व्यंग्य
ओपिनियन पोल – एक प्राचीन परंपरा
ओपिनियन पोल – एक प्राचीन परंपरा
ओम वर्मा
om.varma17@gmail.com
चौदह वर्ष का वनवास काट कर प्रभु श्रीराम अयोध्या पहुँचे। इधर बिना स्वप्न आधारित या बिना पुरातत्वीय खुदाई के अपनी मातृभूमि को स्वर्णनगरी मेँ बदल देने वाले त्रिलोकपति लेकिन महाअहंकारी दशानन का वध कर जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तो इतिहास का पहला ओपिनियन पोल उनकी राह देख रहा था ।
चौदह वर्ष का वनवास काट कर प्रभु श्रीराम अयोध्या पहुँचे। इधर बिना स्वप्न आधारित या बिना पुरातत्वीय खुदाई के अपनी मातृभूमि को स्वर्णनगरी मेँ बदल देने वाले त्रिलोकपति लेकिन महाअहंकारी दशानन का वध कर जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तो इतिहास का पहला ओपिनियन पोल उनकी राह देख रहा था ।
बाहरी व्यक्ति द्वारा अपहृत पत्नी को वापस
उचित स्थान दिए जाने का ‘अपराध’ करने पर हो रही लोकनिंदा व कानाफूसी से जब रामजी तंग आ गए तो उन्होंने स्वयं छद्म भेष धारण कर ‘दलित के घर रात गुजारने’ वाली स्टाइल मेँ एक
लॉन्ड्री वाले के यहाँ व कुछ अन्य अड्डों पर कुछ समय व्यतीत कर आम नागरिकों की
राजा के आचरण पर प्रतिक्रिया जानी। हर अयोध्यावासी से मिलना उनके लिए संभव नहीं
था। जाहिर है कि त्रेता युग के इस महान शासक ने किसी संस्था से ‘फिक्स्ड
सर्वे’ करवाने के बजाय स्वयं एक सेंपल सर्वे कर पहले ओपिनियन
पोल की विधिवत शुरुआत कर दी थी।
मगर इतिहास मेँ एक और ओपिनियन पोल का उल्लेख
मिलता है जो इससे थोड़ा भिन्न है। हुआ यूँ कि एक दिन बादशाह अकबर भरमा बैंगन की
शानदार सब्जी खाकर मस्त हो गए थे और उसका स्वाद मुँह मेँ देर तक बना रहा। सभासदों
के बीच मेँ उन्होंने सबसे पहले इसका जिक्र किया तो बीरबल ने तुरंत राजनीति के ‘अनुशासित सिपाही’ की
तरह बयान जारी किया, “हुज़ूर बैंगन तो सब्जियों का राजा है।
उसका रंग शानदार, सर पर बादशाहों जैसा ताज! जहांपनाह का
हुक्म हो तो बैंगन को राजकीय सब्जी घोषित कर दिया जाए!”
बैंगन को राजकीय सब्जी घोषित करने की
प्रक्रिया चल ही रही थी कि एक दिन बादशाह अकबर ने फिर वही मसालेदार सब्जी और
ज्यादा खा ली। उन दिनों वहाँ न तो कोई जयराम रमेश थे और न कोई नरेंद्र मोदी, तब भी उन्हें शौचालय की महत्ता समझ मेँ आ
गई। अगले दिन उन्होंने दरबार मेँ बैंगन की सब्जी को कोसते हुए जैसे ही अपनी हालत
के बारे मेँ बताया कि चतुर सुजान बीरबल ने तुरंत नीतीशकुमार द्वारा मोदी के बारे
मेँ बदली गई राय की तरह बैंगन के बारे मेँ अपनी राय बदली, ”जी आलमपनाह! बैंगन भी कोई सब्जी है...काला कलूटा ...सिर पर काँटों भरा
ताज...कोई गोल तो कोई लंबा...! मेरी मानें तो हुज़ूर इसकी खेती पर ही पाबंदी लगा
दें ताकि कल कोई इसमें नस्लीय बदलाव (जेनेटिक रूपान्तरण) न कर सके।“
प्रभु श्रीराम चक्रवर्ती सम्राट व कानूनी
तौर पर एक राज्य के राजा थे। राजतंत्र मेँ भी उन्हें ओपिनियन पोल जैसी लोकतांत्रिक
व्यवस्था मेँ विश्वास था। मगर लोकतंत्र मेँ चौदह वर्ष से राजनीतिक वनवास काट रहे ‘राजा’ का ओपिनियन पोल के
बारे मेँ स्वयं का ओपिनियन सर्वथा भिन्न है। वे शायद बीरबल द्वारा बादशाह की
स्तुति जैसा राजतंत्री ‘ओपिनियन पोल’
चाहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बैंगन प्रकरण मेँ अपनी नीति परिवर्तन पर बीरबल
ने बादशाह सलामत को डिप्लोमेटिक जवाब देते हुए यह भी तो कहा था-
“हुज़ूर गुलाम नमक आपका खाता है न कि बैंगन
का!”
आज के ‘बादशाहों’ को कौन
समझाए कि जनता तो अपनी ही गाढ़ी कमाई से खरीदा नमक खा रही है हुज़ूर!
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100, रामनगर एक्सटेंशन,
देवास 455001 (म॰प्र॰)
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