Friday, 15 April 2011

व्यंग्य
             सुनामी और भारत 

 सुनामी आई जापान में और लोग डराने लगे हिंदुस्तान में ! हमें पूरा विश्वास है कि कोई सुनामी हमारा बाल बांका नहीं कर  सकती ! हम सदियों से महाधार्मिक हैं |  हमारे यहाँ  पूरे समय 24x7  पर्व, त्योहार, भजन-कीर्तन, प्रवचन, उपवास, कन्या भोजन, भण्डारे, 'मामाओं' द्वारा भांजिओं के
कन्यादान , बाबाओं के आश्रम में तांत्रिक अनुष्ठान, इबादतें, झाड-फूंक,इत्यादि आयोजन चलते रहते हैं | तो हम क्यों डरें किसी सुनामी से ! मातृभूमि एवं मातृशक्ति की तो हम रात दिन 'पूजा' करते ही हैं, उन्हें देवी मानकर मंदिर में स्थापित करते हैं , उनके चीर हरण के समय भगवान उनका चीर वस्त्र गोदाम में परिवर्तित कर देते हैं ...ऐसी देवियों का सुनामी क्या बिगाड़ पाएगी ! पुरुषों को इसलिए नहीं डरना चाहिए कि बच्चों पर तो माताएं काजल का टीका लगाती ही हैं और सारे पतियों के लिए अर्ध्दांगिनियाँ हरतालिका तीज एवं करवा चतुर्थी जैसे व्रत उपवास करती हैं | फिर हमारे यहाँ तो सावित्रियाँ अपने सत्यवान को खींच लाने का जज्बा रखती हैं और कोई सुनामी क्या यमराज से बढ़कर हो सकती है ?
    क्या हम अपने देवी देवताओं, विशेषकर ऋद्धि- सिद्धि एवं बुद्धि के स्वामी गणेश को जो कई टेंकर दूध पिला चुके हैं क्या वह सुनामी आमंत्रित करने के लिए था ? ये वैज्ञानिक बकवास करते हैं कि सुनामी और भूकंप जैसी विपदाएं प्लेटों के खिसकने जैसी भूगर्भीय हलचलों के कारण आती हैं | क्या इन्हें यह पता नहीं कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है और ये सारी गड़बड़ें उनके फन हिला देने से होती हैं | और शेषनाग की  जिन संतानों को हम हर नागपंचमी के दिन सदियों से दूध पिलाते आ रहे हैं क्या वे इतने कृतघ्न  हो जाएंगे कि फन हिलाकर सुनामी और भूकंप को आमंत्रित कर देंगे ? जापानियों को कहीं ये  नागपंचमी न मनाने का दण्ड तो नहीं  है |
        हमारे पास समाधि लेने वाले कई  विशेषज्ञ उपलब्ध हैं जो अपनी जमीन के नीचे आठ-आठ दिन तक समाधि लेकर सकुशल बाहर आ जाते हैं | उनका यह ज्ञान आखिर किस दिन काम आएगा ? 
        हमें सुनामी या भूकंप के खतरे की इन गीदड़ भपकियों से कतई डरने की जरूरत नहीं है | जब हमारे देवता सूर्य को मुँह में भर सकते हैं, पर्वत को उँगली पर उठाकर उसके नीचे पूरे गाँव वालों को शरण दे सकते हैं ... वे क्या सुनामी और जलजले से हमारी रक्षा नहीं करेंगे ? साल में पूरे नौ दिन नरेंद्र चंचल गली गली अपनी 'बुलंद' आवाज द्वारा आव्हान करते हैं कि  "बेटा जो बुलाए माँ को आना चाहिए ...|'' तो क्या सुनामी के समय ये भजन चलवाने      पर भी माँ हमारी करुण पुकार नहीं सुनेंगी ?
          और इतनी सेवा, आयोजन एवं अनुष्ठानों के बावजूद भी यदि बेशर्म सुनामी आ ही जाती है तो वह निश्चित ही हमारे प्रारब्ध का फल होगी | ऐसे में मलमूत्र की इस नश्वर देह की क्या चिंता करना ! आत्मा तो वैसे भी अजर अमर है !
      इसलिए हम बेफिक्र थे, बेफिक्र हैं, और बेफिक्र रहेंगे !      जिसको आना है ...आए !

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