Monday 22 October 2012

  व्यंग्य/ पत्रिका (22/10/12) 
                                               
                                        सलमान जी के पक्ष में 
  
                                                                                      ओम वर्मा                            ये हमारे केजरीवाल जी को आखिर हुआ क्या है ? पंगा और वो भी क़ानून मंत्री से ! क़ानून जिनकी रग रग में है, जिन्होंने क़ानून की ऊँगली  पकड़कर चलना सीखा, और जो बॉस के लिए जान देने का जज्बा रखते हों...उनकी टोपी उछालकर आपने अच्छा नहीं किया अरविंद भाई ! पूरा का पूरा आइएसी एक मासूम व निरपराध के हाथ धोकर पीछे पड़ गया है ! सलमान जी, उनकी बेगम साहिबा या उनके ट्रस्ट ने जो  काम करके दिखाया है वह वाकई 'उत्तर आधुनिक' सोच वाला काम है । हमारे समाज में मृतक की स्मृति में कोई प्याऊ खुलवाता है तो कहीं अन्नदान करने का रिवाज़ है । उन्होंने किसी को मरणोपरांत 'हियरिंग एड' दिलवाया है तो क्या गुनाह किया ? इसे उनके द्वारा मृतक के पिंडदान या श्राद्धपक्ष में दिए जाने वाले 'ब्राह्मंण भोज' की तरह ही लिया जाना चाहिए !   
                             अब वक़्त आ गया है कि इन घोटाले और जाँच  के मुद्दों को महँगाई के मूल्य सूचकांक की तरह घोटालों के मूल्य सूचकांक से जोड़ें । यानी घोटालों का मूल्यांकन पर्सेंटाइल पद्धति से किया जाना चाहिए । जैसे भारतीय इतिहास के कोयला खदान घोटाले को जो कि पत्रकार संतोष भारतीय के अनुसार छब्बीस लाख करोड़ का बैठता है, उसे एक स्टैण्डर्ड या 100 प्रतिशत मूल्य  का माना जाए । बाकी सारे घोटालों का प्रतिशत इसे आधार मान कर जोड़ा जाए । यानी परसेंटेज़ के बजाय हम पर्सेंटाइल की भाषा में बात करें । जाहिर है कि 71 लाख का घपला पर्सेंटाइल की इस स्केल पर अपनी औकात ढूढता नज़र आएगा । इतने कम पर्सेंटाइल पर सलमान खुर्शीद या मोहतरमा लुईस को भारतीय राजनीति के प्रतिष्ठित 'घोटाला महाविद्यालय' में प्रवेश हरगिज़ नहीं दिया जा सकता ।
                            हैदराबाद के निजाम जहाँ खड़े हो जाते हैं, अमीरी की ऊपर से नीचे की तरफ जाने वाली लाइन वहीँ से शुरू होती है । कुछ ऐसे ही फ़ॉर्मेट  में यदि घोटालों का सूचीकरण किया जाए तो सलमान दंपति या उनका ट्रस्ट इत्यादि- इत्यादि तक ही सिमटकर रह जाएगा । हमारे बेनी बाबू ने कितने सहज ढंग से यह बात कही है कि सलमान जी लाखों का घोटाला कर ही नहीं सकते ...कभी करोड़ों में करते तो कुछ सोचा भी जा सकता था । रबर की तरह ढीली ढाली या घुमाने फिराने वाली बात न कहकर इस्पात मंत्री जी ने इस्पात की तरह ठोस इशारा किया है कि खबरों के जिन हिस्सों पर पचास लाख से  तीन साल में तीन सौ करोड़ बनाने वाले दामाद जी का हक़ बनता है, वहाँ आप 71 लाख वालों पर क्यों फुटेज़ बर्बाद कर रहे हैं ?    

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                                  100, रामनगर एक्सटेंशन
                                                              देवास
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