Wednesday, 18 September 2013



व्यंग्य
              
              बापू की डायरी के अंश
              ओम वर्मा 
                                                                                    
बापू यहाँ भी डायरी लिखते थे और स्वर्ग में भी लिखते हैं। स्वर्ग की नियमित प्रेस ब्रीफिंग में उनके जन्म दिवस के अवसर पर उसके कुछ अंश जारी किए गए हैं जो आपके सामने रख रहा हूँ :-
      मुझे नाथूराम गोड़से (जिन्हें कि आज यदि कोई विशिष्ट राजनेता श्री नाथूरामजी गोड़से साहब भी कह दें तो आश्चर्य न करें) ने पैंसठ साल पहले एक बार मारा जरूर था लेकिन उसके बाद भी मैं अब रोज रोज मर रहा हूँ..! भारत में जब भी किसी ‘होरी’ ने आत्महत्या की हैमैं एक बार फिर मरा हूँ। उधर एक पूर्वोत्तर राज्य में एक महिला एक्टिविस्ट शर्मीला कई वर्षों से भूख हड़ताल पर बैठी है व नाक से दिए जा रहे भोजन पर जिंदा है। मैं उस आंदोलनरत युवती की आत्मा का ही हिस्सा हूँ...उसके साथ रोज तिल तिल कर मर रहा हूँ। गत 16 दिसंबर की रात दिल्ली में जो हुआ था तब मैंने स्वयं को यरवड़ा जेल में किए गए अनशन के दौरान उठाई गई तकलीफों और दक्षिणी अफ्रीका में रेलगाड़ी से टीटी द्वारा बाहर निकाल दिए जाने पर हुए कष्ट से भी ज्यादा आहत महसूस किया था। मुझे पहले जब राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई और बाद में नोटों पर जब मेरी तस्वीर लगाई गई तो मैंने समझा था कि ये लोग मेरे विचार जन जन तक पहुँचा कर रहेंगे। मगर जब जब भी मेरी तस्वीर वाली गड्डियाँ जोशियों के बिस्तरों से मिलींकोयले खदान की नीलामी वालों की या कर्णाटक की खदान वालों की जेबों में गईंमुझे फिर आहत होना पड़ा है।
     देशवासियों ने हर शहर में मेरे नाम पर मार्ग का नाम रखकर मुझे ‘अमर’ बनाना चाहामगर उस मार्ग पर खुली गांधी साहित्य से लेकर चरखे तक की और खादी से लेकर सारी स्वदेशी वस्तुओं तक की दुकानें धीरे धीरे रेडियो की तरह लुप्त होती जा रही हैं। खादी पर मेरी जयंति पर जितनी छूट मिलती है उससे ज्यादा छूट शराब के ठेकों पर 31 मार्च से पूर्व स्टॉक क्लीयरेंस के नाम पर मिल जाती है। गांधी साहित्य की दुकानों पर सन्नाटा और शराब की दुकानों पर राष्ट्रीय त्योहारों की पूर्व संध्या पर मेरी प्रार्थना सभाओं जैसी भीड़ देखकर मैं एक बार फिर ‘हे राम !’ कहने को विवश हो जाता हूँ।
     इन दिनों हर नेता के अशिष्ट बयानों से मैं आहत हुआ हूँ। हर नेता ने अपने कक्ष में मेरी लाठी लेकर चलने वाली तस्वीर लगा जरूर रखी हैपर सभी ने मेरे विचारों को तिलांजली देकर महज़ लाठी को अपना शस्त्र बना रखा है। मैं अपने सीने में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार एवं वस्त्रों की होली की आँच अभी भी महसूस कर रहा हूँमगर मेरे नाम से वोटों की फसल काटने वाले मेरे मित्र न सिर्फ अपना उपचार विदेश में करवा लेते हैं बल्कि उनके लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए पलक पाँवड़े भी बिछाए बैठे हैं। पता नहीं मुझे और कब तक मारना चाहेंगे ! हे राम !    
ओम वर्मा100रामनगर एक्सटेंशन. देवास 455001  
                           omvarmadewas.blogspot.in         mob.    09302379199

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