Thursday 19 February 2015

नईदुनिया, 20.02.15. में व्यंग्य


व्यंग्य
          नींद और धरना
                                 ओम वर्मा om.varma17@gmail.com
दार्शनिकों के अनुसार आहारनिद्राभय और काम भावना हर जीव की मूल प्रवृत्तियाँ हैं। इंसान में इसके अतिरिक्त होती है बुद्धि या विवेक, जिनके बिनागुनीजन कहते हैं कि मनुष्य पशु तुल्य है। निद्रा और काम भावना ही वे कारक हैं जिनसे अधिकांश कहानियों में ट्विस्ट आता है।
   निद्रा की जब भी बात होती है तो मुझे सबसे पहले ध्यान आता है त्रेता के एक  योद्धा कुंभकर्ण का जिसे प्राप्त अभिशाप (या वरदान) के कारण वह पूरे छह माह तक सोता था। इस कारण उसे एक खल पात्र समझा गया और बाद में मंच से लेकर टीवी तक की रामलीलाओं में उसे महज एक कॉमिक रिलीफ के लिए उपहास का पात्र बनाया जाता रहा है। उसके छह माह तक सोते रहने पर तो हमने खूब स्यापा कर लिया मगर यह नहीं सोचा कि छह माह सोने का मतलब छह माह नॉन स्टॉप यानी 24X7 जागना भी तो है। जिसे छह माह लगातार काम करने को मिल जाएं उसे और क्या चाहिएशाहजहाँ को उस समय ऐसे मिस्त्री व मजदूर मिल गए होते तो वे छह माह शयन अवस्था से उबर चुके कर्मियों को काम पर लगाकर ताजमहल को बाईस के बजाय ग्यारह वर्षों में ही तामीर करवा सकते थे। एक हाई प्रोफायल प्रेमी अपनी मोहब्बत की निशानी को पूरे ग्यारह वर्ष और निहार सकता था।
   सच तो यह है कि जैसे जैसे व्यक्ति ऊपर उठता है उसकी नींद का ग्राफ नीचे होता जाता है। इंदिरा जी सिर्फ चार घंटे सोती थीं तो वर्तमान पीएम सिर्फ तीन घंटे सोते हैं जिसकी प्रशंसा सैम अंकल भी करके गए हैं। और विदेशी मान्यता के बाद तो  हम वैसे भी हर बात को प्रमाणित मान ही लेते हैं। हाल ही में किरण दीदी को यह इल्हाम हुआ है कि वे नींद में कटौती कर इक्कीस घण्टे काम कर सकती हैं। काश यही इल्हाम उन्हें कुछ और पहले हो चुका होता तो उनकी पेराशूट लैंडिंग सफल हो जाती। उन्हें यह इल्हाम अपने सेवाकाल में नहीं हुआ वरना वे न जाने कितनी गाड़ियाँ और उठवा चुकी होतीं। या तो तब अपराध का ग्राफ बिलकुल नीचे लटक गया होता या यह भी हो सकता है कि एक दो वाधवा कमीशनों की और जरूरत पड़ जाती!
  जिसे नींद आना है उसे कहीं भी आ सकती है। कोई पार्टी उपाध्यक्ष अगर चिंतन में ज्यादा ही लीन हो जाए तो वह संसद के बीच सत्र में भी सो सकता है। सोना कभी कभी किसी के लिए सचमुच का ‘सोना’ साबित हो सकता हैजैसे वैज्ञानिक केकुले को नींद में झपकी लगी और स्वप्न में मुँह में पूँछ दाबे साँप दिखा जिससे ‘बेंझीन’ का क्लोज्ड रिंग संरचना सूत्र सामने आया। पेशावर में एक विद्यार्थी सोए रहने के कारण स्कूल नहीं जा सका और जनसँहार का शिकार होने से बच गया। कुछ ज्यादा ही सोने वालों को जगाने के लिए ‘धरने’ की अवधारणा ने जन्म लिया। कालांतर में धरना भी अपने मूल प्रयोजन से ऐसा भटका कि अपना अर्थ ही खो बैठा और मुख्यमंत्री अपने ही राज्य में धरने पर बैठने लगे। धीरे धीरे धरने से देश को हिला देने वाले तो हाशिए पर चले गए और उससे उपजे रत्न खुद को ‘अराजक’ घोषित करके भी सिंहासनारूढ़ हो गए।
   हमें जगाने के लिए अलार्म है। मगर कुछ लोग अलार्म के भी इतने आदी हो जाते हैं कि नींद में ही सिरहाने रखी घड़ी या मोबाइल के अलार्म को स्विच ऑफ कर देते हैं। ऐसों के लिए एक नया एप आया है जिसे स्मार्ट मोबाइल में डाउनलोड कर अलार्म लगाने पर जब वह बजता है तो मोबाइल में आपको दो स्थानों पर अंगूठे रखकर उठकर पूरे दो गोल चक्कर लगाने पड़ते हैं तब वह बंद होता है। जाहिर है कि इससे अच्छे अच्छे ‘कुंभकरणों’ की नींद उड़ जाती है। मोबाइल वाले ऐसा भी कोई एप बनाएँ तो मानूँ जिससे हम उन्हें जगा सकें जो निकले तो स्विटझरलैंड की बैंक जाने के लिए थे मगर राह में ही कहीं चादर तान कर सो गए हैं।   
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