Wednesday, 5 November 2014

मानस के राजहंसों के नाम !



व्यंग्य (पत्रिका, 01.11.14.)
              मानस के राजहंसों के नाम !
                                   ओम वर्मा
                        
om.varma17@gmail.com

भे  रहे  स्नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हे बुलाने को| ओ मानस के राजहंस, तुम भूल न जाना आने को पता नहीं किस महाकवि ने ये पंक्तियाँ लिखी थीं। मगर जिस तरह बैण्ड वालों के लिए बहारों फूल बरसाओ...गाना देकर शंकर-जयकिशन अमर हो गए हैं उसी तरह वैवाहिक पत्रिकाओं के लिए स्वागत की उक्त दो पंक्तियाँ लिखकर वह अनाम कवि भी युगों युगों के लिए अमर हो गया है।
         मगर पिछले कई वर्षों में मैं कई ऐसी शादियों का भी हिस्सा रहा हूँ जिनमें हुई कुछ विशिष्ट घटनाओं के कारण मैं इन पंक्तियों में आंशिक सुधार किया जाना आवश्यक समझता हूँ। बात शुरू करता हूँ राधेश्याम जी से। इनकी खासियत है कि इनको निमंत्रण चाहे अकेले व्यक्ति का मिले, हमेशा छह लोगों के भरे-पूरे परिवार के साथ ही जाते हैं। घर में अगर चार ऐसे मेहमान भी हों जिनका विवाह वाले घर से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं हो, उन्हें भी साथ ले जाने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। कोई भी व्यक्ति इन राधेश्याम जी को जो वैवाहिक पत्रिका दे उसमें इस मानस के राजहंस को निम्न पंक्तियों से निमंत्रण दिया जाए- भेज  रहे  स्नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हे बुलाने को। घर भर के मेहमानों को तुम साथ न लाना खाने को
      इसी तरह एक हैं बत्तो बुआ। रिश्ता चाहे कितना ही लंबा हो, हर कार्यक्रम में चार दिन पहले से पूरे परिवार के साथ मौजूद। वे जहाँ रुकें वहाँ तीसरे दिन लड़ाई न हो यह हो ही नहीं सकता। उनकी यह अमिट छाप नाते रिश्तेदारों में दूर दूर तक बनी हुई है। बेहतर हो कि उनके माननीय राजहंस यानी जगत फूफाजी को भेजी जाने वाली पत्रिका में दूसरी काव्य पंक्ति में निम्न परिवर्तन हो- भेज रहे.....। साथ न लाना बत्तो भुआ को घर भर से लड़वाने को
     ऐसे ही बिहारीलाल जी का प्रबंधन भी समझना मुश्किल है। पिछले बीस वर्षों में इनके यहाँ चार शादियाँ हो चुकी हैं। हर शादी में दो घण्टे में खाना खत्म ! हर बार कम से कम सौ-डेढ़ सौ लोग बिना भोजन के वापस लौटे हैं। इन्हें अपनी अगली वैवाहिक पत्रिका में काव्य पंक्तियों को निम्नानुसार रूपांतरित कर छपवाना   चाहिए- भेज रहे...। थोड़ा सा खाना भी अपने साथ में लाना खाने को
     और अब बात परमानंद काका सा. की। वे कला फिल्म के डायरेक्टर की तरह शादियों में भी हमेशा ऑफ बीट चलते हुए गिरते पानी में दाल बाफले और पूस की रात में हो  रही दावत में आइसक्रीम या श्रीखण्ड की माँग कर बैठते हैं। दूल्हे को किसी भी बात पर बिलावल भुट्टो द्वारा कश्मीर की एक एक इंच जमीन की तरह अड़ जाने के लिए भड़काना उनका प्रिय शगल है। इनको दिए जाने वाले निमंत्रण पत्र में निम्न पंक्तियाँ होनी चाहिए-भेज रहे...। परमानंद जी आ मत आना फिर माथे रँगवाने को
     और अंत में बात भियाजी की बात जिनके बिना शहर का हर  कार्यक्रम अधूरा है। ये राजनीति के एक उभरते हुए सितारे हैं। पिछले बीस साल से उभर ही रहे हैं। उन्हें व उनके दाएं बायों को यह अटूट विश्वास है कि वे एक दिन टिकट पाकर ही रहेंग़े। चमचों की एक पूरी की पूरी फौज़ हमेशा उनके साथ रहती है। वैवाहिक कार्यक्रमों में भी वे पूरे लवाजमें के साथ पहुँचते हैं। आधे चमचे पहले गला तर करके आते हैं। इनको दिए जाने वाले निमंत्रण पत्र में निम्न पंक्तियाँ प्रस्तावित हैं- भेज रहे...। चमचों की तुम फौज़ न लाना झूठी शान दिखाने को॥”  
    वैवाहिक कार्यक्रमों की गरिमा बनाए रखने के लिए निमंत्रण पत्रों में आवश्यकतानुसार ये सुधार निश्चित ही उपयोगी साबित होंगे।
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001

3 comments:

  1. Maja aa gaya, bhaiyaji! Bada hi lajawab hai

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  2. Kya aap abhi jivit hain

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  3. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार!
    कृपया अपना पूरा परिचय दें।

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