पत्रिका , इंदौर 10/07/2012
व्यंग्य साहित्यिक समागम
व्यंग्य साहित्यिक समागम
---ओम वर्मा
"बाबाजी को कोटि कोटि प्रणाम ! बाबा मैं पिछले दस साल से कविता
लिख रहा हूँ | अखबार वाले मेरी कविता छापने का नाम ही नहीं लेते |
खेद व क्षमा के साथ वापस लौटा देते हैं | आपकी कृपा मुझ तक पहुँचे
तो काम बन जाए !"
"आप कविताएँ कैसे भेजते हैं ?" बाबा ने रत्नजड़ित सिंहासन
पर बैठे-बैठे फ़रमाया |
"मैं अपने हाथ से लिखकर डाक से भेजता हूँ |" समागम में सभी
की तरह इक्यावन सौ रु. शुल्क देकर आए भक्त ने करबद्ध मुद्रा में उत्तर
दिया |"
"किस रंग की स्याही से लिखते हैं ?" बाबा ने बाबानुमा प्रश्न दागा |
" नीली स्याही से बाबा |"
"बस यही गड़बड़ है | आप आज ही अपना नीली स्याही का पेन तोड़
दें और पिंक कलर की स्याही से लिखना शुरू कर दें | आप तक कृपा पहुँच
जाएगी |" जाहिर है कि भक्त गदगद हो चुका था |
यह संघर्षशील या कहें कि नवोदित रचनाकारों का समागम था | बाबा
का इस फील्ड में सिर्फ इतना तज़ुर्बा था कि पत्रकारिता व राजनीति में पैर
जमाने के लिए खुद का एक अधपन्ने का अखबार निकाला था और खुद की
प्रेस भी खोल ली थी | सभी जगह असफल रहने के बाद उन्होंने 'कृपा' का
कारोबार शुरू किया, जिसमें जाहिर है कि चाँदी ही चाँदी थी | संपादकों की
कृपा से वंचित सारे उदीयमान रचनाकार शुल्क भुगतान,सुरक्षा जांच एवं
कृपा हो जाने पर दसबंध यानी टेन परसेंट का शपथपत्र भरकर अंदर आए थे |
"बाबा , मैं अपने चुटकुले कई अखबारों में भेज चुका हूँ | एक भी नहीं
छपा !" चुटकलों को साहित्य समझने वाले तथा बढ़ी हुई दाड़ी व लंबा कुर्ता
पहने एक साहित्य प्रेमी ने पूछा |
"आप कुर्ता कितने मीटर कपड़े का सिलवाते हैं ?" बाबा ने अपने
ज्ञान के खज़ाने से फिर एक तिलस्मी प्रश्न दागा |
"जी बाबाजी, तीन मीटर कपड़े का !" भक्त ने अभिभूत होने की मुद्रा
में उत्तर दिया |
"आप चार -चार मीटर कपड़े के कुर्ते सिलवाएँ...खुद भी पहनें और
दस कुर्ते गरीबों में भी बाँट दें | आप तक कृपा दौड़ी चली आएगी |" बाबाजी
ने फिर लालबुझक्कड़ शैली में एक चमत्कारी उपाय बताया |
ऐसे ही जब एक अन्य रचनाकार ने अपनी असफलता का रोना रोया
तो बाबाजी ने उसका नाम पूछा | उसके द्वारा नाम गोपाल बताए जाने पर
बाबा उवाच-
"आपके नाम पर कृपा नहीं जाएगी | आप अपना नाम 'कुमार गोपाल'
रख लें | कुमारों पर कृपा जल्दी पहुँचती है |" ऐसे ही किसी नवोदित रचनाकार
को सफ़ेद कागज पर काली स्याही से तो किसी को पीले कागज़ पर लाल स्याही
से लिखने की; किसी को रचना भेजने के लिए कूरियर कंपनी बदलने की तो किसी
को अपना मेल आइ डी बदलने की सलाह दी | कुछ नवोदित लेखिकाओं ने भी
संपादकीय कृपा न होने के एकता कपूरी आँसू बहाए ! बाबा ने किसी को अपना
नाम 'शीला' तो किसी को 'मुन्नी' रखने का मंत्र दिया | कृपादान के कारोबार से
बाबा पर लक्ष्मी मैया की अटूट कृपा बरसने लगी | मगर समागम के तीन माह
बाद भी जब किसी की कोई रचना नहीं छपी तो सृजन में काम आ सकने वाली
प्रसव पीड़ा आक्रोष में बदल गई | कुछ ने पुलिस में रिपोर्ट की तो कुछ ने अदालती
कारवाई कर दी |
बाबा फरार हैं और नवोदित रचनाकारों को किसी नए कृपादानी गुरू का
इंतज़ार है |
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