व्यंग्य
अपने दल से उनका रिश्ता
राजनीति में जब जब भी किसी विचार या आंदोलन का प्रादुर्भाव हुआ, तब तब किसी राजनीतिक दल ने जन्म लिया। आंदोलन में जिन्होंने झंडे उठाए, डंडे खाए, गली गली पोस्टर चिपकाए, गाँव गाँव दीवारों पर नारे लिखे, सभाओं में जय-जयकार की, दरियाँ उठाईं, कइयों ने घरबार छोड़ा, तब जाकर ऐसे कई ‘अनुशासित सिपाहियों’ में से कोई एक उस दल या पार्टी का मुखिया बन पाता था। ऐसे मुखिया के लिए पार्टी उसकी दूसरी ‘माँ’ हुआ करती थी।
फिर आया पैराशूट जंपिंग का जमाना।
लोग पैराशूट लेकर दौड़ पड़े उस शख्स की ओर जो जब बालक था तो कभी उसके मिट्टी में हाथ नहीं सने मगर चाटुकारों की फौज उसे‘ज़मीन से जुड़ा’ साबित करने पर तुल गई। जब वह किशोरावस्था में पहुँचा तब उसने कभी अंटी नहीं खेली। अब वही सारे अनुयायी उसे ढेर सारी रंग-बिरंगी अंटियाँ ला-लाकर पकड़ाने लगे जिन्हें वह ‘नसीब’ फ़िल्म की जूली यानी रीना रॉय की तरह बार बार नीचे गिरा देता है जिसकी वजह से लोगों में गिरने-सँभलने की होड़ सी लग गई। जिसकी किशोरवस्था बिना गिल्ली-डंडा छुए निकल गई, उसे अब मँजे हुए खिलाड़ियों के बीच जबरन पकड़ कर खिलाया जा रहा है। इधर बेचारा खिलाड़ी असमंजस में है कि डंडे से गिल्ली को टोल मारे या गिल्ली से डंडे को! और जब वह युवा होकर ‘आग अंतर में लिए पागल जवानी’ को महसूस कर पाता या दोस्तों के साथ लेडी श्रीराम कॉलेज के चक्कर लगा पाता उससे पहले ही लोगों ने उसे ‘आलकी की पालकी, जय कन्हैयालाल की’ करते हुए पैराशूट बाँधकर राजनीति की इमारत की उस मंज़िल पर लैंड करवा दिया जहाँ से नीचे जाने के लिए न तो सीढ़ियाँ है न ही लिफ़्ट, अगर है तो सिर्फ़ एक रपटा है जो सीधे इमारत के बाहर ही खुलता है। अब जबकि जवानी उसके हाथों से रेत की तरह फिसल गई है, उसे अधेड़ावस्था का स्वागत भी नहीं करने दिया जा रहा है। युवा बने रहने के इसी भ्रम में उसने पार्टी को अपनी पत्नी घोषित कर दिया है।
जिस संस्थान को एक बार उनकी दादी की ‘क्लोन’ घोषित कर दिया गया हो, जिसकी वजह से उनकी, उनके बाप-दादा की पहचान बनी हुई है, उसे लेकर उनकी यकायक यह घोषणा कि ‘वे उससे विवाह कर चुके हैं’, मेरे मन में कई सवालों, कई आशंकाओं को जन्म दे रहा है। आमतौर पर ऐसी संस्थाओं को अँगरेजी में ‘मदर ऑर्गनाइज़ेशन’ या हिंदी में ‘मातृ संस्था’ कहने का रिवाज है क्योंकि माँ-बेटे का रिश्ता तो शाश्वत होता है और पति-पत्नी का रिश्ता विवाह विच्छेद की दशा में बदल भी सकता है। पति दूसरी पत्नी और पत्नी दूसरे पति का वरण भी कर सकती है। पार्टी को पत्नी मानने वाला पार्टी की सेवा शायद न भी करे, मगर माँ मानने वाले के पास सेवा के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। बेटे के आज्ञाकारी होने की कई कथाएँ और कई उद्धरण मौजूद हैं। माँ की रक्षा के लिए बेटों की कुर्बानियों से भी इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। पत्नी की रक्षा के लिए ख़ुद को कुर्बान कर देने वाले ‘पतियों’ के बारे में मेरा स्मृति-कोश जरा रीता ही है। अलबत्ता यह सर्वविदित है कि पत्नी ने अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए कई कठोर तप-उपवास किए, उसकी जान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी है या यमराज से भिड़कर उससे वापस लाकर ‘वहाँ से कोई लौटकर वापस नहीं आता’ वाली अवधारणा ही झुठला दिया है। अब देखने वाली बात यह है कि पार्टी का पति बनने वाला क्या अपनी इस पत्नी को वह सम्मान या स्थान दिला सकेगा कि वह फिर अगले सात जन्मों तक वैसा ही ‘पति’ चाहे! कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके द्वारा घोषित यह पत्नी मन ही मन भारतमाता से यह प्रार्थना करने लग जाए कि यह उसका सातवाँ जन्म ही हो! यह भी हो सकता है कि अबकी बार यदि पत्नी को ये राजसिंहासन तक न पहुँचा सके तो वह पूरे पाँच साल तक कोप भवन में बैठी नज़र आए।
100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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