Thursday, 5 November 2015

व्यंग्य - उनका पाद प्रहार


 व्यंग्य                              
                उनका पाद प्रहार
                                                                           ओम वर्मा
भी कभी बच्चे भी यह क्यों  भूल जाते हैं कि वे हर हाल में बच्चे पहले हैं। नेता के स्वागत में सड़क पर वंदनवार की तरह सजना और खड़े रहना, हाथों में झंडियाँ लहराना, पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी या बाल दिवस के दिन एकाध बार उनकी गोद में फोटो खिंचवाना, छब्बीस जनवरी की परेड की झाँकी में ठिठुराती ठंड में ठंडे पानी से सलामी मंच के सामने नहाना, बोरिंग के खुले होल में यदा कदा टपक जाना...वे इसी के लिए बने हैं। इससे ज्यादा उन्हें और क्या चाहिए ?  नेता की राह का रो+ड़ा बनना उन्हें शोभा नहीं देता।
      अब मंत्री तो मंत्री ही होता हैं और उसके हाथों में पूरे प्रदेश की जंत्री होती है। उनके हाथ हाथ नहीं रहते बल्कि उनका कमलीकरण हो जाने से वे 'कर कमल' हो जाते हैं। वे जब स्वयं अपने कर कमलों से सफाई जैसा पवित्र कार्य संपन्न करके लौट रही थीं तो ऐसे में कोई मैला कुचेला बच्चा उनकी राह रोक ले तो क्या यह शान में गुस्ताखी नहीं होगी?  वैसे भी  सत्ता जिनकी ठोकर में होती है उनके लिए राह में बाधा बनता एक बच्चा रास्ते के पत्थर से क्या ज्यादा महत्व रखता है ?  बच्चा जिसके  मतदान केंद्र तक पहुँचने में अभी बहुत समय बाकी है।
    एक रुपया माँगे जाने पर वे कुछ इस तरह नाराज हुईं मानो उसने एक रुपया नहीं बल्कि अपने हिस्से के पूरे पंद्रह लाख रु माँग लिए हों! मात्र एक रुपए के लिए जिसने उनका लाखों का समय बरबाद कर दिया वो क्या उसे सिर पर बिठाएंगे! राजनीति में रिवाज है कि उजाले में सिर्फ घोषणाएँ की जाती हैं,  बिना खाते-बही का वितरण तो सिर्फ अँधेरे में ही संपन्न होता है। मान लो अगर वे उस समय बालक को वांछित धनराशि प्रदान कर देतीं तो बाद का परिदृश्य शायद कुछ यूँ होता कि उन पर पहले तो भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता। टीवी चैनलों पर परिचर्चा के नाम पर जो काँव काँव मच रही होती! उनके समर्थक तर्क देते कि मंत्री महोदया ने एक रुपया दान देकर विशाल हृदय का परिचय दिया है। प्रतिपक्ष वाले कहते कि यह एक रुपया कहाँ से आया है इसकी जाँच होनी चाहिए। आप वाले कहते कि बच्चा और मंत्री महोदया आपस में मिले हुए हैं। इधर राहुल जी बच्चे  के घर रात गुजारने की घोषणा हो जाती जिस कारण बच्चा एक बार फिर चर्चा का केंद्र बिन्दु बन जाता-!
      वैसे लात तो भृगु ने भी हरि को मारी थी मगर हरि ने कुपित होने के बजाय उलटा ऋषिवर से ही पूछ लिया था कि कहीं उन्हें चोट तो नहीं आई। काश इस बच्चे की आवाज भी वे सुन पातीं जो सुरक्षाकर्मियों के तुरंत एक्शन में आ जाने के कारण बैंड बाजे के शोर में दुल्हन की सिसकियों की तरह घुट कर रह गई थी। उसके विलाप का तो शायद यही तर्जुमा किया जा सकता है  कि “दीदी आपके पैरों में चोट तो नहीं आई...!”
       भृगु ऋषि की लात खाकर भी हरि ने उन्हें भले ही क्षमा कर दिया था मगर पीड़ित पक्ष की ओर से हरिप्रिया देवी लक्ष्मी भृगु पर कुपित हो गईं थी और शाप दे दिया था कि वे ब्राह्मणों के यहाँ कदम नहीं धरेंगी! यानी मुद्दई सुस्त और गवाह चुस्त!  इसी तरह बच्चा शायद भूल जाए क्योंकि सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों को गालियाँ सुनने व लाते खाने की तो आदत सी होती है। मगर इस बार वीआईपी पाद प्रहार के कारण बात जाहिर है कि दूर तलक अवश्य जाएगी।  
                                                  ***

100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 म.प्र. 

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