Friday, 16 May 2014



व्यंग्य
        लकीर पर चिंतन
                            ओम वर्मा
                                    om.varma17@gmail.com 
साँप निकल गयालकीर पर चिंतन जारी है। सबके हाथों में बड़ी बड़ी लाठियाँ हैं। इतने धुरंधरों के होते साँप आखिर बच कर कैसे निकल गया। जवाब देना मुश्किल हो रहा है। माहौल कुछ ऐसा है कि सामूहिक बलात्कार पर बहस में भाग लेते समय भी जिनकी मुस्कराहट गायब नहीं होती थी आज उन्होंने भी गंभीरता ओढ़ रखी है। जिस लहर को उन्होंने झोंका भी नहीं समझा था वह तूफान बनकर उनकी साठ साल पुरानी बस्ती तहस नहस कर गई। परंपरानुसार बिखरे दूध पर रोया जा रहा है। जिसे साँप समझ कर छेड़ा जा रहा था वह सिंहासन पर जा बैठा है और उसकी छोड़ी गई लकीर पर अब  लाठियाँ भांजी जा रही हैं। हार का ठीकरा फोड़ने के लिए सही सिर तलाशा जा रहा है।
   
     “मैंने उसको राक्षस कहा था पर शायद लोगों ने उसकी बड़ी बड़ी आँखें देख कर शायद उसे देवदूत समझ लिया।” एक चिंतक ने कहा।
   
     “मैंने तो उसे गुण्डा कहा था पर लोगों ने उसे वाराणसी का पण्डा बना दिया।” दूसरे चिंतक ने दूर की कौड़ी पेश की।

    “मैडम ने पहले ही उसको आदमखोर बता दिया था, पर शायद लोगों ने माखनचोर सुन लिया होगा।” सिर्फ अपने अद्भुत बयानों के कारण चर्चा में बने रहने वाले एक अन्य आधार स्तंभ ने यहाँ भी वफादारी प्रदर्शन करने का मौका नहीं छोड़ा।
   
    “हम भी उसके मुकाबले के लिए अपने युवराज को लाए थे...कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने युवराज की एक्सेप्टिबिलिटी उनके मुकाबले पब्लिक में कम हो ?” एक कम चर्चित पार्टीमेन ने दबी जुबान से थोड़ी हिम्मत करके अंधों की बस्ती में आईने ले लो जैसी आवाज निकालने की कोशिश की।

    “ये कौन बद्तमीज़ घुस आया है..लगता है गुजरात वालों का भेजा आदमी है!” एक भियाजी किस्म के कार्यकर्ता ने हाँक लगाई। इतने में बाकी लोगों ने युवराज की स्वीकार्यता पर शंका उठाने वाले ‘विद्रोही’ को अस्वीकार करते हुए टांगा-टोली कर सीधा मुख्य-द्वार दिखा दिया।

   “नहींहमारी हार का असली कारण ‘थ्री डी’ टेक्नॉलाजी है जिसके न होने से जहाँ हमारे युवराज एक बार में एक ही जगह दिखते थे वहीं वो किशन कन्हैया की तरह रास लीला में एक दो नहीं पूरे एक सौ आठ स्थानों पर हर गोपी को अपने अपने साथ नज़र आते थे।” पार्टी के एक सलाहकार ने अपना तकनीकी ज्ञान बघारा।

    “मैंने पहले ही कहा था कि 2012 में मनमोहनसिंह की जगह राहुलजी को पीएम बना दिया गया होता देश एक अलग ऊँचाई पर होता और आज परिणाम उलटा भी हो सकता था।एक स्व. प्रधानमंत्री के पुत्र जिसने सिर्फ अपने पिता की सफेद लट वाली हेयर स्टाइल अपनाई हैविचारधारा नहींने गहन मंथन से नवनीत निकालकर प्रस्तुत किया।

     “मैंने तो पहले ही बोटी बोटी उड़ा देने की बात कह दी थी...किसी कोने से यह आवाज भी सुनाई दी। 

    तो हार का ठीकरा फोड़ने के लिए सर की तलाश जारी है। क्या देश का मतदाता वंशवाद या एक ही परिवार का शासन जारी रखना चाहता है या नहीं… चुनाव में विकास जैसा भी कभी कोई मुद्दा था या नहीं... राष्ट्रकुल खेल घोटाले से लेकर कोयला खदान व टूजी स्पेक्ट्रम के आवंटन और रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति में हुई कल्पनातीत वृद्धि ...आदि आदि भी कोई मुद्दे थे या नहीं... जनता इनका जवाब चाहती थी। इस बारे में जब होगी फुरसत तो देखा जाएगा!                                                                                 ***
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