व्यंग्य पत्रिका, 26/07/2012
ज़ीरो से हीरो
हमें बचपन से
स्कूलों में यह पढ़ाया गया है कि भारत ही वह देश है जहाँ शून्य की खोज़
हुई थी | बड़े-बड़े दार्शनिक यह कहते हुए कभी नहीं अघाते कि शून्य से ही सृष्टि का जन्म हुआ है aऔर हर नश्वर वस्तु या जीव को अंत में शून्य में ही समाना है |
तो फिर आंध्रप्रदेश में इंजीनीयरिंग प्रवेश परीक्षा
में शून्य अंक के आधार पर हुए बाईस छात्रों के प्रवेश पर इतना हंगामा
क्यों ? दूसरों के बारे में तो अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता पर मुझे
इतना विश्वास है कि ये बाईस छात्र जरूर कुछ न कुछ अनहोनी करके दिखाएंगे
! ये वो 'कूड़ा' है जिससे 'सोना' बनना तय है |
ज़ीरो के आलोचक यह क्यों भूल जाते हैं
कि आज दुनिया कम्प्युटर के बिना नहीं चल सकती और कम्प्युटर की अवधारणा ही शून्य एवं एक
पर आधारित 'बाइनरी डिजिट' की भाषा पर टिकी है |
और क्या आप ज़ीरो का महत्व
नहीं समझते जो एक बार सही जगह पर लग जाए तो किसी भी संख्या की
औकात बदल सकता है |
लेट'स होप फॉर दि बेस्ट ! मीडिया और अखबार वालों को तो हर चीज़ में
कुछ न कुछ 'बोफोर्स' ही नज़र आने लगता है |
मुझे विश्वास है कि ज़ीरो लाकर
प्रवेश पाने वाले ये बाईस लोग उन बीस-बाईस 'हीरो'ज़' से तो बेहतर ही साबित होंगे जिन्होंने पिछले बीस-बाईस वर्षों में देश की इज्ज़त
खाक़ में मिला दी है | मुझे यह भी विश्वास है कि ये भावी इंजीनियर कम से कम ऐसी सड़कें
तो नहीं बनवाएंगे कि राज्य के किसी मंत्री को नाराज़ होकर इन्हें
उसी सड़क के गड्ढों में दफ़्न करने की बात कहना पड़ जाए ! और यह भी विश्वास है कि ये बाईस छात्र अपने कार्य को जैसा भी हो, स्वयं ही करेंगे न कि यू.पी.
के उस चिकित्सक की तरह जिसने मरीज़ को टाँके लगाने का कार्य सफाई कर्मी के जिम्मे छोड़ दिया था |
हमारा देश और हमारे ग्रंथ चमत्कारों और
कारनामों से भरे पड़े हैं | जब जिस डाली पर बैठा है उसी को काटने जैसी ज़ीरो नंबर लाने की समझ रखने वाला शख्स हमारे यहाँ
संस्कृत का 'हीरो नाटककार' बन सकता है तो आंध्र की प्रवेश परीक्षा में ज़ीरो अंक
लाकर प्रवेश पाने वाले बाईस छात्र राष्ट्र के कर्णधार क्यों नहीं बन सकते ?
इसलिए व्यंग्यकारों और कार्टूनिस्टों से अनुरोध है कि आंध्रप्रदेश की
शिक्षा व्यस्था पर ऊंगली उठाना बंद करें !
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