Saturday 27 June 2015

इमरजेंसी के फायदे

                                                                                      
इमरजेंसी के फायदे 
                                                                                                                         -ओम वर्मा 


 
न् 81 में आई ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म नरम गरम। उत्पल दत्त ज्योतिषी ओमप्रकाश से बात करते करते अचानक बीच में ही यह कहते हुए चले जाते हैं कि “एक इमरजेंसी आ गई है। इस पर लोगों को मूर्ख बनाने वाले ज्योतिषी ओमप्रकाश घबरा जाते हैं। इमरजेंसी! क्या यह फिर आ गई कहते हुए वे यकायक माला जपने लगते हैं।
    इमरजेंसी हटने के चार साल बाद यह एक चतुर फ़िल्मकार का तीखा व्यंग्य था। लेकिन आज के दौर में यदि इमरजेंसी की घोषणा हो जाए तो इससे  आज तो लाभ ही लाभ नजर आते हैं। यहाँ इससे हो सकने वाले लाभों का लेखा जोखा प्रस्तुत है। सबसे पहले सारी रेलगाड़ियाँ समय पर चलने लगेंगी। यानी रेलमंत्री बिना योग करे भी चैन की नींद ले सकते हैं। टीवी चैनलों पर किसी तरह का कोई बहस मुबाहिसा यानी काँव काँव सुनने को नहीं मिलेगी क्योंकि सारे बयानवीर कृष्ण मंदिरों की शोभा बढ़ा रहे होंगे। न तो कोई किसी के हाथ काटने की धौंस दे सकेगा और न ही आँखें निकालने की। यानी कुल मिलाकर शांति ही शांति...! झुग्गी झोंपड़ियों से एक दिन में मुक्ति पाई जा सकेगी। यानी शहरों में जो साफ सफाई सेलिब्रिटीज़ के झाड़ू पकड़कर फोटो खिंचवाने या स्वच्छ भारत अभियान चलाने से भी नहीं हो पाई वह इमरजेंसी लगाते ही एक दिन में हो जाएगी। लोग खुशी खुशी करवाएँ या जबरिया, इतनी नसबंदियाँ की जा सकेंगी कि जनसंख्या वृद्धि पर भी अंकुश लग जाएगा। सबसे ज्यादा इन दिनों परेशानी है पुतलों की। किसी को कोई बात जरा खटकी नहीं कि दो चार क्रांतिकारियों से तेवर दिखाने वाले आंदोलनकारी इकट्ठे होकर बेजान पुतलों में आग लगाने लग जाते हैं। पुतले में आग लगी नहीं कि पुलिस तैयार। सारे पुतलों की त्रासदी यह है कि वे न तो पूरी तरह अक्षुण्ण रह कर अगले विरोध प्रदर्शन के काम के रहते हैं और न ही पूरी तरह भस्म होकर सुपुर्दे-ख़ाक हो पाते हैं। कहीं कहीं ये क्रांतिवीर अधजले पुतलों की ऐसी पिटाई करने लगते हैं कि सामने अंग्रेजी हुकूमत में पुलिस द्वारा क्रांतिकारियों को पीटने जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है। निश्चित ही इमरजेंसी में बेजान पुतलों के भी दिन फिर जाएंगे क्योंकि वे चीन में वीआईपी स्पर्श सुख पाने के बाद दूसरी बार स्वयं को सम्मानित महसूस करेंगे।
    दिल्ली की जंग समाप्त होगी क्योंकि सारे लड़ाकू तो अंदर होंगे।  हड़ताल का तो कोई गलती से भी नाम नहीं लेगा। जुलूस-सभाओं पर प्रतिबंध लगेगा तो ध्वनि प्रदूषण भी कम होगा। आज कांग्रेस सहित सारे विपक्षी दल छिन्न भिन्न और मुद्दे विहीन हैं। इमरजेंसी के हटते ही अगर अन्ना हज़ारे, अविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी या लालू एकजुट होकर जेपी की भूमिका में आ जाएँ तो जनता दल की तरह खिचड़ी दल नाम से किसी नए दल का उदय हो सकेगा। हालांकि हमारे नेताओं को खिचड़ी जरा कम ही भाती है या कुछ ज्यादा ही जल्दी हजम हो जाती है इसलिए साल दो साल बाद इसके टुकड़े होने पर इनके नाम खिचड़ी दल(RG)’, खिचड़ी दल(AK)’, खिचड़ी दल(L)’, खिचड़ी दल(M), खिचड़ी दल(N)’ या खिचड़ी दल(MB)’ जैसे नाम रखे जा सकते हैं। नीरज जी से क्षमायाचना कर कहना चाहूँगा कि “मिलते हैं दल यहाँ, मिल के बिखरने को...!”
    यकीनन इमरजेंसी लाग्ने के फायदे ही फायदे हैं!
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100, रामनगर एक्सटेंशन देवास 455001(म.प्र.)  ई मेल – om.varma17@gmail.com

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