व्यंग्य
विशेष दर्ज़ा
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के पिता, अयोध्या नरेश राजा दशरथ जिनकी रानियाँ थीं तीन – बड़ी कौशल्या, दूसरी सुमित्रा और लास्ट बट नॉट द लीस्ट- रानी कैकयी। राजा बड़े ही प्रतापी और नामी-गिरामी थे, प्रजा का सही लालन पालन और ऋषि- मुनियों का बड़ा ही मान सम्मान करते थे। मगर वो राजा भी भला कोई राजा है जिसमें कोई खामी न हो ! तो महाराज दशरथ भी क्यों अपवाद होने लगे। अब तीन कोई सम संख्या तो है नहीं लिहाजा वे तीनों रानियों को चाहकर भी समान रूप से प्यार कर ही नहीं सकते थे। इसी ऊहापोह से निपटने के लिए उन्होंने अपने ढंग से प्यार का बँटवारा किया। जितना प्यार कौशल्या और सुमित्रा दोनों के हिस्से में आता था उससे कहीं ज्यादा कैकयी के हिस्से में आता था। यानी रानी कैकयी छोटी जरूर थीं पर उन्हें ‘विशेष दर्ज़ा’ प्राप्त था। विशेष दर्ज़ा चाहे किसी रानी का हो या राज्य का, अपने लिए ‘स्पेशल पैकेज’ लिए बिना नहीं मानता। यानी स्पेशल पैकेज की बीमारी त्रेता युग में भी थी जिसके तहत कैकयी ने माँगा अपने पुत्र का राज्याभिषेक और प्रभु श्रीराम के लिए चौदह वर्ष का वनवास। इस स्पेशल पैकेज की परिणति स्वयं महाराज दशरथ के देहावसान व देवी सीता के अपहरण तक जा पहुँचेगी यह शायद स्वयं महाराज दशरथ को भी पता नहीं रहा होगा।
ऐसा ही हाल द्वापर युग में रानी द्रोपदी का था। माता की ‘पाँचो भाइयों में समान रूप से बाँट लेने’ की आज्ञा के फलस्वरूप वे पाँचों भाइयों की कॉमन पत्नी जरूर थीं पर सभी को अपने पत्नी होने के धर्म का समान अंश यानी ट्वेंटी पर्सेंट ईच(each)उन्हें देना था। मगर वो रानी भी रानी ही क्या जिससे कोई ‘चूक’ ही न हो। द्रोपदी से भी चूक हुई। अपने वन ऑव द फाइव हस्बेंड्ज़(one of the five husbands) यानी एक पति अर्जुन जो अगर ओलंपिक हुए होते तो तीरंदाजी के सारे स्वर्ण पदक झपट सकते थे, (बशर्ते एकलव्य टीम में नहीं गया होता) को उन्होंने जीवन भर स्पेशल पत्नीत्व पैकेज प्रदान किया। इस कारण स्वर्गारोहण की अपनी यात्रा में स्पेशल दर्ज़ा दिए जाने की कीमत उन्हें बीच राह में अपने प्राण त्याग कर चुकानी पड़ी थी।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विशेष दर्ज़ा ‘एमएफएन’ यानी मोस्ट फेवर्ड नेशन के रूप में सामने आता है। अंकल सैम जिसे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्ज़ा दे दें वहाँ डॉलरों की बरसात तो होती ही है, साथ ही उन्हें उस देश की खुफिया एजेंसियों व उन्हीं के वित्त पोषण से फलते- फूलते आतंकवादी संगठनों की नापाक हरकतों को नज़रंदाज़ भी करना पड़ता है। चीन और पाक भारत से शांति वार्ता से लेकर शिखर वार्ताओं तक हर बार भाई-भाई के नारे जरूर लगाते आए हैं मगर दोनों देश माओवादियों से लेकर कश्मीर में अलगाववादियों तक को विशेष दर्ज़ा प्रदान कर स्पेशल पैकेज भेजने में भी नहीं चूकते। इसी तरह शासक दल को एक समुदाय विशेष को विशेष दर्ज़ा देने और अंततः कुछ तुष्टिकारक स्पेशल पैकेज देने की याद सिर्फ चुनावों के समय ही आती है। ऐसे ही एक विशेष दर्ज़े का नाम ‘धारा 370’ है जो कुछ लोगों के लिए संजीवनी, कुछ के लिए विष और कुछ के लिए ‘गले की हड्डी’ बना हुआ है। देश एक रेसकोर्स की तरह हो गया है जहाँ विशेष दर्ज़ा दिए जाने का दाँव सिर्फ उसी घोड़े पर लगाया जाता है जिसके वोट उगलने की संभावना होती है। यह वह गौशाला है जहाँ ‘बाटा’ उसी गाय के सामने रखा जाता है जो ज्यादा दूध दे सकती है। यह और बात है कि बाद में बाटे का स्पेशल पैकेज पाने वाली गाएँ सींग मारने लग जाएँ। मनमोहन सरकार पर काला जादू डालकर ‘बड़ा पैकेज़’ लेते रहने वाली ममता दी और एनडीए से अलग होते ही ‘सेकुलर’ घोषित हुए नीतीश जी, दोनों विशेष दर्ज़े और पैकेज पाने की माँग हर सरकार से करते आए हैं। उम्मीद है कि माँग पूरी होने के बाद दिल्ली वालों को सींग नहीं मारेंगे।
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