Thursday, 25 August 2016

व्यंग्य- भाईचारा, भाईगिरी और विपश्यना


व्यंग्य
                             भाईचारा, भाईगिरी और विपश्यना
                                                                                           ओम वर्मा
हालांकि “इंसान से इंसान का हो भाईचारा” उनके जीवन का मूल मंत्र है फिर भी उनसे लोगों की या लोगों की उनसे भाईचारे की कड़ियाँ कभी जुड़ ही नहीं पाईं। पहले अन्ना से वे दूर हुए फिर योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण से भाईचारा टूटा। वे देश में भाईचारा खोजने चले जरूर थे मगर उन्हीं के बारह  साथी भाईचारे का चारा छोडकर कारा की शोभा बढ़ा चुके हैं। उधर खुद के सीएम होते हुए भी उनका कम से कम पीएम के बारे में तो यह पक्का विश्वास या आरोप है कि वे उनसे हिंदुस्तानी भाईचारा नहीं बल्कि मुंबइया ‘भाईगिरी’ निभा रहे हैं। जाहिर है कि हिंदुस्तानी भाईचारे में तो भाई ही भाई के तमाम काम आता है जबकि मुंबइया भाईगिरी में ‘भाई’ अपने तो अपनेदूसरे के भाइयों का भी काम तमाम कर सकता है।
   तो यहाँ भाईचारा दाँव पर लगा है। इंसान इंसान के बीच भाईचारे की खोज में निकला छोटा भाई बड़े भाई को कायर व मनोरोगी भी कहता है मगर साथ ही उससे भयभीत भी है। एक संवैधानिक पद्धति से चुने गए राज्य प्रमुख को उसी संवैधानिक प्रक्रिया से चुने गए देश के मुखिया से जान का खतरा लगे तो लोकतंत्र को अपने आप पर ही शक होने लगता है।  चूहे को झपटने या किसी कुत्ते द्वारा झपटे जाने से बचने के लिए भाग रही कोई बिल्ली उनकी कार का रास्ता काट जाती है तो वह भी उन्हें पीएमओ से छोड़ी गई नजर आती है। कभी कभी मन में यह शुबहा होने लगता है कि कहीं हम रियासतों के युग में तो नहीं लौट गए हैं जहाँ छोटे राज्य का राजा पड़ोसी मुल्क के बड़े राजा से हमेशा डरा रहता था। दोनों के बीच या तो  संधि होती थी या युद्ध।
      जहाँ विज्ञान की सीमा समाप्त हो जाती है वहीं से आध्यात्म की राह शुरू होती है। लिहाजा उन्होंने अपनी ‘परेशानियों’ से निजात पाने के लिए दिल्ली के सारे छोटे बड़े अस्पतालों को ठेंगा दिखाते हुए विपश्यना की राह चुनी। जाहिर है कि इन दस दिनों में न तो उनकी किसी से ‘जंग’ हुई और न ही नमो सर पर किसी ट्विटर हैंडल ने कोई निशाना साधा। अब जबकि वे आध्यात्म के धर्मक्षेत्र से राजनीति के कुरुक्षेत्र में पुनः लौट आए हैं तो सोचा कि क्यों न उन्हीं से चर्चा की जाए। मेरे पूछने पर कि विपश्यना से लौटकर वे कैसा महसूस कर रहे हैंउन्होंने जवाब दिया -
    “मैं बहुत शांति और नवीन ऊर्जा से आवेशित महसूस कर रहा हूँ।“
    “पर सर आप तो पीएम के भाषण के दौरान सोते देखे गए।”,
    “मैं सोया नहींध्यानमग्न था। खुली आँखों से तो दुनिया देखती है। योगी मन की आँखों से आगे की चीजें भी देख सकता है। मैं स्वयं को 2019 में लाल किले पर भाषण देता हुआ देख रहा था।” विपश्यना की दूसरी उपलब्धि गिनाने के अंदाज में वे बोले।
     “यानी एलजी और पीएम से अब आप युद्धविराम करने जा रहे हैं।“ मैंने टोह लेना चाही।
     “युद्धविराम नहीं नए युद्ध का आगाज करने जा रहा हूँ।” उनके ‘भाईचारे’ के इस नए अंदाज ने मुझे निरुत्तर कर दिया। मुझे भाईगिरी भाईचारे पर भारी पड़ती दिखी। शायद इस नई सीखी ध्यान पद्धति से  दिल्ली में आए दिन लगने वाले जामहर दिन अपनी अस्मत लुटाती निर्भयाऔर सतत बढ़ते जा रहे अपराधों पर नियंत्रण पाने का कोई अचूक उपाय उन्हें मिल जाए। तभी उनके सचिव ने आकर सूचित किया कि उनका आज का नमो विरोधी ट्वीट अभी तक पोस्ट नहीं हुआ है। यह सुनते  ही वे उठकर ट्वीट करने के लिए लेपटॉप पर व्यस्त हो गए।                                           
                                                          ***
                                          



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