एक चुनाव कथा!
मतदान के अगले दिन।
विवाह योग्य लड़का परिवार के साथ ‘कन्या दर्शन टूर’ पर पहुँचा। लड़का भी सुंदर, लड़की भी सुंदर। दोनों एमबीए और दोनों की बड़ी बड़ी कंपनियों में पोस्टिंग। हालाँकि दोनों ज्योतिष और कुंडली मिलान में कोई विश्वास नहीं रखते थे फिर भी दोनों के माँ-बाप ने अपने अपने ज्योतिषियों से कुंडलियों के मेल करवाकर अपनी ‘लघु’ से लेकर और ‘दीर्घ’, सभी तरह की शंकाओं का समाधान भी करवा लिया था। दोनों परिवार तो खुश थे ही, देखने वालों का भी इस जुमले में विश्वास पुख्ता होने लगा था कि ‘जोड़ियाँ तो स्वर्ग में ही बनती हैं।‘ पूरे सौहार्दपूर्ण वातावरण में प्रीतिभोज और औपचारिक विचार-विमर्श संपन्न होता है। इसके बाद, जैसा कि आजकल रिवाज है, लड़का लड़की दोनों को एकांत में छत पर ‘वन-टु-वन’ विचार विमर्श यानी वास्तविक स्वयंवर के लिए भेज दिया जाता है। कुछ परंपरागत सवाल-जवाब के बाद लड़के की नज़र लड़की के बाएँ हाथ की तर्जनी पर पड़ती है तो पूछता है -
“ये उँगली पर ऊपर काला काला क्या है? क्या कोई चोट लगी है?”
“ये अमिट स्याही का निशान है। कल मतदान किया था ना!” लड़की ने गर्व से अपनी उँगली दिखाई। लगे हाथ प्रतिप्रश्न कर डाला, “कल तो आपके यहाँ भी मतदान था, आपकी उँगली भी तो रँगी होगी? “
“हाँ, हमारे शहर में भी कल ही वोटिंग थी। मगर मैं तो नहीं गया। इन-फ़ेक्ट हमारे यहाँ से तो कल कोई भी नहीं गया। सभी की छुट्टी थी इसलिए नेटफ़्लिक्स से दो फ़िल्में देख डालीं। वी हेड अ लॉट ऑव(of) फ़न यू नो! हमने तो पिछले इलेक्शन में भी वोट नहीं डाला था। न तो मुझे लाइन में खड़े होना पसंद है और न ही ये नेता। सब साले #@&% हैं!” लड़का भी उँगली उठाकर दिखाता है, बेदाग उँगली!
लड़की यकायक ‘शोले’ की वाचाल बसंती से ‘कोशिश’ की मूक नायिका आरती में बदल जाती है। नायक-नायिका की यह एकल वार्ता आगरा में विफल हुई अटल-मुशर्रफ़ की एकल वार्ता की तरह फेल हो जाती है। लड़का हॉल में और लड़की सीधे अपने कमरे में चली जाती है।
लड़की के माता पिता ‘रोकने’ की रस्म करना चाहते हैं। बेटी की सहमति लेने उसके कमरे में जाते हैं।
“सॉरी पापा! मैं यह रिश्ता नहीं कर सकती!”
“क्या कह रही हो बेटी? लड़के में ऐसी क्या कमी है?” माँ तो भौंचक रह जाती है, पिता धैर्यपूर्वक आगे पूछते हैं, “लड़का सुंदर है, तुम्हारे बराबर पढ़ा-लिखा है...”
“नहीं पापा”, बिटिया ने पूरा प्रसंग समझाते हुए कहती है, “जिन्हें अपने मत का मूल्य नहीं मालूम, और जो मतदान से ज़्यादा मनोरंजन ज़रूरी समझते हों, मैं उन्हें जिम्मेदार नागरिक नहीं मान सकती। और जो देश के प्रति ज़िम्मेदारी नहीं समझता, उसे मैं अपना जीवनसाथी कैसे बना सकती हूँ?”
और पापा इनकार करने के लिए शब्दों का मेल बैठाने लगे!
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