Friday, 6 June 2014



   
 विचार
       चायवाले का उभरना या वंशवाद का गिरना! 
            ओम वर्मा                                om.varma17@gmail.com 
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की जो गत हुई है उसकी कल्पना किसी कांग्रेसी या जी हुज़ूरी के शोर में डूबे गांधी परिवार ने शायद ही कभी की होगी। गांधी परिवार को लेकर कांग्रेसियों की सोच कुछ ऐसी है कि तेरे नाम से शुरू, तेरे नाम पे खतम’! पार्टी अध्यक्ष से लेकर उपाध्यक्ष और संसदीय दल की अध्यक्ष तक गांधी ही गांधी...! 1999 में  शरद पवार संगमा व तारीक अनवर के साथ मिलकर सोनिया गांधी के विदेशी मूल के आधार पर अलग होकर भी साथ ही चलते रहे हैं। एनडीए ने नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार के रूप में सामने रखा तो यूपीए सिर्फ संवैधानिक प्रावधान की दुहाई देता रह गया कि पीएम सांसदों के द्वारा चुना जाता है। मगर वे यह भूल गए कि किसी को पीएम उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ने पर कोई कानूनी रोक भी तो नहीं है। यह भी सभी जानते थे कि जयपुर सम्मेलन में राहुल गांधी की पार्टी उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति ही इसलिए की गई थी कि भविष्य में उनका राजतिलक किया जा सके। जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का दावेदार घोषित कर दिया तब यह कहने की हिम्मत किसी कांग्रेसी में नहीं थी कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी को लाना ‘निर्बल से लड़ाई बलवान की ’ वाली बात साबित हो जाएगी। और तो और राहुल की तुलना में प्रियंका को लाना शायद ज्यादा फलदायी हो सकता थायह भी कोई कांग्रेसी न समझ सका न समझा सका। समझाता भी कैसेमनु सिंघवी सरीखे बड़े वफादार जब यह स्थापित करने पर तुले थे कि राहुल तो जन्मजात नेता हैं वहीं कुछ लोग सोनियाजी के एक इशारे पर झाड़ू तक लगाने के लिए तैयार बैठे थे।
     नरेंद्रभाई एण्ड कं. अपनी सभाओं मेंमीडिया में और सभी सोशल साइट्स पर घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाने व भुनाने में सफल रहेवहीं यूपीए वाले गुजरात के 2002 एपिसोड से कभी आगे ही नहीं बढ़े। रुझान बदलने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाएँ थीं दो महत्वपूर्ण टीवी इंटरव्यू – टाइम्स पर राहुल गांधी और इंडिया टीवी पर नरेंद्र मोदी। जहाँ राहुल गांधी की बार बार सूई अटक जाती थी वहीं नरेंद्र मोदी चुनाव खर्च के सवाल पर जब यह बोले कि सरकार उनकीचुनाव आयोग उनकासीबीआई उनकी... फिर आनंद शर्मा शिकायत क्यों नहीं करते या  जाँच क्यों नहीं करवाते?”  दंगों के आरोप व क्षमा याचना की माँग पर सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट का उल्लेख करते हुए उनका कहना था कि किसी भी अदालत या किसी भी आयोग से इसकी जाँच करवा ली जाएअगर मैं हत्याओं का दोषी पाया जाता हूँ मुझे चौराहे पर सरेआम फाँसी दे दी जाए। और टोपी विवाद पर जब मौलाना मदनी ने यह कहा कि जिस तरह मुझे कोई तिलक लगाने को बाध्य नहीं कर सकता उसी तरह किसी को टोपी पहनने को बाध्य नहीं किया जा सकता। ये सब वे बातें हैं जो किसी तटस्थ मतदाता की दृष्टि में मोदी को आरोपमुक्त करती है। अधिकांश जनता की नज़र में मोदी चुनावी रणभूमि में घिरे उस अभिमन्यु की तरह थे जिसे कई परस्पर विपरीत विचारधारा वाले शत्रुओं ने घेर लिया था फिर भी वे चक्रव्यूह भेदने में सफल रहे। कभी उन्हें राक्षस,कभी गुण्डा, कभी नपुंसक  तो कभी दंगा बाबू जैसे अलंकरणों से नवाज़ा गया। मगर ये सभी वार बूमरेंग की तरह आक्रमणकर्ताओं का ही नुकसान करते रहे। जसोदाबेन के प्रकरण में यह तीर कि जो अपनी पत्नी को नहीं सम्हाल सका वह देश क्या सम्हालेगाहवा का बुलबुला साबित हुआ। अगर मोदी ने दूसरा विवाह किया होता या उनका कोई बाहरी प्रेम प्रसंग सामने आता या जसोदाबेन के परिजनों ने कभी कोई शिकायत की होती तो जरूर शर्मिंदगी या परेशानी का सबब बन सकता था। पत्नी परित्याग किसी फिल्म या ‘साकेत’ जैसे महाकाव्य का विषय तो बन सकता है पर उसमें राजनीतिक माइलेज़ लेने जैसा कुछ नहीं था। इसी तरहकुत्ते के पिल्ले वाले कथन में विदेशी साक्षातकारकर्ता ने स्वयं ट्वीट कर खण्डन किया व संदर्भ से काटकर देखे जाने की बात कही। वहीं अटलजी की राजधर्म निभाने की बात भी पूरा भाषण देखने पर संदर्भ से काटी गई प्रतीत होती है क्योंकि अटलजी आगे यह भी कहते हैं कि मोदीजी ने राजधर्म निभाया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि दिग्विजय - अमृता राय प्रकरण में मोदी ने कोई बदजुबानी नहीं की।
     मोदी पर पुस्तकें आनाविदेशी अखबारों में उनके राज्य के विकास की प्रशंसा होना और तभी मनमोहनसिंह को कमजोर पीएम बताने वाली दो किताबें आना व अमेरिका केवाल स्ट्रीट जर्नल’ में रॉबर्ट वाड्रा के मायाजाल का खुलासा होना आदि कई ठोस मुद्दों की मानों बरसात हो गई। भाजपा की हालत स्टेशन पर खड़ी उस ट्रेन की तरह हो गई थी जो उत्तर दिशा की ओर जाने वाली है मगर उसमें वो यात्री भी खड़े खड़े यात्रा करने के लिए तैयार हैं जिनके पास किसी अन्य स्टेशन के टिकट हैं। वैसे ‘नीच राजनीति ’ वाले एक साधारण से जुमले को वे नहीं छेड़ते तो ज्यादा अच्छा रहता।
     भाजपा को दिग्विजयसिंहबेनीप्रसाद वर्मासलमान खुर्शीदइमरान मसूदममतादी और नीतीशकुमार व उन सभी का भी आभार व्यक्त करना चाहिए जिनकी हैरतअंगेज़ बयानबाजी से मोदी को बैठे बिठाए एडवांटेज मिलता गया। मोदी को उन लोगों का भी अभारी होना चाहिए जिन्होंने प्रवीण तोगड़िया के मुसलमानों को मकान न देनेगिरिराजसिंह का मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने व बाबा रामदेव के राहुल गांधी के दलितों के घर हनीमून मनाने जैसे अद्भुत बयानों से नाराज होने के बजाय उनके सुशासन व सबको साथ लेकर चलने के दावे को तवज्जो दी। इस विश्वास पर वे तभी खरे उतर सकते हैं जब उनके कार्यकाल में जसवंतसिंह की ससम्मान वापसी हो और 75+ वालों को दूर रखने का फॉर्मूला लागू करने के नाम पर आडवाणीजी व सुमित्रा महाजन जैसे पुराने चावलों को शोभा की वस्तु बनाकर न रख लिया जाए। मुस्लिम समाज ने जो जबर्दस्त विश्वास भाजपा में दिखाया है उसे सिर्फ संपूर्ण समुदाय में सुरक्षा का भाव जागृत करके ही रिसिप्रोकेट किया जा सकेगा।                              ***
                       
 
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