नेता और पत्रकार – वत्रकार
किसी भी गाँव या कस्बे से लेकर देश की राजधानी तक, समाज से लेकर सरकार तक कहीं भी चले जाएँ, आप पाएंगे कि नेता अपने आप में पूरी किताब है और पत्रकार उसका उपसंहार या परिशिष्ट! कहीं भी, कभी भी, दोनों में अग्रगामी अगर कोई है तो वह नेता है अनुगामी अगर कोई है तो वह है पत्रकार! शब्दकोश तक में नेता पहले है और पत्रकार बाद में। नेता हँसता है तो खबर, रोए तो खबर। और मंच या सदन में सोता दिख जाए तो पहले ब्रेकिंग न्यूज़, फिर पूरा सोशल मीडिया सूरदास द्वारा श्रीकृष्ण के पालना शयन को लेकर किए गए वात्सल्य गान की तरह उनके शयन दृश्य का गुणगान करने लग जाता है। टीवी चैनल पर आशुतोष का रोना इसलिए चर्चित हुआ कि वे नेता थे। हालांकि वे नेता बनने के पहले आदमी थे और कुछ कुछ पत्रकार भी थे। मगर तब उन पर कोई चर्चा नहीं होती थी। युग की धाराओं को समय समय पर नेताओं ने ही बदला है पत्रकारों ने नहीं। पत्रकार सिर्फ बदली हुई धारा का अपने अपने ढंग से विश्लेषण किया करते हैं। नेता ने इमरजेंसी लगाई तो पत्रकारों ने उस पर किताबें लिखकर चांदी काटी। नेता ने सूट पहना तो लाखों का और उतार कर धर दिया तो करोड़ों का! पत्रकारों की बीवियों ने देखा-देखी कर अपने पतियों के उतरे कोट की कीमत जाननी चाही तो कुछ थाली भगौनों से ज्यादा कुछ नहीं मिला। कई पत्रकारों ने पत्रकारिता छोड़कर नेतागिरी का पेशा अपनाया है पर कभी किसी नेता ने आज तक नेतागिरी छोड़कर पत्रकारिता शुरू नहीं की। एक नेता कितना ही छोटा या बड़ा हो उसके जन्मदिन पर जब उसके छुटभैये पूरे पूरे पृष्ठ के विज्ञापन देते हैं तब अखबारों की बैलेंस शीट के कॉलम हरे भरे होने लगते हैं।
जिन आंदोलनों से सरकारें बनी या गिरी हैं वे जेपी और अन्ना हज़ारे जैसे नेता ने चलाए थे, किसी पत्रकार ने नहीं। अगर नेता नहीं होंगे तो हार-फूल, झंडे-डंडे, बैनर-वैनर, पुतले-वुतले, रैली-वैली और फीते-वीते सब धरे रह जाएंगे। यानी इनसे जुड़े सारे उद्योग धंधे बंद! खबरिया चैनलों की चौपालें राम के वनवास के बाद अयोध्या की गलियों की तरह सूनी हो जाएंगी। गली-मोहल्लों में गणेशोत्सव से लगाकर दुर्गोत्सव तक आरती और बड़े बड़े शिलान्यासों से लेकर पान की दुकानों के उदघाटन कौन करेगा? ये सब काम क्या पत्रकारों के बस के हैं?
इन दिनों नेता जीवन के सभी क्षेत्रों, ‘इन ऑल वाक्स ऑफ लाइफ’ (In all walks of life) बराबरी का दखल रखने लगा है। “जो आएगा वह जाएगा” जैसे अमूल्य ज्ञान को समझाने में कृष्ण को भी पूरे अट्ठारह अध्याय लग गए, उस गूढ़ ज्ञान के सूत्रवाक्य को प्रस्तुत करने में नेताजी को अट्ठारह सेकंड भी नहीं लगते है। प्रेस कांफ्रेंस पत्रकारों के लिए की जाती है जिसमें कभी कभी कोई असंतुष्ट शख्स नेता पर जूता भी फेंक देता है। क्या कभी किसी पत्रकार को यह ‘सम्मान’ प्राप्त हुआ है? हम बचपन से अपनी स्कूली शिक्षा में नेताओं पर निबंध लिखते आए हैं। आज तक किसी सरकारी या प्रायवेट स्कूल में किसी पत्रकार पर निबंध लिखवाया गया? चौराहों पर नेताओं की मूर्तियाँ लगती हैं या पत्रकारों की?
सारे चिंतन से यह निष्कर्ष सामने आता है कि उन्होंने अनजाने ही सही, बहस मुबाहिसे के लिए न सिर्फ एक ज्वलंत विषय, एक जबर्दस्त मुद्दा हमें दिया है बल्कि एक बहुत कड़वा सच भी उद्घाटित किया है कि वाकई ‘पत्रकार वत्रकार’ नेता से बड़ा न तो कभी था और न ही आगे होगा! यह बात उन्होंने जिस भी आशय या संदर्भ में कही हो हमें उसका खुले हृदय से स्वागत करना चाहिए!
संपर्क : 100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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