Tuesday, 3 March 2015

जरूरत है एक बजटावतार की !



            जरूरत है एक बज़टावतार की !
                                     ओम वर्मा 
                              
                                        
भारतीय अर्थ-व्यवस्था के फ़लक पर तीन बिंदु हैं- ‘सरकारी बज़ट’, ‘आम आदमी और वित्तमंत्री जिन्हें मिलाओ तो बनता है - ‘घाटे का त्रिकोण। दुर्भाग्य से इसके तीनों कोणों का योग कभी भी लाभ और समृद्धि के दो समकोणों के योग की बराबरी नहीं कर पाया है।
     हाँयह बजट का सत्र यदि किसी के लिए खुशगवार साबित होता है तो वे हैं हमारे त्वरित टिप्पणी विशेषज्ञकार्टूनिस्टऔर टीवी चैनलों के सूत्रधार! और कोई त्रिशंकु बन कर रह जाता है तो वह है हमारे प्रेमचंद का होरी और हमारे शिवपालगंज का शनिचर! हमारे अर्थशास्त्री विदेशी छात्रों के लिए किताबें लिख सकते हैंसालों तक रिज़र्व बैंक सम्हालने से लेकर लाल किले पर झण्डा फहरा सकते हैंतीस-बत्तीस रु. रोज में गरीबों को सुख से रहने का फरमान जारी कर सकते हैंलेकिन बजट का घाटा आज तक पूरा नहीं कर सके। होरी के सर पर कर्ज़ कल भी था तो आज भी है... लंगड़ फैसले की नकल के लिए कल भी अदालतों के चक्कर लगाता था और आज भी लगाता है। उधर  शिवाजी पार्क में नानी पालखीवाला का बजट भाषण सुनने के लिए साल दर साल ज्यों-ज्यों भीड़ बढ़ी थी, त्यों-त्यों  इधर बजट का घाटा और अमीरी गरीबी का फासला बढ़ता गया था।  
     जिस प्रकार मंचीय चुटकुलेबाजीतुकबंदी और ज़ुल्फों के पेचो-खम के वर्णन में उम्र गुजार देने वाले ‘कवियों’ को समकालीन कविता और सिर्फ सुंदरियों के चित्र बनाने वाले को एक अमूर्त चित्र कभी समझ में नहीं आताउसी प्रकार अपने राम को भी वित्तमंत्रियों का बजट भाषण आज तक कभी समझ में नहीं आया। मैंने एक त्वरित टिप्पणीकार अर्थशास्त्री से पूछा-
    “बजट आपकी राय में कैसा है?”
     उनके मुखारविंद पर प्रतिक्रिया तो धरना देने को उद्यत केजरीवाल की तरह तैयार बैठी थी। वे बोले-
    “बजट में डेफ़िसिट इतने से इतने परसेंट हो गया हैइससे इतने परसेंट इंफ्लेशन होगा और विकास की दर इतनी हो जाएगी... सेंसेक्स इतना गिर जाएगा...
     “शास्त्रीजीआप सिर्फ यह बताइए कि इससे आम आदमी के अच्छे दिन आएंगे या नहीं?” मैं अर्नब गोस्वामी के कांग्रेस उपाध्यक्ष से लिए गए अद्भुत इंटरव्यू की तरह सामने वाले की बालू में से तेल निकालने का प्रयास करने लगा।
     “यह बजट थोड़ा अच्छा है और थोड़ा खराब!एक डिप्लोमेटिक जवाब प्राप्त हुआ।
     “एक बात कुछ बोलिएअच्छा है या खराब?” मैंने भी चील के घोसले में माँस तलाशना चाहा।
     “यार हम इतने सालों से त्वरित टिप्पणी कर रहे हैंपर हमारी खुद समझ में नहीं आया कि हम बजट की तारीफ कर रहे हैं या आलोचना…,” चश्मा चढ़ाते हुए वे बोले, “आज तुम्हें क्या समझाएँचलो हटो! मुझे बजट पर परिचर्चा में भाग लेने के लिए स्टुडियो जाना है।
     मेरा मन बैरागी हो उठा और प्रभु स्मरण कर बैठा। हे दीनबंधु! हे दीनानाथ!! जैसे तुमने त्रेता में रावण को मारने के लिए और द्वापर में कंस के वध के लिए अवतार लिया था, वैसे ही कलयुग में अच्छे दिन लाने के लिए बजटावतार कब लोगे? अब गीता वाला वचन निभाने का समय आ ही गया है प्रभु!
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