Thursday 1 May 2014

व्यंग्य (नईदुनिया, 02.05.14) 
          
स्वर्ग में कवि सम्मेलन 

        
(सभी संबंधित कवियों से क्षमायाचना सहित)                                 

                         
ओम वर्मा
                                   
                     om.varma17@gmail.com
स्वर्ग में अप्सराओं के नृत्य देख देखकर देवतागण भी एक दिन आखिर बोर हो ही गए। अति सर्वत्र वर्जयेत! उन्हें मोनोटोनी से ग्रस्त देख वैद्य द्वय अश्विनीकुमारों ने सलाह दी कि अब ये आमोद प्रामोद छोडकर कुछ चैंज हो जाए। बात जब तीनों लोकों में विचरने वाले फ्री लांसर नारद जी को मालूम पड़ी तो उन्होंने नमो नमो, मेरा मतलब नारायण नारायण के उद्घोष के साथ खबर दी कि भारत भूमि पर इन दिनों आम चुनाव की धूम मची हुई है जिसमें जनता को वहाँ के नेताओं के बयानों व टीवी पर उनके बीच होने वाली  बहस देखने में जो मज़ा आ रहा है वैसा कुछ यहाँ भी होना चाहिए।
     संस्कृति विभाग देख रहे एक देवता ने सुझाव दिया कि सारे देवताओं के लिए स्वर्ग छोडकर एक साथ भारत भूमि पर चले जाना भले ही मुमकिन न हो, पर जब एक से एक धुरंधर कविगण स्वर्ग में स्थाई निवास बना चुके हैं तो क्यों न उन्हें ही आमंत्रित कर एक चुनावी कवि सम्मेलन करवा लिया जाए। विचार ने मूर्त रूप लिया और स्वर्ग में कवि सम्मेलन संपन्न हुआ। प्रस्तुत है सम्मेलन के संपादित अंश-
    सबसे पहले आमंत्रित किया गया युवावस्था में ही स्वर्ग पहुँच चुके कवि सुदामा पाण्डेय धूमिल को। धूमिलजी ने फरमाया-     
     एक आदमी
     दल बनाता है
     एक आदमी इसे तोडकर नया दल बनाता है
 
     एक तीसरा आदमी भी है
     जो न दल बनाता है न दल तोड़ता है
 
     वह पैराशूट से उतरता है और टिकट पा जाता है 
     मैं पूछता हूँ 
     यह तीसरा आदमी कौन है?
     मेरे देश की जनता मौन है!

 
   सभी कवियों सहित देवी देवताओं के मुख से वाह! वाह!! निकल पड़ी। फिर आए दुष्यंतकुमारजी। ये यहाँ भी पूरे समय अपने मित्र कमलेश्वरजी के साथ भारत भूमि पर आम आदमी की दुर्दशा पर चिंतन करते रहते हैं। उन्होंने अपने अंदाज़ में गजल पढ़ी- 

   हार की   संभावनाएँ   सामने   हैं।
  फिर भी संसद के किनारे घर बने हैं।
  सियासत में  ईमान की बात मत कर
,
  इन  दरख्तों के बहुत  नाजुक तने हैं।
  कुछ तो महँगाई की वजह से हैं खफा
,
  कुछ घोटालों की वजह से अनमने हैं।
  इलेक्शन  में जैसा चाहो तुम बजा लो
, 
  मुसलमां  उनके लिए बस झुनझुने हैं। 

   इन्होंने भी खूब दाद पाई। फिर बुलाया गया छायावादी व हालावादी श्रृंखला के अंतिम कवि डॉ हरिवंशराय बच्चन को। उनके आते ही देवताओं ने मधुशाला की श्रृंखला में कुछ नया सुनाने की फरमाइश कर डाली जिसे उन्होंने दो रुबाइयाँ  सुनाकर पूरी की  –

    अपना मत देने को घर से
    चलता मत देने वाला
    किसको दूँ
, क्यों दूँ, असमंजस
    में है अब भोला भाला
         ख्वाब दिखाते हैं सब ढेरों
,
         पर मैं सच बतलाता हूँ
    इसको दे या उसको दे तू
,
    सभी करेंगे घोटाला।
और दूसरी रुबाई-        पण्डितजी बोले दुनिया को
                      चला रहा मुरलीवाला
                      मुल्ला बोले क़ायनात को
                      चला रहे अल्लाताला
             लेकिन साथ रहे जब भी वे
             नहीं लड़े घोटालों में
                   वैर कराते मंदिर मस्जिद
                   मेल कराता घोटाला।

   और फिर आए दादा माखनलाल चतुर्वेदी जिन्होंने इस बार जूते की अभिलाषा का बखान किया-
 
   चाह नहीं मैं विश्व सुंदरी के पग में पहना जाऊँ
   चाह नहीं शादी में चोरी हो साली को ललचाऊँ
   चाह नहीं अब सम्राटों के चरणों में डाला जाऊँ
   चाह नहीं अब बड़े माल में बैठ भाग्य पर इठलाऊँ
   मुझे पैक करना तुम बढ़िया
, उसके मुँह पर देना फेंक
   चले शान से वोट माँगने आज बेच जो अपना देश !

           
फिर आए रघुवीर सहाय जिन्होंने आज की स्थिति देखकर अधिनायक कविता को यूँ पेश किया-
 राजनीति में भला कौन वह
 बदकिस्मत मतदाता है

 पाँच बरस होते ही जिसका
 गुण हर नेता गाता है


 खांसी, मफ़लर, टोपी, धरना 
 और कभी धमकी के साथ  
 अपने चमचों से नित अपनी
 जय-जय कौन कराता है


जब जब भी कोई आता है
राजनीति में केजरीवाल
बीच सड़क में उसके मुँह पर
थप्पड़ कौन लगाता है
कौन कौन है मेरे देश में
अधिनायक वह महाबली
कुछ लोगों को पाकिस्तान का
डर जो रोज दिखाता है

    देवतागण, जाहिर है कि एक यादगार शाम की याद लेकर लौटे और कई दिनों तक कविताओं की पंक्तियाँ गुनगुनाते रहे। कुछ दिनों के लिए उर्वशियों को भी आराम मिल गया था।                                       ***
------------------------------------------------------------------------------------------------


1 comment:

  1. sundar vyangya. ati shaleen.shisht.pathaneey. parody ka sammuchay isme vinod ke char chand lagane wala hai. meri badhai vyangykar shri Om Varma ji ko...

    ReplyDelete