Tuesday 6 December 2016

व्यंग्य- सुबह सवेरे, 06.12.16 में - उनकी जूतियाँ और हमारा मोतीराम




किसी श्रमिक को काम के अतिरिक्त दाम देना आपकी उदारता का परिचायक तब हो सकता है जब आप दाएँ हाथ से दें और बाएँ को भी पता चले। मगर शासक दल का कोई प्रतिनिधि जब ऐसा करे और चालाकी से उसे सार्वजनिक न्यूज़ भी बना दे तो उसमें सामंतवादी सोच की झलक देखी जा सकती है। व्यंग्य में चर्मशिल्पी को आम आदमी (आप वाला नहीं) का प्रतीक दस के बदले सौ देने वाली नेत्री को शासक का प्रतीक या उस सोच की प्रतीक मानकर लिखने का प्रयास किया। किसी भी व्यक्ति को काम का दस गुना दाम देना क्या प्रलोभन देना नहीं है। क्या इससे उस पर एक अनैतिक किस्म का दबाव नहीं बन जाएगा और क्या उस पर यह मानसिक दबाव नहीं रहेगा कि वह इसे ईवीएम पर बटन दबाते समय रिसिप्रकेट करे
     जब हम  चर्मशिल्पी की बात करें और धूमिल की कविता मोचीराम का ध्यान आए ऐसा हो नहीं सकता। जातिसूचक शब्द या जूते की मरम्मत करने वाले के लिए मोची शब्द का प्रयोग किसी को इनेप्रोप्रिएट लग सकता है मगर चूंकि धूमिल की कविता में मोचीराम शब्द ही प्रयुक्त हुआ है इसलिए मैंने उसी नाम से उल्लेख किया है। उसके बेटे का नाम मोतीराम भी यही सोचकर रखा है कि आज मोचीराम शब्द का उपयोग करना उचित नहीं होगा। जिन्होंने मोचीराम कविता नहीं पढ़ी होगी उन्हें व्यंग्य को मेरी दृष्टि से देखने में असुविधा होगी। मगर वलेस के सभी सदस्यों के बारे में मुझे विश्वास है कि सभी का अध्ययन क्षेत्र मेरे अध्ययन क्षेत्र से तो विशाल ही रहा होगा।]



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