Friday 27 May 2016

व्यंग्य - लकीर की सर्जरी, नईदुनिया, 25/05/16




व्यंग्य
व्यंग्य                    
          
लकीर की सर्जरी
                                                                                 ओम वर्मा   
                                                                 
                            
साँप निकल गया हैलकीर पर चिंतन जारी है। सबके हाथों में बड़ी बड़ी लाठियाँ हैं। इतने धुरंधरों के होते साँप आखिर बच कर कैसे निकल गया। माहौल कुछ ऐसा है कि सामूहिक बलात्कार पर बहस में भाग लेते समय भी जिनकी मुस्कराहट गायब नहीं होती थी आज उन्होंने भी गंभीरता ओढ़ रखी है। दो साल पहले जिस लहर को उन्होंने झोंका भी नहीं समझा था वह तूफान बनकर उनकी साठ साल पुरानी बस्ती को तो पहले ही तहस नहस कर गई थी। अब जो सर छुपाने भर के लिए आशियाना बचा था वह भी उजड़ गया। परंपरानुसार बिखरे दूध पर रोया जा रहा है। इधर बहू होने का दाँव चलाया मगर बहू पर कहीं दीदी और कहीं अम्मा भारी पड़ गईं। जिसे साँप समझ कर छेड़ा जा रहा था वह सिंहासन पर जा बैठा है और उसकी छोड़ी गई लकीर पर अब लाठियाँ भांजी जा रही हैं। हेलिकॉप्टर खरीदी ने किसकी जेब गर्म की यह बात लोग बोफोर्स घोटाले की तरह शायद भुला भी दें मगर दस जनपथ एंड से डाली गई हर गेंद पर असम की पिच पर हेमंत,कोलकाता में दीदी, चैन्नई में अम्मा और केरल में बुज़ुर्ग बल्लेबाज ने जिस तरह के हेलिकॉप्टर शॉट लगाए हैं वहाँ के दर्शकों की तालियों की गूँज कानों में अभी तक सुनाई दे रही है।
                                                                                                              बहरहाल चिंतन जारी है! हार का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई  उपयुक्त सिर तलाशा जा रहा है। कई ऊलजलूल, व अप्रासंगिक  बयानों के बाद एक आवाज यह भी आई कि “हम भी उसके मुकाबले के लिए अपने युवराज को लाए थे...कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने युवराज की एक्सेप्टिबिलिटी उनके मुकाबले पब्लिक में कम हो?” एक कम चर्चित पार्टीमेन ने दबी जुबान से थोड़ी हिम्मत करके अंधों की बस्ती में ‘आईने ले लो’ जैसी आवाज निकालने की कोशिश की।

    “ये कौन बद्तमीज़ घुस आया है...लगता है गुजरात वालों का भेजा आदमी है!” एक भियाजी किस्म के कार्यकर्ता ने हाँक लगाई। इतने में बाकी लोगों ने युवराज की स्वीकार्यता पर शंका उठाने वाले ‘विद्रोही’ को अस्वीकार करते हुए टांगा-टोली कर सीधा मुख्य-द्वार दिखा दिया।

    
 यूँ तो यह सबसे पुराना राजनीतिक दल है। मगर एक समय पूरे देश में 
जिसकी पताका फहराया करती थी अब उसे खूर्दबीन से खोजना पड़ रहा है। आज उसकी स्थिति प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही बुधिया सी हो गई है और पार्टी के सारे दिग्गज घीसू - माधो की तरह अपने अपने हिस्से के आलू हथियाने में लगे हैं।
     जब हम गले गले संकट में फँस जाते हैं तभी हमें बुजुर्गों की याद आती है। यहाँ भी यही हुआ। वे अकस्मात प्रकट हुए और बोले कि “पार्टी को एक बड़ी सर्जरी की ज़रूरत है” और फिर एक गूढ़ चुप्पी लगा कर बैठ गए! रीतिकालीन कवियों की चौपाइयों सा इधर उनका यह तीर छूटा नहीं कि उधर युवराज का हाथ बार बार अपनी नाक पर जाने लगा है। 
     मंथन जारी है। इनके साथ क्यों गए, उनके साथ क्यों नहीं गए, बहिन जी को लाएँ कि जीजाजी को?  देश का मतदाता वंशवाद या एक ही परिवार का शासन जारी रखना चाहता है या नहीं… चुनाव में विकास जैसा भी कभी कोई मुद्दा था या नहीं... रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति में हुई कल्पनातीत वृद्धि ...नेशनल हेराल्ड घोटाला, अगस्टा हेलिकॉप्टर घोटाला आदि आदि भी कोई मुद्दे थे या नहीं... जनता इनका जवाब चाहती थी। इस बारे में जब होगी फुरसत तो देखा जाएगा! फिलहाल रोगी को निष्चेतक (एनास्थेसिया) सुँघा दिया गया है और सर्जन भी आ चुके हैं। जैसे ही उन्हें यह पता चलेगा कि सर्जरी किस अंग की करनी है, अंग विच्छेद कर दिया जाएगा।     
     छपते छपते ज्ञात हुआ है कि घाव हाथ के पंजे में है और सर्जरी पैर के पंजे में कर दी गई है!          

                                          ***
100, रामनगर एक्स्त्तेंशन, देवास 455001

1 comment:

  1. प्रभावपूर्ण रचना...

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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