‘कुत्तों’ का कृतज्ञता ज्ञापन!
-ओम वर्मा
सारे देशी से लेकर विदेशी नस्ल वाले, ‘हल्कू’ के खलिहान में पूस की रात
में ठिठुरते ‘जबरा’ से लेकर जेठ की दुपहरी में एसी कार के गद्दों पर बैठकर घूमने
वाले,
लतियाए जाने पर गलियों में दुम दबाकर ‘टियाँऊ टियाँऊ’ करते रह जाने वालों से लेकर बड़े बड़े बंगलों में
नवागत का खटका होते ही शेरों की तरह दहाड़ लगाने वाले तमाम हाई प्रोफाइल ‘कुत्ते’...मेरा मतलब श्वान बिरादरी
के तमाम सदस्य राजनीति में हमारा गौरवपूर्ण
तरीके से उल्लेख कर सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए माननीय सीताराम येचूरी जी का
पूँछ हिला हिलाकर हार्दिक अभिनंदन करते हैं!
इस सम्मान से पूरी श्वान जाति स्वयं को
गौराववान्वित महसूस कर रही है। वर्ना आज तक हमें ताने-उलाहनों के सिवा मिला ही
क्या है? द्वापर युग में जब हमारे एक भटके हुए बच्चे ने भौंक कर हमारा
ध्यान आकर्षित करना चाहा था तो एकलव्य नामक तीरंदाज ने अपनी निशानेबाजी के जौहर
दिखाने के लिए उसका मुँह ही बाणों से भर दिया था। इधर धर्मेंद्र पाजी सालों से
हमारा खून पीने की धौंस देते आ रहे हैं। और तो और एक बार बसंती हमें नाच दिखाने
वाली थी तो उसे भी हमारे आगे नाचने से रोक दिया था। हमने तो आज तक हमारे पामेरियन
भाई – बहनों से यह नहीं कहा कि “स्टूफ़ी इन इन्सानों के आगे मत नाचना या भौंकना!” हमारे
कई वो गुण जिन पर हमारे अवतरण काल से आज तक हमारा ही कॉपीराइट रहता आया है, धीरे धीरे आप लोगों ने
चुरा लिए मगर हम उफ् तक न कर सके। आज लोकतंत्र के पवित्र मंदिरों से लेकर टीवी
चैनलों पर चर्चाकारों ने हमारी शैली अपना ली है मगर हम चुप हैं। हमारी दुम हिलाने
की कला आप लोगों ने बिना दुम के ही सीख ली और कृतज्ञता भी ज्ञापित नहीं की। कोई
शख्स जब अपनी बात से पलट जाए, जैसा कि आजकल अक्सर होता है तो उसकी तुलना भी हमारी जिंदगी के
उन निजी पलों से की जाने लगी जो हमारे लिए सिर्फ संतानोत्पत्ति के फर्ज़ निर्वाह की
एक अवस्था भर हैं। हमारा मालिक चाहे अलगू चौधरी हो या जुम्मन शेख, हममें न तो काले गोरे का
कोई भेद है और न ही किसी तरह की कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता,! आज जबकि शेरों ने शेर
होना छोड़ दिया है, अपनी गली में शेर हो जाने का माद्दा तो हममें आज भी है।
जहाँ तक योग की मुद्राओं का सवाल है, अगर ईश्वर ने हमें व अन्य
प्राणियों को अगर वाणी दी होती तो अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी हमारे योगदान के
उल्लेख के बिना मनाया नहीं जा सकता था। माना कि हम कुत्ते हैं, पर ‘कुत्तई’ से कोसों दूर! वहीं आप
लोगों की कोई भी बहस या लड़ाई हमारे नाम लिए बिना पूरी नहीं होती। वफादारी का सबक हमने
सिखाया और पहरेदारों को नींद हमने दी, कुछ लोगों ने तलुए चाटना हमसे सीखा। मगर साल
का एक दिन भी ‘श्वान दिवस’ नहीं घोषित हुआ। आज हमारा
पूरा श्वान समुदाय येचुरी जी का आभार व्यक्त करता है कि उन्होंने योगासनों की
तुलना हमारे हाव-भावों से कर हमें यह एहसास करवाया कि मानव सभ्यता के विकास और योग
के अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठापन में हमारा भी कुछ योगदान है।
श्वान समुदाय एक बार फिर येचुरी जी का आभार
व्यक्त करता है! ***
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