गाँधी-कल और आज
अक्टूबर की दूसरी, माह जनवरी तीस |
दो दिन गाँधी देवता, बाकी दिन 'शो पीस'||
गाँधी दौलत देश की, इक नंबर 'फ्री टोल '|
इस दौलत पे ना चलें , तोल मोल के बोल ||
गाँधी इक ऎसी हिना , जिसे लगाना हाथ |
यानी पाना मुफ्त ही , रंगों की सौगात ||
कुछ ने गाँधी नाम को , बना रखा है ढाल |
सत्य जिन्हें त्यागे गुए,गुजर चुके कुछ साल ||
व्यक्ति नहीं गाँधी महज , है वह एक विचार |
चाहे हो आलोचना , होगा बस विस्तार ||
नहीं बनी ऐसी तुला, जो सकती हो तोल |
सत्य, अहिंसा, खादियाँ, तीनों हैं अनमोल ||
एक बार यदि पोंछ लो, दीन नेत्र का नीर |
पाओगे गाँधी वहीं , बसता वहीं कबीर ||
समझ रहे कुछ आज भी, उन्हें टका कलदार |
जिसे चला कर वोट का, करते कारोबार ||
लाठी को अपना लिया , विसरा दिए विचार |
गाँधी के घर कर रही, हिंसा फिर अधिकार ||
- ओम वर्मा 100, रामनगर एक्सटेंशन
देवास
अक्टूबर की दूसरी, माह जनवरी तीस |
दो दिन गाँधी देवता, बाकी दिन 'शो पीस'||
गाँधी दौलत देश की, इक नंबर 'फ्री टोल '|
इस दौलत पे ना चलें , तोल मोल के बोल ||
गाँधी इक ऎसी हिना , जिसे लगाना हाथ |
यानी पाना मुफ्त ही , रंगों की सौगात ||
कुछ ने गाँधी नाम को , बना रखा है ढाल |
सत्य जिन्हें त्यागे गुए,गुजर चुके कुछ साल ||
व्यक्ति नहीं गाँधी महज , है वह एक विचार |
चाहे हो आलोचना , होगा बस विस्तार ||
नहीं बनी ऐसी तुला, जो सकती हो तोल |
सत्य, अहिंसा, खादियाँ, तीनों हैं अनमोल ||
एक बार यदि पोंछ लो, दीन नेत्र का नीर |
पाओगे गाँधी वहीं , बसता वहीं कबीर ||
समझ रहे कुछ आज भी, उन्हें टका कलदार |
जिसे चला कर वोट का, करते कारोबार ||
लाठी को अपना लिया , विसरा दिए विचार |
गाँधी के घर कर रही, हिंसा फिर अधिकार ||
- ओम वर्मा 100, रामनगर एक्सटेंशन
देवास
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