बुलावा जो नहीं आया!
ओम वर्मा
जरा ही आहटें
होती थीं तो ये लगता था कि कहीं ये वो तो नहीं! मगर जब भी उन्हें लगता कि चले आ
रहे हैं वे नज़रें उठाए, तो वह हर बार
उनकी नज़रों का धोखा ही साबित हुआ। बाद में तो वे सीधे ड्राइंग रूम में जाकर सोफ़े
की उस कुर्सी पर जाकर बैठ गए जहाँ से मुख्यद्वार पर सीधी नजर रखी जा सकती थी।
दरवाजे को भी उन्होंने अटका कर रखा था जिसके कि जरा सा हिलते ही उन्हें लगने लगता
था कि उन्हें दिल्ली से मंत्रीमण्डल में शामिल होने का बुलावा आया है। मगर दरवाजे
तक पहुँचते ही असलम साबरी उनके कानों में दहाड़ते प्रतीत होते थे -”कोई आया है न कोई यहाँ आया होगा, मेरा दरवाजा हवाओं
ने हिलाया होगा...।” रात अपने टेलीफोन व मोबाइल की घण्टी फुल कर वे
सिरहाने रख कर ही सोए थे। जब भी घण्टी बजती, वे रिसीवर या
मोबाइल कुछ इस अंदाज़ में उठाते जैसे बिल्ली चूहे को झपटती है। मगर नतीजा भारत-पाक
वार्ताओं की तरह फिर ढाक के तीन पात होकर रह जाता था।
हालांकि कद्र तो उनकी उस पार्टी में भी कोई
कम नहीं थी। अपने विद्यार्थी जीवन से ही उन्हें लट्ठ-भारती में अच्छी ख़ासी महारत
हासिल हो गई थी। इसी कारण उन्हें तब पार्टी की जिला शाखा का अध्यक्ष बना दिया गया
था। इन चुनावों में जब पार्टी को उम्मीदवार ढूंढ़े नहीं मिल रहे थे तब वे अपने
क्षेत्र से चुनाव लड़ने को तैयार हुए थे। मगर उधर दूसरी पार्टी के भियाजी के तूफानी
दौरे और सभाओं की दिनोदिन बढ़ती भीड़ देख अकस्मात उनकी छठी इंद्रिय जागृत हुई और
जैसे कोई ‘हवा’
उनके कानों में सरगोशी सी कर गई कि “हे मूरख प्राणी! तेरी जेब में जिस ट्रेन का टिकट
है वह प्लेटफॉर्म नं. 1 पर खड़ी है और खड़ी ही रहेगी। इस बार सिग्नल प्लेटफॉर्म नं.
2 पर खड़ी ट्रेन को मिलने वाला है। जा यह टिकट लौटा और उसका टिकट ले ले...!” इससे
पहले कि खिड़की बंद होती, 2 नं. पर खड़ी
ट्रेन का टिकट उनकी जेब में था। इधर यह ट्रेन पहले से ही फुल हो चली थी। मगर येन
केन प्रकारेण वे जगह व अंततः ‘मंजिल’
पाने में कामयाब हो ही गए।
हाँ तो परिणाम के दिन वही हुआ जिसकी की कई ‘चाणक्यों’ को उम्मीद
थी। ‘उनकी’ पार्टी को छप्पर फाड़ बहुमत
हासिल हुआ। लहर को तूफान में बदलते देख मौसम विशेषज्ञ भी भौंचक रह गए थे। जैसे
ज्वार आने पर समुद्र का बहुत सारा कचरा किनारे पर लग जाता है वैसे ही ‘लहर’ उन्हें भी पार लगा चुकी थी। मगर परिणाम के बाद
शपथ समारोह तक उनके दिन वैसे ही कटे जैसे म.प्र. के उस पीएमटी प्रत्याशी के कटे
होंगे जो व्यापम वालों को सेट कर कॉपी ब्लेंक छोड़कर चला आया था। ये मंत्री बनाए
जाने के लिए उतने ही कॉन्फिडेंट थे जितने वे डॉक्टर बनने के। उधर पीएमटी वालों को
बीच कोर्स में से खदेड़ दिया गया है और इधर ये लहर के सवार किनारे पर पड़े जरूर हैं
मगर अपना बारहवीं उत्तीर्ण होने का प्रमाण पत्र लहरा लहरा कर उन जहाज वालों का ध्यान
खींचने की बेकार कोशिश कर रहे हैं जो नया मंत्रीमण्डल लेकर उनसे दूर, और दूर होता चला जा रहा है। ***
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 (M.P.)
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