व्यंग्य (नईदुनिया,15.10.13)
मात्रा और तादाद
ओम वर्मा
वे दोनों आज के महानायक हैं। एक फिल्मों के तो एक राजनीति के।
फिल्मी महानायक तो जहाँ भी खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती ही है और
राजनीति के महानायक जिस निर्वाचन क्षेत्र या कार्यकर्ता समागम में चले जाते हैं वहाँ
या तो आस्थाएँ बदलने लगती हैं या वहाँ के
मुख्यमंत्री के अनुसार डेंगू फैलने लगता है। यह भी जाहिर है कि लोग अपने अपने महानायकों
की अदाओं, उनकी भाव भंगिमाओं और कभी कभी
उनकी बातों या भाषा का अनुसरण भी करते हैं। इलाहाबादियों की हिंदी तो वैसे भी बहुत
नफीस होती ही है उस पर भी यदि कोई शख्स डॉ हरिवंशराय बच्चन का पुत्र हो तो उससे
अपेक्षा और भी बढ़ जाती है। तो ये महानायक जब केबीसी जैसे लोकप्रिय कार्यक्रम का
संचालन करते है तो उनसे दर्शकों का भाषाई शुद्धता का आग्रह रखना कतई अनुचित नहीं
होगा। इस कार्यक्रम के पिछले सीजन में उनके मुख से एक बार ‘कृपया करके’ व इस बार ‘फास्टेस्ट फिंगर फ़र्स्ट’ के प्रतियोगी के लिए ‘अधिक मात्रा में अंक’ व एक एपिसोड में सिक्किम द्वारा ‘सबसे कम मात्रा में सांसद’ भेजे जाने की बात सुनकर मेरे
हिंदी प्रेमी मन को कुछ वैसा ही झटका लगा जैसे दागियों के चुनाव लड़ने की पात्रता देने
वाले अपनी ही पार्टी के अध्यादेश पर कागज फाड़ू क्रांति से यूपीए -3 का ख्वाब देख
रहे राहुल गांधी के प्रलाप को देखकर सारे दागियों को लगा था।
यही स्थिति एक
बार तब भी बनी जब गूगल सर्च में सबको पीछे छोड़ने वाले व चुनावों से पहले ही दक्षिण
के साहित्यकार अनंतमूर्ति का ब्लड प्रेशर बढ़ाने
वाले आज के चर्चित राजनीतिज्ञ या सियासी महानायक ने पीएम की उम्मीदवारी की
घोषणा के बाद रेवाड़ी में पूर्व सैनिकों के बीच उनके ‘भारी मात्रा में’ उपस्थित होने का जिक्र किया।
दोनों प्रकरणों ने मेरे दिमाग में ‘भारी तादाद’ में खलबली मचा दी। मेरे ख्याल में
अमिताभ सर ने भारी ‘मात्रा’ में फिल्में की हैं। फिल्मों से
उन्होंने भारी ‘तादाद’ में धन कमाया है और देश में उनके
प्रशंसक भी भारी ‘मात्रा’ में हैं। मैं उनसे ज्यादा उनके
पिताश्री का प्रशंसक हूँ जिन्होंने ‘भारी मात्रा’ में उत्कृष्ट
साहित्य रचा है और जिन्हें सुनने के लिए भारी ‘मात्रा’ में श्रोता एकत्र हुआ करते थे।
उनके कार्यक्रम केबीसी के तो क्या कहने ! बहुत कम ‘मात्रा’ में कुछ (मात्र 15) आसान सवालों
के जवाब देकर हम सात करोड़ रु॰ की भारी ‘तादाद’ वाली धनराशि जीत सकते हैं। इस देश
में नौजवान मतदाताओं की ‘मात्रा’ बहुत ज्यादा है। इनमें टेलेंट भी
बहुत ज्यादा ‘तादाद’ में है। जैसे जैसे देश में गरीब
लोगों की ‘मात्रा’ बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे सरकार की चिंता की ‘तादाद’ भी बढ़ती जा रही है।
बड़ी ही
गड्डमड्ड स्थिति है। दोनों महानायक ‘तादाद’ को ‘मात्रा’ से कुछ इस अंदाज़ में प्रतिस्थापित कर
रहे हैं मानों भारत निर्माण की तर्ज़ पर ‘हो रहा भाषा निर्माण’ उनका नारा हो। दरअसल मात्रा और तादाद की गड्डमड्ड का यह घालमेल इस समय पूरे
देश में जारी है क्योंकि कई क्षेत्रों में मात्रा व तादाद एक दूसरे के समानुपाती साबित
हो रहे हैं। जैसे देश में कोयले की मात्रा बढ़ी तो लुटेरों की तादाद भी बढ़ी। इसी
तरह ज्यों ज्यों सियासी महानायक को ‘आदमखोर’ और ‘फेंकू’ जैसी उपाधियाँ दी गईं त्यों त्यों
उनकी लोकप्रियता की मात्रा और और उसी अनुपात में प्रशंसकों की तादाद भी बढ़ती गई।
इधर ज्यों ज्यों फिल्मी महानायक की
फिल्मों और प्रशंसकों की तादाद बढ़ी, त्यों त्यों केबीसी में उनकी माँग और लोकप्रियता की मात्रा भी बढ़ी। सभी जगह मात्रा
और तादाद भक्त और भगवान की तरह कुछ यूं एकाकार हो गए हैं कि दोनों महानायकों के
मुख से भी तादाद की जगह बार बार अब ‘मात्रा मात्रा .....’ निकल जाता है।
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001 मो.09302379199
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