राजनीति में ठुल्लापन
-ओम वर्मा
माना कि अधिकांश पुलिसकर्मी रिश्वतखोर हैं, निर्ममता से ‘थर्ड डिग्री’ का प्रयोग करते रहते हैं
और बलात्कार आदि में भी वे समय समय पर योगदान देते रहते हैं, फिर भी उन्हें ‘ठुल्ला’ विशेषण से नवाजने के लिए
मेरा मन कतई गवारा नहीं करता।
आखिर पुलिस वाले भी तो इसी दुनिया के लोग हैं।
क्या पुलिस की भरती किसी और ग्रह पर जाकर
की जाती है? क्या वे त्रेतायुग के अयोध्यावासी हैं जहाँ हर नागरिक के सामने
प्रभु श्रीराम के आदर्शों का कोई मॉडल था जिसके
होते किसी के भी पथभ्रष्ट होने की संभावना ही नहीं थी? क्या हमारे देश में कोई
भी नेता या मंत्री एक पैसे की भी रिश्वत नहीं लेता? जब किसी आईएएस दंपती से लेकर आरटीओ के बाबुओं के
पास करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति निकल सकती है, जब मंत्री अपने निवास पर टेलीफोन की पचासों लाइनें
डलवाकर किसी टीवी चैनल को करोड़ों का लाभ पहुँचा सकता है तो सिर्फ पुलिस से ही शत
प्रतिशत ईमानदारी की अपेक्षा क्यों की जाए? क्या हमारे सारे व्यापारी हर खरीदी बिक्री का
पक्का बिल देते हैं? हमारे मंत्री बिना टेंडर निकाले करोड़ों की चिक्की खरीद सकते
हैं, हमारे
कुछ भाई विदेशी बैंकों में अपनी काली कमाई पहुँचा सकते हैं, और उनके मौसेरे भाई उसे
वापस लाने की बात कह कर दिल्ली का टिकट कटा सकते हैं तो किसी पुलिस जवान से ही
मर्यादित आचरण की उम्मीद क्यों की जाती है? जो नेता अपने पास अमर होने की मणि होते भी किसी
मधुमिता का मधु चूस सकता है या अपने पास अमन की मणि होते भी अपने ही घर का अमन
खत्म कर देता हो, उसे तो किसी ने आज तक ‘ठुल्ला’ नहीं कहा! प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्य
उम्मीदवारों के भविष्य को बर्बाद कर अयोग्य को आगे बढ़ाने वाले ‘ठुल्ले’ नहीं हैं पर दिल्ली में
किसी रेहड़ी वाले से अगर कोई वसूली करता है तो वह उन्हीं के द्वारा, उन्हीं पर राज करने के
लिए चुने गए सत्ताधीश की नजरों में ‘ठुल्ला’ कैसे हो सकता है? दिल्ली में जो मोटरसाइकिलों पर उत्पात मचाते हैं, चलती बस या टैक्सी में
किसी मासूम का चीर – हरण करते हैं या जब कोई महिला सरे आम ट्राफिक नियमों का
उल्लंघन करे और रोके जाने पर सिपाही की पिटाई करे, ऐसे लोगों में उन्हें कभी ‘ठुल्लापन’ नजर नहीं आया?
मेरी इस टिप्पणी में कृपया पुलिस के किसी भी
अनुचित आचरण को न्यायोचित ठहराने अथवा उसे महिमामंडित करने का प्रयास न समझें। बात
सिर्फ इतनी है कि जब तक कोई उम्मीदवार हजारों- लाखों की रिश्वत देकर पुलिस में भरती
होता रहेगा, जब तक किसी भी थानेदार पर ऊपर भेंट-पूजा पहुँचाने का दबाव
रहेगा, तब तक
किसी भी पुलिसकर्मी से पूरी तरह से सत्यनिष्ठ बने रहने की अपेक्षा रखना व्यर्थ है।
एक पुलिसवाला भी तो आखिर उसी संविधान की शपथ लेकर ‘देशभक्ति और जनसेवा’ प्रारंभ करता है जिसकी शपथ लेकर हमारे राजनेता
विधायक, सांसद या मंत्री बनते हैं। जिन राज्यों में जातिवाद का ज्यादा
बोलबाला है व राजनेताओं ने भ्रष्टाचार व परिवारवाद की सारी सीमाएँ पार कर दी हैं, उन राज्यों में पुलिस का
अमर्यादित आचरण भी हर बार सीमाओं का उल्लंघन करने लगता है। पूरे प्रकरण में पुलिस प्रमुख
बी.एस. बस्सी के संयमित आचरण की प्रशंसा की जानी चाहिए। हमेशा की तरह अरविंद सर ने
अपनी गलती के लिए एक बार फिर माफी मांग ली है। वे यह भूल रहे हैं कि राजनेता को गलती
करने पर माफी मिली या नहीं यह चुनाव परिणामों से ही पता चलता है। ***
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