Tuesday, 18 March 2014

            रंग भरे दोहे दनादन

                     ओम वर्मा
                                                                                   om.varma17@gmail.com
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डॉ. मनमोहनसिंह      अगर  कहेंगी सोनिया, तो खेलूँगा रंग ।
                   यूँ बोले सरदारजी, करो न मुझको तंग ॥  01
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सोनिया गांधी         इटली मेरा  मायका, भारत  है ससुराल ।
                   भौजाई हूँ आपकी ,  डालो रंग गुलाल ।।  02
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लालकृष्ण आडवानी     निकले रथ पर बैठकर, खेल रहे हैं फाग । 
                  इस शालीन बुज़ुर्ग की, किस्मत अब तो जाग।। 03
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नरेंद्र मोदी           खेलूँगा होली तभी, दिल्ली लूँ जब जीत ।
                  कुछ ऐसे इस फाग में, गाओ मंगल गीत ॥  04
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 राहुल गांधी           राहुल  होली  खेलने , निकले हैं इस बार ।
                   रँगवाएँगे  मुख वहीं, जहाँ दलित का द्वार ॥  05
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सुशीलकुमार शिंदे    इक येड़े को छोडकर, बाकी सबको छूट।
                 मेला है  यह फाग का
, लूट सके तो लूट॥  06

----------------------------------------------------------------------------------सुषमा स्वराज      होली खेलें जब कभी, बीजेपी के लोग।
                 उन उन पर ही ना करें
, सारे रंग प्रयोग॥  07
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राजनाथसिंह          मान रहे अरविंद का, राजनाथ  आभार।
                                           
फिर दिल्ली में मिल गया, होली का आधार।।08
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ममता बेनर्जी                         बस अन्ना के संग ही,   खेलेगा बंगाल। 
                         
 इस होली में इस तरह, होगा रंग गुलाल॥ 09
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लालूजी             चारे की कुटिया बना
, बैठे खटिया डाल ।

                                         
 अब कोई तो डाल दे, आकर रंग गुलाल ॥  10
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सुमित्रा महाजन        हो भाई का साथ तो, जीतूँगी हर जंग।
                    यह कह वे  कैलाश पर
, लगीं डालने रंग॥  11
---------------------------------------------------------------------------------नीतीशकुमार          खेल रहे नीतीशजी
, गुपचुप गुपचुप रंग ।
                   मोदी आकर बीच में
, करें नहीं रसभंग॥ 12
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नितिन गड़करी        काया से भी मर्द हैं, माया से भी मर्द
                   रंग देखकर
आप के, शुरू हो गया दर्द ॥  13
----------------------------------------------------------------------------------शिवराजसिंह चौहान   
   सुन लें सारी लाड़ली, हैं मामा  शिवराज ।
                    
 रंग डालकर नेग लो, नहीं छोड़ना आज ॥ 14
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अरविंद केजरीवाल       किस पर कैसे रंग की
, करना है बरसात ।
                    अब जनता की राय से
, तय होगी यह बात॥15
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अन्ना हजारे            पहले पूरी जो करे
, मेरी सत्रह माँग।
                     गाऊँ उसके राग में
, मैं होली का सांग॥ 16
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सलमान खुर्शीद           खेलूँ ना होली कभी
, नपुंसकों के संग।
                      जाचूँगा मर्दानगी
, वरना होगी जंग॥ 17
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शरद पवार              दिन में होली खेलने
, पहुंचे जनपथधाम।
                      मोदी के घर रात में
, किया मगर विश्राम॥18
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दिग्विजयसिंह          जिस दिन राहुल बन गए, अगले पंतप्रधान।
                   उस दिन से हर दिन यहाँ
, होगा फागुनगान॥19
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रामविलास पासवान
      मोदी का मुँह रँग दिया, फिर बोले ये राम।
                      हम पंछी उस डाल के
, जहाँ पके हों आम॥20
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 श्रीप्रकाश जायसवाल
        ये जूनी पिचकारियाँ, करती हैं रसभंग।
                         लेकर आओगे नई
, तो खेलूँगा  रंग॥ 21
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अखिलेश यादव          जिस पिचकारी पर बनी, पापा की तस्वीर ।
                     रंग उसी से डालना, हाकिम हो कि  वज़ीर॥ 22
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आजम खान
              पहले  मेरी भैंस से, जो खेलेगा रंग।
                      
अब खेलूँगा मैं सदा, होली उसके संग॥ 23
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राज ठाकरे            आओ  सिर्फ मराठियों, मैं खेलूँगा रंग।
                    चुंगी  नाकों  पर खड़े
, बोले एक दबंग॥ 24        

 
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अमिताभ बच्चन         कुछ दिन तो गुजरात में, होली खेलो यार।
                     किसी दूसरे राज्य में
,  होगी  अगली बार॥ 25
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संजय दत्त              सुन सर्किट इस टैंक में
, रंग ढेर सा घोल।
                       अब होली के नाम पर
, माँगूँगा पेरोल॥ 26
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राखी सावंत              राखीजी को इन दिनों
, भाया मोदी रंग।
                       बाँट रहीं हैं मुफ्त ही
, ले पिचकारी संग॥ 27
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सुरेश कलमाड़ी           कलमाड़ी से खेलना, चाह रहे जो लोग।
                     पहले  आधे  रंग का, देना होगा भोग॥ 28
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बाल कटवाता नेता       भाई मेरे यह बता, कितने मेरे बाल।
                     कटने को हैं  जान लो
, क्या होना है हाल॥ 29
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नेताओं पर रंग डलता      तुमने उन पर रंग क्यूँ
, दिया व्यर्थ में डाल।
देखकर  आम आदमी      खूनी  होली खेलते
, रहते  वे हर  साल॥ 30
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जयललिता व करुणानिधि देखें किसके गाल पर
, मोदी मलें गुलाल।
                     करुणानिधिजी औ
जया, आतुर लेकर गाल॥31
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 मायावती                मनुवादी को छोडकर
, बाकी सबके साथ।
                      खेलेंगी मायावती
, लाख टके की बात॥ 32
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आम आदमी पार्टी         सब लाए पिचकारियाँ, झाड़ू इनके पास।
                       देखें किनका रंग अब
, आता इनको रास॥ 33
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भागीरथ प्रसाद        राहुल जी की जेब से,  लेकर रंग गुलाल।
                   
                   मोदीजी को रँग दिया
, सरजी किया कमाल॥ 34
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योगेंद्र यादव             डाली कुछ ने स्याहियाँ, कुछ ने डाले रंग।
                      खुशियाँ और विरोध के
, सबके अपने ढंग॥ 35

Saturday, 8 March 2014


 व्यंग्य                                        जनवाणी, मेरठ, 
                                             08.03.14  
                  जूते की अभिलाषा
                          ओम वर्मा
                                    om.varma17@gmail.com
त्ता केंद्र के प्रति विरोध प्रकट करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। राजमहलों में राजा के प्रति रानियों के गरिमामय विरोध के लिए कोपभवन तक का प्रावधान रखना पड़ता था। गांधीजी इसे असहयोग और सत्याग्रह से प्रारंभ कर अनशन तक लाए जिसे बाद में निर्वाचित मुख्यमंत्री समर्थन देने वालों के खिलाफ ही धरने के नाम से आजमाने लग गए! लेकिन कई बार ये उपकरण फेल होते भी देखे गए तथा अखबारों की तलवार से भी तेज मानी जाने वाली कलम की स्याही भी फीकी पड़ने लगी। लिहाजा फास्ट फूड के जमाने में विरोध प्रदर्शन का तरीका भी कैसे अछूता रह सकता था? अब नेक काम के लिए लोगों ने जूते का प्रयोग शुरू कर उसे सम्मानजनक स्थान पर बैठा दिया है।                       
     लिहाज़ा अब समय आ गया है कि प्रजातांत्रिक देशों के राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र, अपनी कार्य पद्धति या अपने अभ्यास सत्रों में विरोध प्रकट करने की इस नई तकनीक पर चिंतन मनन करें। अब यह स्पष्ट घोषणा होनी चाहिए कि सत्ता में आने पर उनका दल या उम्मीदवार कम से कम कितने जूते फेंके जाने या खाने के बाद ही किसी की बात सुनेगा! यह भी स्पष्ट हो कि क्या सिर्फ जूता दिखाना भर पर्याप्त होगा आखिर उनके कानों पर कम से कम कितने जूते खाने के बाद जूँ रेंगना प्रारंभ करेगी? यह भी हो सकता है कि कल से जूता फेकने वाले की ही बात हर हाल में मान ली जाए या फिर जूता फेंकने वाले की हर हाल में अच्छी तरह से खबर ले ली जाए! वैसे प्रहारक पर विभिन्न कानूनी धाराओं के तहत कार्रवाई भी की जा सकती है। जैसे बिल प्रस्तुत न करने वाले विद्रोही पर उन्हें मंदिर या मस्जिद से चुराए जाने का आरोप लगाया जा सकता है। प्रहारक संप्रदाय का हो और लक्ष्य संप्रदाय का, तो सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप, और हमारे देश में जैसा कि अक्सर होता आया है, प्रहारक सवर्ण हो और लक्ष्य दलित वर्ग का, तो दलित उत्पीड़न का प्रकरण! जूता यदि प्लास्टिक का था, तो पर्यावरण एक्टिविस्ट आगे आ सकते हैं कि इससे पर्यावरण का क्षरण हुआ है, या कि जूते का मटेरियल ईको फ्रैंडली नहीं है। चमड़े के जूते हों तो पेटा वाले जीव उत्पीड़न का मामला बनाकर मैदान में कूद सकते हैं।
     आशावादी अँधेरे में भी उजाले की किरण  खोज़ लेता है। तो क्यों न जूता फेंकने वालों में से सही निशाना लगा पाने वाले को चुनकर आगामी ओलिंपिक खेलों के लिए निशानेबाजी की तैयारी के लिए चुन लिया जाए! आने वाले चुनाव में सभा या प्रेस वार्ता में उम्मीदवार राजनीतिक लाभ लेने  के लिए पेड़ न्यूज़ की तर्ज़ पर अपने ही आदमियों से भी यह काम करवा सकते हैं। बहरहाल इतना तो तय है कि जॉर्ज बुश और ज़रदारी से लेकर भूपिंदरसिंह हुड्डा तक, जूतों को अस्त्र बनाने का कार्य यदि इसी रफ्तार से चलता रहा तो हो सकता है कि भविष्य में चौथा विश्व युद्ध जूतों से ही लड़ा जाए! बाहुबलियों के परिवारों में शस्त्र पूजन की तर्ज़ पर जूता पूजन भी शुरू हो सकता है! ओपिनियन पोल जैसी विवादास्पद प्रक्रिया का स्थान जूता ले सकता है। जितने जूते, उतने लाइक्स या अनलाइक्स’! एक जूता यानी दस सीट की बढ़त या दस का नुकसान! वैसे जूते की अभिलाषा तो मात्र इतनी है कि वह न तो सम्राटों के पैरों की शोभा बढ़ाना चाहता है, वह किसी बड़े शॉपिंग माल के शो केस में बैठ कर अपने भाग्य पर इठलाना भी नहीं चाहता ...उसकी अभिलाषा तो मात्र इतनी है कि उसे उसके मुँह पर मार दिया जाए जो देश को खाने या बेचने की राह पर चल पड़ा हो!
                                               ***
100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 (म.प्र.)