Saturday, 6 December 2014



व्यंग्य जनसत्ता (30.11.14.)
              
      उफ् ! यह हाय टेक सफाई
              ओम वर्मा om.varma17@gmail.com








                                    
धर दिल्ली में मोदी सर ने अपने कर-कमलों में झाड़ू थामकर अमृत छकाकर नौ बंदे तैयार क्या करे कि गंदगी के ढेर पर सोया देश यकायक जाग उठा! जो टीवी पत्रकार सबसे पहले हमने दिखाया की होड़ के चलते शूकरों तक से यह बाइट लेने को विवश थे कि गंदगी के इस ढेर में अपनी विशाल फेमिली के बीच कोड़ा जमालशाही खेलते हुए वे कैसा महसूस कर रहे हैं, वे अब राष्ट्रवादी कांग्रेस की  बीजेपी के लिए यकाकक बदल गई राय की तरह यही प्रश्न इन नवरत्नों से पूछते फिर रहे हैं। हर शहर में अधिकारियों, छुटभैयों, नेत्रियों, अभिनेत्रियों, खिलाड़ियों और महानायकों से लेकर भारतरत्नों तक में झाड़ू थामने की होड़ सी लग गई है। 
      मगर ग्राहक और मौत का जैसे कोई भरोसा नहीं किया जा सकताउसी तरह प्रजातंत्र में कर्मचारियों और उनके लीडरों का भी कोई भरोसा नहीं कि वे कब हड़ताल पर चले जाएँ! फिर वैसे भी अनागत को कौन टाल सकता है। लिहाजा मेरे शहर में सफाईकर्मी अकस्मात हड़ताल पर चले गए हैं।
     पहले तो लगा कि शायद कचरा जान-बूझकर छोड़ा गया है ताकि अन्य बचे वीआयपियों के ‘कर-कमलों’ से हाय-टेक सफाई कार्य संपन्न करवाया जा सके। उधर वीडियो चैनल वालों को यह शिकायत थी कि सारे वीआयपी लोगों ने अपनी कर्मभूमि उसी स्थल को क्यों बनाया जहाँ यथासमय या तो सफाई होती रहती थी या जहाँ कचरा न के बराबर फेंका जाता था। इस कारण टीवी फुटेज में कचरे से ज्यादा झाड़ू और झाड़ुओं से अधिक झाड़ुओं पर एहसान करने वाले नजर आ रहे थे। ऐसी क्लिपों से चैनलों व अंततः सारे सफाई अभियान की विश्वसनीयता ही खतरे में न पड़ जाए शायद यह सोचकर कचरा जमा होने दिया जा रहा होगा!
    कूड़े करकट के ढेर जब टीवी चैनलों व अखबारों की हेडलाइन्स चुराने लगे में तो संबंधित अधिकारियों ने कामगारों के प्रतिनिधियों से चर्चा शुरू की। कामगारों के संयुक्त मोर्चे ने अपना माँग-पत्र प्रस्तुत किया जिसका लुब्बे-लुबाब इस प्रकार है कि वे पीढ़ियों से सफाई का कार्य करते आ रहे हैं फिर भी उनके काम पर आज तक कभी किसी पीएम, सीएम या पार्षद तक ने कभी कोई अभिनंदन, बधाई या प्रशंसा पत्र नहीं दिया या ट्वीट भी नहीं किया। जबकि जिन्होंने जिंदगी में पहली बार सिर्फ दस पंद्रह मिनट के लिए टीवी कैमरों के आगे झाड़ूँ थामी, उन्हें पीएम सा. से तारीफों पे तारीफें मिल रही हैं। उनकी यह भी माँग है कि उन्हें भी वीआयपी सफाईकर्ताओं की तरह केप, हाथों के दस्ताने, पहनने को डिजाइनर खादी के कपड़े, इंपोर्टेड गागल्ज़ व नाक के लिए मास्क व सैनेटाइजर दिए जाएँ। उन्हें भी काम करते हुए दिखाकर लाइमलाइट में लाया जाए।
    बहरहाल, स्वच्छ भारत अभियान की अखबारों में छपी तस्वीरें चीख चीखकर बयां कर रही हैं कि मात्र दो-चार फावड़े भर कचरे को आठ-दस बड़े मियां हाथ में झाड़ू को पतवार की तरह चलाकर बुहार रहे हैं, साथ में कुछ छोटे मियां बिना झाड़ू के भी खड़े हैं। घर को स्वच्छ रखने वाली बाई या ससुराल में पहले दिन से आज गठिया होने तक भी जो गृहलक्ष्मी रोजाना झाड़ू लगाती चली आ रही है उसका आज तक एक फोटो नहीं खींचा और अपनी झाड़ू लगाती अखबारी तस्वीर देखकर आत्ममुग्ध हुए जा रहे हैं। वीडियो क्लिप तो और भी मजेदार! पहले वीआयपी ने जहाँ झाड़ू मारी उसी जगह दूसरे फिर तीसरे और फिर चौथे ने... ! कचरा नहीं हुआ मानो हॉकी की गेंद हो गई जिसे झाड़ू की हॉकियों से सब जोरदार हिट लगाकर गोल कर देना चाहते हैं। लगभग सौ वर्ग फीट के भूखंड को साफ करने के लिए दस आदमी और आठ झाड़ू! अगर इसी तामझाम के साथ देश में सफाई अभियान चलाया जाए तो जिस तरह गंगा की सफाई में लगने वाले समय को लेकर न्यायपालिका को पूछताछ करनी पड़ी, कुछ वैसी ही शायद स्वच्छ भारत अभियान को लेकर भी करना पड़े।                 
                                                                                                                                             ***
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 (म.प्र.) 

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