व्यंग्य कथा
दौड़ खरगोश और कछुए की
एक था कछुआ और एक था खरगोश। वैसे तो और भी थे पर हम सिर्फ उन्हीं की बात कर रहे हैं जो नीति-कथाओं में सदियों से अंगद के पैर की तरह या किसी बड़े राजनीतिक दल में पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहने वाले ख़ानदानी अध्यक्ष की तरह अपना स्थान बनाए हुए हैं।
जंगल में एक बार फिर बड़े ज़ोर शोर से यह आवाज़ उठी कि बरसों पहले हुई दौड़ में एक बार कछुआ क्या जीता, खरगोशों की नस्ल पर हमेशा के लिए दाग़ लग गया है। नई पीढ़ी के खरगोशों को पूरे जंगल में आते जाते इसके लिए ताने-उलाहने सुनने पड़ते हैं और इस वजह से उन्हें बड़ी शर्मिंदगी उठाना पड़ती है। लिहाजा उन्होंने पूरे जंगल में एक सुर में यह माँग उठानी शुरू कर दी कि नीति कथा के इन दो नायकों में एक बार फिर से दौड़ का महामुक़ाबला होना चाहिए। चूँकि जंगल में जम्हूरियत अभी बाकी थी इसलिए पशुमत, यानी की जनमत की बात मान ली गई और मुक़ाबले की तारीख़ का ऐलान हो गया। आयोजन के लिए कई प्रायोजक तैयार खड़े थे। कछुए की पीठ पर अपने बैनर लगाने के लिए कई पार्टियाँ आगे आने लगीं। ख़रगोश के लिए तो एक टॉनिक बनाने वाली कंपनी ने अपना जिंगल भी तैयार करवा लिया जिसके अनुसार उसे दौड़ जीतने के बाद उनके टॉनिक की बॉटल हाथ में लहराते हुए कहना था कि “फ़लाँ फ़लाँ इज़ द सीक्रिट ऑव माइ एनर्जी!” टीवी चैनलों पर पूरी दौड़ के ‘लाइव टेलिकास्ट’ की हाइटेक व्यवस्था की गई।
सदियाँ बीत गईं मगर यह भी सच है कि न तो कछुए की चाल कभी दौड़ में बदली थी और न ही ख़रगोश की फर्राटा दौड़ कभी चाल में बदल सकी। चाल के मामले में कछुआ सुस्त ज़रूर था मगर इतने वर्षों में यह ज़रूर समझ गया था कि ख़रगोश के एक पितामह ने रास्ते में झपकी लेने की जो ग़लती की है, वह ग़लती ये नई पीढ़ी के ख़रगोश अब नहीं करेंगे। इधर कछुए पर भयंकर दबाव भी था कि इस बार फिर अपनी इज़्ज़त का सवाल है, नाक नहीं कटनी चाहिए। बुज़ुर्ग कछुओं ने उसे समझाया कि जगह जगह सरकारी काम की या किसी भी योजना की तुलना हमारी चाल से कर के पूरी क़ौम को सदियों से बदनाम किया जाता रहा है। इस बार फिर तुम्हें दौड़ जीत कर यह दाग़ मिटाना ही होगा! इसलिए एक सबसे ‘तेज़ ’ चलने वाले कछुए का चयन कर उसकी ट्रैनिंग प्रारंभ की गई। कोच की लाख कोशिशों के बाद भी चाल में थोड़ी तेज़ी तो आई मगर वह दौड़ नहीं बन सकी।
इधर ज्यों ज्यों दौड़ की तारीख़ नज़दीक आ रही थी, त्यों त्यों कछुए की चिंता का ग्राफ़ ऊपर उठता जा रहा था। कछुए ने चिंता छोड़ चिंतन शुरू किया और रेस के कुछ दिन पहले प्रतियोगिता के लिए नामित ख़रगोश के घर जाकर एक सौजन्य भेंट की। उसे मुक़ाबले के लिए शुभकामनाएँ देते हुए एक क़ीमती स्मार्टफोन भेंट किया। यही नहीं कछुए ने उसमें फ्री अनलिमिटेड डेटा भी डलवा दिया। सबसे पहले दोनों ने एक ज़ोरदार सेल्फ़ी लेकर पोस्ट की। असीमित मुफ़्त डेटा देख ख़रगोश सोशल मीडिया से जुड़ गया व कई ग्रुपों का एडमिन बन गया। जल्द ही उसके इनबॉक्स में रेस के लिए रोज़ाना शुभकामना संदेशों का ढेर लगने लगा। रेस पूर्व के ओपिनियन पोलनुमा सर्वे में उसे एकतरफा विजेता बताया जाने लगा।
फिर आया रेस का दिन। निर्धारित स्थान से दोनों ने अपने अपने ढंग से दौड़ प्रारंभ की। आधी दूरी पर पहुँचकर ख़रगोश ने देखा कि कछुए का तो दूर दूर तक पता नहीं है। क्यों न नोटिफिकेशन चेक कर लिए जाएँ! लिहाज़ा उसने अपना स्मार्टफोन खोला। फिर उसका पूरा ध्यान कभी सेल्फ़ी पोस्ट करने में, कभी स्टेटस अपडेट करने में और कभी ख़ूबसूरत ख़रगोशनियों की पोस्टों का जवाब देने में लगा रहा। कुछ नई नई मादाओं की तो डीपी ही इतनी मस्त थी कि उन्हें देखकर उस पर मदहोशी सी छाने लगी। आख़िर जब मोबाइल की बैटरी ने भी जवाब दे दिया तब जाकर उसे ध्यान आया कि वह तो फ़िलहाल एक दौड़ का प्रतिभागी है।
मगर उसके दौड़ लगाकर निर्णायक बिंदु तक पहुँचने से पूर्व जयमाल प्रतिद्वंद्वी के गले की शोभा बढ़ा चुकी थी।
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