Wednesday, 23 July 2014



व्यंग्य               
                          
नारद, अंगद और वैदिक

                                         ओम वर्मा
                                                                         om.varma@gmail.com
र्म ग्रंथों में अक्सर दो दूत, मध्यस्थ या वार्ताकारों का उल्लेख आता है- अंगद और महर्षि नारद ! अंगद अपने दूत-कर्म के लाइफ टाइम अचीवमेंट वाले परफॉर्मेंस के कारण जाना जाता है जिसे राम ने रावण के पास युद्ध टालने के अंतिम प्रयास हेतु एक राजनयिक दूत बनाकर भेजा था। धार्मिक लोग अंगद को इस डिप्लोमेटिक मिशन के कारण जानते हैं और कुछ चतुर लोग उसकी खूबियों को कुछ ऐसी आत्मीयता से आत्मसात कर चुके हैं कि मलाईदार जगह पर ऐसे पैर जमाते हैं कि बरसों उन्हें कोई हिला भी नहीं पाता। 
   जिस रावण ने पड़ोसी राजा की बहू व भावी महारानी का अपहरण कर लिया हो उसका अपराध आज के पटरियाँ उखाड़ने वाले या 9/11 के ट्विन टॉवर्स, या 26/11 के ताज होटल के विध्वंसकारियों से कम तो कतई नहीं माना जा सकता! जाहिर है कि अयोध्या के लिए रावण की छवि वही थी जो अमेरिका के लिए कल ओसामा की या भारत के लिए आज हाफ़िज़ सईद की है। रावण प्रभु श्रीराम से अधिक शक्तिशाली भले ही नहीं था फिर भी उसने प्रभु का सुख चैन तो छीन ही लिया था। इसी तरह हाफ़िज़ सईद की ताकत भी भारत से भले ही बहुत कम हो, तब भी भारत के लिए वह उतना ही अवांछित है जितना त्रेतायुग में राम के लिए रावण था। दूसरे दूत नारद दरअसल एक फ्री-लांसर किस्म के दूत थे जिन्हें मुक्त भ्रमण के लिए कभी भी किसी लोक ने वीज़ा जारी करने में कोई अमेरिकाना हरकत नहीं की थी। उनके कदम जहाँ भी पड़ते वहाँ कलह का बीजारोपण अपने आप हो जाता था।
   लेकिन अब एक और दूत हैं डॉ. वेदप्रताप वेदिक, जिसके उल्लेख के बिना दूतों का इतिहास कभी पूर्ण नहीं कहा जा सकेगा। यह अभी तक एक गूढ़ रहस्य ही बना हुआ है कि वैदिक नारद की तरह स्वयं स्वतंत्र विचरण करते हुए शत्रु के खेमे में गए थे या अंगद की तरह उन्हें वहाँ अच्छे दिनों की खोज में भेजा गया था। भले ही वे किसी गुप्त मिशन के तहत भेजे गए अंगद हों, पर वे दोनों मुल्कों के सियासी हल्कों में खलबली मचाकर नारद तो साबित हो ही चुके हैं। इंटरव्यू की पूरी क्लिपिंग में वे कहीं भी अंगद की तरह अपने राम के सामर्थ्य का बखान करते या अपना पैर जमाकर हिला भर देने की चुनौती देते तो नज़र नहीं आते, अलबत्ता वे इतमीनान से सोफ़े पर बैठे अवश्य नज़र आते हैं। अंगद ने हनुमान जी के साथ मिलकर वानर सेना गठित की थी। मगर ये अपने राम के लिए कोई टास्क फोर्स गठन करते या कोई हेल्पिंग हैण्ड बढ़ाते उससे पहले ही अयोध्या के दरबारियों ने उनसे पल्ला अवश्य झाड़ लिया है। आज के ये अंगद न सिर्फ पूरी तरह अलग थलग पड़ गए हैं,बल्कि उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने तक की बात हवा में उछाली जा रही है। अंगद के साथ तो उसकी माँ तारा जो तत्कालीन पंचकन्याओं में से एक थी, भी राम-रावण प्रसंग में साथ थी। इधर आज देश की प्रभावशाली पंचकन्याओं में से एक सुषमाजी इस अंगद से कई योजन की दूरी बना चुकी हैं।
  
   बहरहाल, जाने अनजाने वैदिकजी जनता व अच्छे दिनों के बीच दीवार बन ही चुके हैं! 
                                                                
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001(म.प्र.)     

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