सर जी ईमानदार हैं!
ओम वर्मा
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सर जी ईमानदार थे, ईमानदार हैं और ईमानदार रहेंगे! वे जहाँ खड़े हो
जाते थे, ईमानदारी वहीं से शुरू होती थी। उनकी ईमानदारी पर
भगवान सत्यनारायण सहित सारे देवी-देवता, यक्ष, किन्नर, गांधर्व सभी आकाश से लगातार पुष्प वर्षा कर रहे हैं। "राम की चिड़िया राम का खेत, खाओ
री चिड़िया भर भर पेट" उनके जीवन का शुरू से ही मूलमंत्र है इसलिए उन्होंने
किसी ‘खाने’ वाले की तरफ कभी आँख उठाकर भी नहीं देखा।
वे ईमानदारी के विश्वामित्र हैं इसलिए बेईमानी की मेनका उनकी तपस्या कैसे भंग कर सकती थी? वे ईमानदार हैं और ईमानदारी उनकी परिणीता है। उन्हें ईमानदार सत्यवान की तरह चिंता रहती है तो सिर्फ ईमानदारी की मूर्ति यानी अपनी सावित्री की जिससे कोई यमराज भी उन्हें जुदा नहीं कर सकता। अपने ईमानदार प्रभा मंडल पर वे ग्रीक देवता नार्सिसस की तरह आत्म मुग्ध हैं। जब वे सिंहासन पर आरूढ़ थे तब उन पर चढ़ा ईमानदारी का आवरण इतना सख्त व ओपेक (opaque) यानी अल्पपारदर्शक था कि उसके पार प्रजा का हाल देख पाने में वे असमर्थ थे।
ईमानदार तो वे इतने रहे कि विपक्षी खेमों के सारे सेनापति भी अपने बच्चों व नाती-पोतों को उनकी ईमानदारी की कहानियाँ सुनाते हुए नहीं अघाते। वे ईमानदार हैं उस 'बाबा' की तरह जिसने ब्रह्मचर्य व्रत ले रखा है और जो स्त्री की छाया से भी कोसों दूर भागता है। उनका कोई संगी-साथी उनके ही सामने किसी अबला का चीरहरण करता रहा और वे निस्पृह व शांतचित्त बैठे रहे। हालांकि वे दुराचारी का वध करने में समर्थ थे पर इसका जोखिम उन्होंने इसलिए नहीं उठाया कि उन्हें डर था कि इस चक्कर में स्त्री स्पर्श से कहीं उनका ब्रह्मचर्य न टूट जाए!
वे ईमानदार हैं 'शोले' के ठाकुर की तरह जिसके हाथ उस गब्बर ने काट रखे थे जिसकी कोयले की खदानें हैं। इस ठाकुर की सहायता के लिए गाँव वाले सामने आ तो रहे हैं पर उनमें कोई जय या वीरू नहीं हैं। उनके सामने देश की कोयला खदानें तारामती की तरह गिड़गिड़ाती रहीं मगर वे हरीशचंद्र की तरह अपना फर्ज़ निभाने को मजबूर थे। वे हेमलेट की तरह 'टू बी ऑर नॉट टू बी' के द्वंद्व में फँसे ईमानदार राजकुमार हैं जिसे मालूम था कि कोयला खानों के लुटेरे के रूप में बाप का हत्यारा सामने है मगर मासूम प्रिंस हाथ बाँधे खड़ा है।
'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन वैसी' की तर्ज पर वे ईमानदार हैं इसलिए स्टाफ और सारे सहयोगियों में भी ईमानदार की छवि ही देखते रहे। जैसे भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली थी, वैसे ही हमारे सर जी ने भी अपने कार्यकाल में कोयला खानों के आवंटन में कभी हस्तक्षेप न करने की शपथ ले रखी थी। वे धृतराष्ट्र की तरह ईमानदार हैं जिन्होंने 'कुछ भी होते' अपनी आँखों से देखा ही नहीं है तो किसी को दोषी कैसे मानें? वे उस ईमानदार वणिक की तरह हैं जिसके लिए नौकाओं में भरा हुआ सारा माल-असबाब महज़ 'लता-पत्र' ही है। कोई 'राजा बेटा', कोई 'दाड़ी वाला' या कोई हिंडाल्को उसमें सेंध लगा भी दे तो क्या फर्क पड़ता है? उनके पार्टी के सारे ‘सक्रिय’ कार्यकर्ता उनकी ईमानदारी का स्तुतिगान करते हुए 24 अकबर रोड से 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग तक का ‘लंबा’ मार्च कुछ इस अंदाज़ में निकालते नजर आए मानो उन्हें कोई ‘समन’ नहीं ‘सम्मान’ प्राप्त हुआ है।
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