Friday, 13 May 2016

व्यंग्य - डिग्री की पड़ताल, नईदुनिया, 04/05/16


                                                                                                         व्यंग्य
                              डिग्री की पड़ताल

                                                           
                                             ओम वर्मा
सुनो जी और कहो जी, हर आम परिवार में ये चार शब्द या दो वाक्य रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। कइयों की तो पूरी जिंदगी ही इनमें फ़ना हो जाती है। 
     लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ। मेरे कहो जी कहते ही जो प्रश्न या फ़र्माइश सामने आई उससे घर का दृश्य कुछ ऐसे बदला मानो टीवी पर किसी ने संतों के प्रवचन वाला चैनल बदल कर एकदम से किसी राजनीतिक मुद्दे पर चल रहा टॉक शो वाला चैनल लगा दिया हो। किसी आरटीआई कार्यकर्ता के अंदाज को भी मात करने वाले तेवर के साथ वे बोलीं-
     “मुझे तुम्हारी डिग्री देखना है।”
     मेरी डिग्री तो जब तुम्हारे पूज्य पिताजी मुझे देखने के लिए आए थे तब उन्होंने भी नहीं माँगी थी। आज जबकि घर में बहू और बेटी ससुराल में है, और हम दादा –दादी बन चुके हैं, तुमको मेरी डिग्री देखने की क्या जरूरत पड़ गई?
     जो गलती मेरे पिताश्री ने करी मैं उसे सुधारना चाहती हूँ। किसी दिन मेरा बुलावा आ गया और ऊपर वाले ने पूछ लिया कि तुम्हारे पति के पास कौनसी डिग्री थी तो मैं क्या जवाब दूँगी?”
     एक बार सावित्री को वरदान देकर यमराज जी फँस जरूर गए थे जिस कारण सत्यवान की घर वापसी हो गई थी। मगर यह कलयुग है और किसी भी धर्मगुरु से पूछकर देख लो कि क्या पति की डिग्री की सही जानकारी मिलने पर उन्होंने किसी की आज तक घर वापसी करवाई है?” मैंने बिल पास कराने के लिए विपक्षी दलों की चिरौरी करने की स्टाइल में पासा फेंका।
     मुझे शक है कि तुमने शादी से पूर्व अपने पास जिस डिग्री का होना बताया था वह फर्जी है। मैं अब उसकी जाँच करवाना चाहती हूँ।
     माजरा अब मेरी समझ में आया। यहाँ दिक्कत यह थी कि मेरे पिताश्री ने जिस जमाने में बी.ए. किया था वह डिग्री को गाउन वाले फोटो के साथ मढ़वाकर बैठक में लटकाने का जमाना था। मेरे समय में नॉन – टेक्निकल डिग्री को सिर्फ पोंगली बनाकर पटक देने का चलन शुरू हो चुका था। अपनी तमाम चीजों के बारे में मैं शुरू से जिस तरह का लापरवाह रहा हूँ उस कारण जैसे जैसे पत्नी मेरी डिग्री के फर्जी होने की आशंका पर ज़ोर देती जा रही थी वैसे वैसे मेरे मन में उसके न मिल सकने का एहसास गहराता जा रहा था।  
     देखो तुम्हारा सौभाग्य या सुहाग मेरा तुम्हारे पति होने से है न कि मेरी डिग्री से, मैंने चुटकी भर सिंदूर की कीमत बताने वाले अंदाज में समझाना चाहा, मेरी कमाई से मकान, बच्चों की पढ़ाई, शादी-ब्याह सब हमने किए कि नहीं यानी मैं एक अच्छा पति साबित हुआ कि नहीं?”
     हाँ मैं मानती हूँ कि तुम एक अच्छे पति हो और तुमने सारे फर्ज़ पूरे किए। मगर इससे तुम्हारी डिग्री की वैधता कैसे प्रमाणित हो सकती है? ये सारे काम तो पाँचवी फेल धन्ना काका ने भी किए हैं। मुझे तो आज बस डिग्री देखना है तो देखना है...!
     अब मैं समझा। मेरे सुझाव पर वे सास-बहू टाइप सीरियल छोड़ कर आजकल टीवी पर न्यूज़ व टॉक शो ज्यादा देखने लगी थीं। मेरे खिलाफ बहुत दिन से उन्हें कोई नया मुद्दा हाथ नहीं लग रहा था तो डिग्री को मुद्दा बना लिया गया था। शायद कुछ लोगों की नजर में घर या देश चलाने वाले में उसे चलाने के लिए अक्ल, ईमानदारी, अच्छी नीतियाँ और उनका ईमानदारी से अनुपालन करवाने से कहीं ज्यादा चलाने वाले के पास डिग्री होना ज्यादा जरूरी है। काश कोई उन्हें यह बता सकता कि बहुत पढे लिखे नौ विद्वानों को अपने राज्य में ससम्मान नियुक्त करने वाला महान शासक मुहम्मद जलालुद्दीन अकबर डिग्री के मामले में तूफानी ठंडा था!
                                                    ***
100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 (म.प्र.)
     

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