उच्चारण व अनुवाद में हिंदी
ओम वर्मा
उस दिन खुश तो बहुत थे वे। पर शाम को उनकी खुशियाँ कार्यालयों के एक दिनी हिंदी दिवसीय उत्साह या जीतेजी उपेक्षित मगर श्राद्ध पक्ष में एक दिन तस्वीरों पर हार बदले जाने का सम्मान पाने वाले मरहूमों की तरह काफूर हो गईं। नए-नए मित्र बने बेनर्जी बाबू ने उन्हें शाम को अपने यहाँ 'भोजन' के लिए आमंत्रित किया था। वे शाम को उनके घर सपरिवार 'मत्स्य-भक्षण' का मन बनाकर पहुँचे तो देखते हैं कि हॉल का फर्नीचर हटाकर जमीन पर बैठक व्यवस्था की गई है और वहाँ तबला हारमोनियम आदि रखे हुए हैं। यानी बांग्लाभाषी बेनर्जी बाबू ने उन्हें 'भजन' के लिए आमंत्रित किया था कि 'भोजन' के लिए। यह और बात है कि बाबू मोशाय ने उन्हें 'रोबिन्द्रो शोंगीत' की मधुरता में डुबाकर न सिर्फ भूख के अहसास से बचाया, बल्कि उन्हें 'जोल' और चाय भी 'खिलाई'। मेरे एक तेलुगूभाषी मित्र हर वर्ष फरवरी-मार्च में मुझसे 'बडजट' पर 'हॉनेस्टली' पूरे एक 'हवर' तक चर्चा करते हैं। तीस वर्ष से साथ काम कर रहे इस मित्र के मुख से आज तक मैंने कभी बजट, ऑनेस्टली या अवर नहीं सुना। इसी तरह कभी-कभी अनुवाद की साधारण सी त्रुटि भी परिहास निर्मित कर देती है। टेलीप्रिंटर के युग में एक अखबार में खबर छपी थी, ''डाकुओं और पुलिस में गोलियों का आदान-प्रदान।" जाहिर है कि खबर थी कि, ''डेकोइट्स एंड पुलिस एक्सचेंज्ड फायर्स।'' अब 'एक्सचेंज् का शाब्दिक अनुवाद 'आदान-प्रदान' ही होना था। न्यूज़ पढ़कर ऐसा लगा मानो पुलिस का शिष्टाचार सप्ताह चल रहा होगा जिस कारण पुलिस और डाकुओं में एक दूसरे को मिठाइयों के साथ तश्तरी में रखकर लखनवी अंदाज में पहले आप -पहले आप कहते हुए गोलियों का आदान-प्रदान संपन्न हुआ होगा। एक बड़े संस्थान के फायर -ब्रिगेड के दफ्तर में स्थित स्टोर्स पर वर्षों तक 'अग्नि भण्डार' लिखा रहा। समझना मुश्किल था कि ये आग बुझाते हैं या आग जारी करते हैं। बाद में उसे 'अग्नि शमन सामग्री भण्डार' लिखा गया उसी संस्थान में जनरल केशियर को वहाँ के कर्मचारी वर्षों तक 'सामान्य रोकड़िया' लिखते व समझाते रहे। बाद में उन्हें 'महारोकड़िया' घोषित किया गया। संजय दत्त जब जेल से रिहा हुए तो पत्रकारों के यह पूछने पर कि ''अब वे कैसा महसूस कर रहे हैं?'' उनका जवाब था, ''आय’ म फीलिंग ग्रेट !" अनुवादक की त्रुटि के कारण इसी समाचार का शीर्षक ''संजय खुद को महान समझने लगे!" प्रकाशित हुआ। आस्तिक व्यक्ति सिर्फ ईश्वर को महान मानेगा और नास्तिक भी कम से कम खुद को महान तो नहीं कहेगा। हमारे गुणों के कारण दूसरा व्यक्ति भले ही हमें महान कहे, पर खुद को महान समझना रामायण रचे जाने का कारण बन सकता है |
क्रिकेट
में जो बल्लेबाज पिच के स्वभाव तथा गेंदबाज व क्षेत्ररक्षण की खामियों उठाकर रन बना
ले उसे 'अपार्चुनिस्ट
बेट्समेन' कहा जाता है। एक बार रेडियो पर टेस्ट
मैच की कामेंट्री में मैंने एक्सपर्ट कमेंटेटर से सुना, ''उन्होंने
उस स्थान पर फील्डर नहीं होने का फायदा उठाकर वहाँ शॉट लगाकर रन ले लिया है। वे एक अच्छे अवसरवादी बल्लेबाज
हैं।
अँगरेजी
में 'अपार्चुनिस्ट
बेट्समैन' होना
अच्छा
गुण हो
सकता है, पर
हिन्दी में किसी को अवसरवादी कहना निश्चित ही उसका घोर अपमान करना
है।
और फिर भाषा तो अपने आप में ही महान होती है। ऐसी छोटी-मोटी त्रुटियाँ या विसगतियाँ उसके प्रगति रथ को कभी नहीं रोक सकतीं।
व्हाट इज़ योर ओपिनियन सर?
***
100,रामनगर एक्स्टेंशन, देवास 455001
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