व्यंग्य
कायर और डर
ओम वर्मा
जॉर्ज
बर्नार्ड शॉ और एनी बेसेंट में गाढ़ी मित्रता थी। फिर यह मित्रता इस सीमा तक पहुँच
गई कि एनी बेसेंट पति को तलाक देकर
बर्नार्ड शॉ से शादी करने को तैयार हो गईं। मगर फिर स्टोरी में ट्विस्ट तब आया जब मजदूरों
के एक आंदोलन में दोनों एक जुलूस में
शामिल हुए। पुलिस कार्रवाई में एनी बेसेंट के कपाल पर चोट लगी। एनी बेसेंट ने अगल
बगल में देखा तो मालूम हुआ कि बर्नार्ड शॉ गायब हो गए थे। शाम को एनी बेसेंट जॉर्ज
बर्नार्ड शॉ के पास पहुँची और गुस्से से कहा -“तुम भाग खड़े हुए...यू आर ए कावर्ड
(तुम कायर हो)!” इस पर बर्नार्ड शॉ ने उन्हें शांत करते हुए जवाब दिया-“इट
इज़ बेटर टु बी ए कावर्ड दैन ए फूल” (मूर्ख होने से कायर होना अच्छा है)। बाद
में जब अफसाना अंजाम तक न पहुँच सका तो उन्होंने उसे ‘एक खूबसूरत मोड़ देकर’ छोड़ दिया और फिर भारत आ बसीं। एक प्रेम कहानी संजय लीला
भंसाली के लिए आगामी फिल्म का विषय छोड़कर इतिहास में दफ़्न हो गई।
कायर तो दुनिया में कल भी थे और आज भी हैं। भरी
सभा में पांचाली का चीरहरण हुआ तब जो दरबारी शीशनत बैठे हुए थे वे कायर-रत्न नहीं
तो क्या थे? आज कहीं दुर्घटना
हो जाए तो बेचारा घायल पड़ा कराहता रहता है और उधर सारे कायर विडियो शूटिंग में
वीरता दिखाने लगते हैं। समाज में सदियों से व्याप्त अंधविश्वास अपने आप में एक ऐसी
कायरता है जिसे दूर करने के लिए जब कोई दाभोलकर वीरता दिखाता है तब हमारे
धर्मवीरों को दुनिया रसातल में जाती नजर आने लगती है। और धर्म तो कायरों का सदा से
ही सबसे बड़ा हथियार और आवरण रहता आया है। इसके नाम पर किसी भी निहत्थे वीर को
अभिमन्यु की तरह घेरकर कायरों द्वारा कहीं भी मारा जा सकता है।
इन
दिनों कायर लोग कुछ इस तरह भयभीत हैं कि उन्हें आक्रमण में ही अपना बचाव नजर आता
है। सियासत एक ऐसी पाठशाला में तब्दील हो गई है जहाँ मौलवी से डाँट खाकर कायर ‘अहले-मक़तब’ बार बार उसी आयत को दोहराने लगते हैं। कायर अंदर से जितना पस्त होता है ऊपर से स्वयं को उतना ही ‘रसूखदार’ व प्रभावशाली दिखाने के प्रयास करता रहता है। जैसे ट्रैफिक नियमों का
उल्लंघन करने वाला पकड़ाए जाने पर सबसे पहले अपने बाप के ‘बड़े
आदमी’ होने की धौंस जमाता है या ‘भियाजी’ से अपनी पहचान बताता है, वैसे ही सीबीआई कार्रवाई
से घबराई बहू अपनी किसी समय प्रभावशाली रही सास का नाम लेकर डराने की कोशिश करती
है।
चोरी, डर व भय का मनोविज्ञान सचमुच अजीब भी है और एक समान भी। एक चोर चोरी करके
भागा और अँधेरे में एक हवलदार से टकरा गया। हवलदार ने पूछा कौन है तो बोला कि चोर
हूँ। इस पर वर्दीधारी ने उसे एक थप्पड़ रसीद करते हुए डाँटा ,
“पुलिस से मज़ाक करता है...चल भाग यहाँ से!” यही स्थिति आज के चोर और अ-चोर
की हो गई है। जो चोर नहीं है उसके पीछे दुनिया ‘चोर चोर’ का शोर करती लाठियाँ लेकर भाग रही है जबकि चोर सरे-आम स्वयं को चोर बता
रहा है तो भी कोई उसकी तरफ झाँकने को भी तैयार नहीं है। हद तो यह है कि कुछ लोगों
के मुँह पर माखन अभी भी लिपटा हैं और ‘माताओं’ के पूछे जाने पर सीना तानकर कह रहे है कि ‘मैया
मोरी, मैं नहीं माखन खायो’!
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