हुई है। दिल्ली में संसद में जहाँ आज मात्र चौवालीस पर सिमटी होने के कारण वह विपक्ष की हैसियत भी नहीं रखती वहीं ‘आप’ ने उसे विधानसभा में डायनोसार की तरह विलुप्त कर दिया है। इस दुर्गति का सब अपने अपने ढंग से विश्लेषण कर रहे हैं और नाना प्रकार के तर्क-कुतर्क किए जा रहे हैं। इन बातों को परे रखकर देश का कोई भी विचारवान नागरिक इस बात पर पूरी तरह से सहमत होगा कि आज लोकतंत्र की रक्षा के लिए कांग्रेस का एक मजबूत पार्टी के रूप में पुनर्जीवित होना बेहद जरूरी है। इस हेतु पार्टी को न सिर्फ प्रेरक नेतृत्व की जरूरत है बल्कि पार्टी के सभी वरिष्ठजनों से चुनावों के समय जैसी सक्रियता अपेक्षित है।
   संसद के कार्यकाल में बजट सत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह बीजेपी सरकार का पूर्ण वित्तीय वर्ष के लिए पहला बजट है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में जबकि  प्रतिपक्ष की भूमिका बहुत ही अहम हो जाती हैपार्टी उपाध्यक्ष का ‘अवकाश’ पर चले जाना लोकतंत्र व पार्टी के पुनर्जीवित होने के लिए कोई अच्छा शगुन नहीं कहा जा सकता। वे विगत सत्र में सदन में सोते हुए देखे गए  यानी वहाँ होकर भी नहीं थे और इस बार भौतिक रूप से ही अदृश्य थे। हद तो तब हो गई जब दोनों बार उनकी स्थिति को 'विचारमग्न'  होने या चिंतन पर जाना बताया गया। उनके इस चिंतन से पार्टी को और कुछ हासिल हो न हो ‘चिंता’ जरूर हासिल हो गई है। यह ठीक वैसा ही है जैसे कल राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का कप्तान विश्व कप का क्वार्टर फायनल मैच छोड़कर अवकाश पर चला जाए और टीम में कोई खिलाड़ी दिग्विजयसिंह की तरह इसे कप्तान का टीम की मजबूती के लिए उठाया गया कदम बताए! लाख टके की बात यह है राहुल बाबा कि आपको जयपुर शिविर में उपाध्यक्ष पार्टी का नेतृत्व सम्हालने के लिए बनाया गया था न कि अवकाश पर जाने के लिए! तैरना सीखने के लिए पानी में उतरना ही पड़ता हैजमीन पर बैठे बैठे चिंतन करने से कोई तैरना नहीं सीख सकता। याद कीजिए रामायण का वह प्रसंग जिसमें हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे तब समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो जा यानी इन्हें अपने ऊपर विश्राम करने दे। इस पर हनुमान्‌जी ने पहले उसे हाथ से छूआफिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँयही नहीं जब सुरसा नामक सर्पों की माता ने उनका भक्षण करना चाहा तब भी उन्होंने उसे यही कहा कि श्री रामजी का कार्य करके मैं लौट आऊँ और सीताजी की खबर प्रभु को सुना दूँ तब मैं स्वयं आकर तुम्हारे मुँह में घुस जाऊँगायानी तब तुम मुझे खा लेना। यानी हर हालत में हनुमान जी जिस मिशन पर थे उसे  पूरा करे बिना वे किसी तरह का अवकाश नहीं चाहते थे। काश राहुल गांधी भी हनुमान जी की तरह यह संकल्प दोहराने की हिम्मत रख सकते कि कांग्रेस को सत्ता में लौटाए बिना मोहि कहाँ बिश्राम! अरे और कुछ नहीं तो सलमान खुर्शीद की इस बात का ही भरम रख लेते कि ‘राहुल गांधी चाहें तो रात के बारह बजे पीएम बन सकते हैं। क्या उन्हें दिग्विजयसिंह के इस संकल्प का भी तनिक भी ध्यान नहीं हैं कि वे अपने जीवन में एक बार उन्हें एक बार पीएम के रूप में देखना चाहते हैं। 
   काश! राहुल जी  कभी इस पर भी चिंतन करते कि जिस देश की आबादी में 65 प्रतिशत युवा हों वहाँ उनकी स्वीकार्यता आखिर क्यों नहीं बन सकीमेरे विचार में इस रुझान को बदलने या बनने से रोकने वाली दो सबसे महत्वपूर्ण घटनाएँ थीं उनका टाइम्स चैनल पर प्रसारित इंटरव्यू जिसमें उनकी सूई बार बार अटक जाती थी और अमेरिका के ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ में रॉबर्ट वाड्रा के मायाजाल का खुलासा होना। फिर रही सही कसर उनके हिंदी ज्ञान ने पूरी कर दी जिसकी वजह से वे ‘वन आउट ऑफ टू’ के लिए गुजरात में ‘एक में से दो’ बच्चे कुपोषित और पंजाब में  'सेवन आउट ऑफ टेन‘ के लिए सात में से दस युवा नशे की गिरफ्त में बताते हैं। जाहिर है कि पार्टी को पूर्ण कायाकल्प की जरूरत है जिसके लिए कुछ कड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं। 
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वेब पत्रिका Hindi Satire में व्यंग्य


Thursday, 19 February 2015

नईदुनिया, 20.02.15. में व्यंग्य


व्यंग्य
          नींद और धरना
                                 ओम वर्मा om.varma17@gmail.com
दार्शनिकों के अनुसार आहारनिद्राभय और काम भावना हर जीव की मूल प्रवृत्तियाँ हैं। इंसान में इसके अतिरिक्त होती है बुद्धि या विवेक, जिनके बिनागुनीजन कहते हैं कि मनुष्य पशु तुल्य है। निद्रा और काम भावना ही वे कारक हैं जिनसे अधिकांश कहानियों में ट्विस्ट आता है।
   निद्रा की जब भी बात होती है तो मुझे सबसे पहले ध्यान आता है त्रेता के एक  योद्धा कुंभकर्ण का जिसे प्राप्त अभिशाप (या वरदान) के कारण वह पूरे छह माह तक सोता था। इस कारण उसे एक खल पात्र समझा गया और बाद में मंच से लेकर टीवी तक की रामलीलाओं में उसे महज एक कॉमिक रिलीफ के लिए उपहास का पात्र बनाया जाता रहा है। उसके छह माह तक सोते रहने पर तो हमने खूब स्यापा कर लिया मगर यह नहीं सोचा कि छह माह सोने का मतलब छह माह नॉन स्टॉप यानी 24X7 जागना भी तो है। जिसे छह माह लगातार काम करने को मिल जाएं उसे और क्या चाहिएशाहजहाँ को उस समय ऐसे मिस्त्री व मजदूर मिल गए होते तो वे छह माह शयन अवस्था से उबर चुके कर्मियों को काम पर लगाकर ताजमहल को बाईस के बजाय ग्यारह वर्षों में ही तामीर करवा सकते थे। एक हाई प्रोफायल प्रेमी अपनी मोहब्बत की निशानी को पूरे ग्यारह वर्ष और निहार सकता था।
   सच तो यह है कि जैसे जैसे व्यक्ति ऊपर उठता है उसकी नींद का ग्राफ नीचे होता जाता है। इंदिरा जी सिर्फ चार घंटे सोती थीं तो वर्तमान पीएम सिर्फ तीन घंटे सोते हैं जिसकी प्रशंसा सैम अंकल भी करके गए हैं। और विदेशी मान्यता के बाद तो  हम वैसे भी हर बात को प्रमाणित मान ही लेते हैं। हाल ही में किरण दीदी को यह इल्हाम हुआ है कि वे नींद में कटौती कर इक्कीस घण्टे काम कर सकती हैं। काश यही इल्हाम उन्हें कुछ और पहले हो चुका होता तो उनकी पेराशूट लैंडिंग सफल हो जाती। उन्हें यह इल्हाम अपने सेवाकाल में नहीं हुआ वरना वे न जाने कितनी गाड़ियाँ और उठवा चुकी होतीं। या तो तब अपराध का ग्राफ बिलकुल नीचे लटक गया होता या यह भी हो सकता है कि एक दो वाधवा कमीशनों की और जरूरत पड़ जाती!
  जिसे नींद आना है उसे कहीं भी आ सकती है। कोई पार्टी उपाध्यक्ष अगर चिंतन में ज्यादा ही लीन हो जाए तो वह संसद के बीच सत्र में भी सो सकता है। सोना कभी कभी किसी के लिए सचमुच का ‘सोना’ साबित हो सकता हैजैसे वैज्ञानिक केकुले को नींद में झपकी लगी और स्वप्न में मुँह में पूँछ दाबे साँप दिखा जिससे ‘बेंझीन’ का क्लोज्ड रिंग संरचना सूत्र सामने आया। पेशावर में एक विद्यार्थी सोए रहने के कारण स्कूल नहीं जा सका और जनसँहार का शिकार होने से बच गया। कुछ ज्यादा ही सोने वालों को जगाने के लिए ‘धरने’ की अवधारणा ने जन्म लिया। कालांतर में धरना भी अपने मूल प्रयोजन से ऐसा भटका कि अपना अर्थ ही खो बैठा और मुख्यमंत्री अपने ही राज्य में धरने पर बैठने लगे। धीरे धीरे धरने से देश को हिला देने वाले तो हाशिए पर चले गए और उससे उपजे रत्न खुद को ‘अराजक’ घोषित करके भी सिंहासनारूढ़ हो गए।
   हमें जगाने के लिए अलार्म है। मगर कुछ लोग अलार्म के भी इतने आदी हो जाते हैं कि नींद में ही सिरहाने रखी घड़ी या मोबाइल के अलार्म को स्विच ऑफ कर देते हैं। ऐसों के लिए एक नया एप आया है जिसे स्मार्ट मोबाइल में डाउनलोड कर अलार्म लगाने पर जब वह बजता है तो मोबाइल में आपको दो स्थानों पर अंगूठे रखकर उठकर पूरे दो गोल चक्कर लगाने पड़ते हैं तब वह बंद होता है। जाहिर है कि इससे अच्छे अच्छे ‘कुंभकरणों’ की नींद उड़ जाती है। मोबाइल वाले ऐसा भी कोई एप बनाएँ तो मानूँ जिससे हम उन्हें जगा सकें जो निकले तो स्विटझरलैंड की बैंक जाने के लिए थे मगर राह में ही कहीं चादर तान कर सो गए हैं।   
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