Saturday 10 April 2021

व्यंग्य - खेल और सियासी खेला (नईदुनिया , 11.04.2021)


व्यंग्य


                                       खेल और सियासी खेला

खेल और खेला। अभिधा की दृष्टि से भले ही इनमें एक मात्रा भर का अंतर हो, लेकिन लक्षणा में यही अंतर एक मात्रा का न रहकर बहुत अधिक मात्रा में देखा जा सकता है। वैसे तो हर भाषा का अपना सौंदर्य होता है। इस कारण कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जो जिन अर्थों में अपनी मूल भाषा में प्रयुक्त होते हैं, दूसरी भाषा में जाने पर वे अपने मूल भाषाई अर्थ से या तो और अधिक अर्थवान हो जाते हैं या उनका अर्थ कुछ संकुचित हो जाता है।

     खेल शब्द सुनते ही किसी भी हिंदीभाषी के मन में सबसे पहले क्रीड़ा का ही भान होता है। लेकिन ‘खेला’ बांग्ला में जो अर्थ रखता है, वह आजकल राजनीति में कुछ भिन्न अर्थ में व कुछ ज़्यादा ही प्रयुक्त हो रहा है। बहरहाल, खेल हो या वर्तमान में प्रचलित हो रहा खेला, दोनों में ही शारीरिक बल की ज़रूरत होती है। खेल के लिए तो शारीरिक ताकत खिलाड़ी में स्वयं में होनी चाहिए जबकि सियासी ‘खेला’ के लिए ताकत खिलाड़ियों में हो यह ज़रूरी नहीं है। अक्सर होता यह है कि खेला दिखाने वाले के पीछे ताकत नहीं बल्कि ताकतें होती हैं जो इसके खिलाड़ियों को चाहे जितनी दूरी से नियंत्रित कर सकती हैं। खेला में ‘मनी पॉवर’ और ‘मसल पॉवर’ एक दूसरे में परिवर्तनीय होते हैं। खेल में ‘मसल पॉवर’ का सही उपयोग करने वाला खिलाड़ी के पास मनी पॉवर अपने आप आने लगता है। खेल में ताकत के दम पर खिलाड़ी चौके-छक्के लगाता है, तो खेला में धक्के लगाता है। खेल वाला गिल्लियाँ उड़ाता है, तो खेला वाला खिल्लियाँ उड़ाता है। खेल में खिलाड़ी गोल दाग सकता है तो खेला में गोल तो नहीं लेकिन गोलमाल अवश्य किया जा सकता है, किसी भी बात को गोल किया जा सकता है और किसी को भी दागा जा सकता है। खेल में शॉट मारा जाता है तो खेला में खिलाड़ी शॉट में एक अँगरेजी स्वर ‘ओ’ और लगाकर किसी को शूट भी कर सकता है या खुद भी शूटऑउट हो सकता है। क्रिकेट जैसे खेलों में तो घायल खिलाड़ी का स्थानापन्न भी मिल जाता है जो कम से कम दूर की फील्डिंग तो कर ही सकता है, मगर खेला में खिलाड़ी की चाहे टाँग टूट जाए, उसे ‘रिटायर्ड हर्ट’ घोषित नहीं किया जा सकता और न ही वह होना चाहता है। खेल में प्रमुख खिलाड़ी का घायल होना टीम की जीत की संभावना पर ग्रहण लगा देता है जबकि ‘खेला’ में प्रमुख खिलाड़ी का घायल होना उसके लिए ‘एडवांटेज’ साबित हो सकता है। खेला में घायल खिलाड़ी मैदान नहीं छोड़ता। यह घायल खिलाड़ी खेला के मैदान में अगर व्हील चेयर पर बैठकर भी जाना चाहे तो उसे नागरिकता क़ानून में माँगे जा सकने वाले दस्तावेजी सबूत की तरह अपनी प्लास्टर चढ़ी टाँग दिखाते रहना पड़ती है।

     खेल खेलने वालों में खिलाड़ी-भावना स्वयं विकसित होने लगती है। खेला खेलने वाले खिलाड़ी-भावना से दूर होते देखे जा रहे हैं। खेल की बात चले तो कई बड़े नाम ध्यान में आने लगते हैं। लेकिन खेला की बात चलते ही सिर्फ़ एक नाम ध्यान में आता है...जी हाँ वही जो इस समय आपके ख्याल-शरीफ में भी आ रहा है!
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