Tuesday, 15 October 2013


व्यंग्य, 

दबंग दुनिया , 30/11/12
        

         मोर की दिखावटी पूँछ और मंत्रिमण्डल

                                     
                                                                ओम वर्मा
(om.varma17@gmail.com)
लिज़ाबेद काल के प्रसिद्ध अँगरेजी निबंधकार सर फ्राँसिस बेकन ने अपने एक निबंध ऑव फालोअर्स एण्ड फ्रेंड्स (Of followers and friends)  में लिखा है कि “शासक या बड़े व्यक्ति को अनुगामियों या मुसाहिबानों की अधिकता से हमेशा बचना चाहिए क्योंकि उनकी अधिकता उनके रखरखाव को बहुत खर्चीला बना देती है" अपने दरबारियों पर जरूरत से ज्यादा खर्च करने वाले शासक की तुलना मोर से करते हुए वे लिखते हैं- "मोर की पूँछ के दिखावटी पंख जितने ज्यादा बड़े होते
 हैं, उसकी उड़ान में वे उतने ही ज्यादा बाधक भी होते हैं। उनकी साज-सजावट पर 
उसे अतिरिक्त ध्यान देना पड़ता है सो अलग ।"
         बेकन के कथन से कम से कम यह तो जाहिर होता ही है कि मंत्रिमण्डल में ज्यादा मंत्री रखने यानी सफेद हाथी पालने की समस्या कल भी थी और आज भी है; पश्चिम में भी थी और पूर्व में भी  है।
       लेकिन बेकन ने जो कहा उसे हम भी मानें यह जरूरी तो नहीं! सूत्रात्मक (aphoristic)शैली में लिखे अपने निबंधों में बेकन ने ऐसी कई बातें कही हैं जिनका पालन खुद उन्होंने नहीं किया। बेकन एक अन्य विचारक एलेक्ज़ेंडर पोप के शब्दों में चतुरतम के साथ-साथ क्षुद्रतम(wisest and meanest of mankind) भी थे। उन्हें राज्य द्वारा दंडित भी किया गया था। तो फिर हम ही क्यों मानें उनकी बात? हम बात भले ही करें पूरे हिंदुस्तान की पर सुनते हैं सिर्फ आलाकमान की।
     अधिवेषणों में गांधी के नाम पर पहने जाने वाली खद्दर की टोपी को पहने गांधी जी का कोई चित्र मैंने तो आज तक कहीं नहीं देखा। तो फिर हमारे मनमोहन जी से ही क्यों अपेक्षा रखी जाए कि वे 79 मंत्रियों वाला जंबो मंत्रिमण्डल का बोझ देश की जनता पर न डालें। जो जनता टू जी से लेकर कोयला खदान के घोटाले तक और महँगे पेट्रोल से लेकर हिमालयीन जड़ी-बूटियों की तरह दुर्लभ होते जा रहे गैस सिलेंडरों की कीमतों के बोझ को सह कर भी जिंदा है वह क्या बाईस नए मंत्रियों का बोझ नहीं सहन कर सकती !
       मंत्रियों की तादाद और दर्ज़े का संबंध अब राज्य की आबादी से जुड़ा मुद्दा भी है। चाहें तो चीन का उदाहरण देख लें जहाँ हर सांसद उपमंत्री के दर्ज़े का होता है। मोरारजीभाई के प्रधानमंत्री काल में चरणसिंह उपप्रधानमंत्री थे। एक बार म.प्र. में दो उपमुख्यमंत्री थे। विद्रोहियों व असंतुष्टों का स्वागत करने की हमारी प्राचीन परंपरा रही है। विभीषण ने लंकेश से विद्रोह किया, पुरस्कार में पाया लंका का राज सिंहासन ! म.प्र. में अर्जुनसिंह के समय कुछ विधायक असंतुष्ट हुए और पाया निगमों व मण्डलों का अध्यक्ष पद ! अब राजनीति में आए हैं, लाखों रुपए खर्च कर चुनाव लड़ा है, तो क्या खाली-पीली सांसद या विधायक बने रहने के लिए ! फिर जिंदा क़ोमें तो वैसे भी पाँच साल इंतजार नहीं कर सकतीं !      
      मैं डॉ. मनमोहनसिंह के मनमोहक मंत्रिमण्डल के विराट स्वरूप के आगे नतमस्तक हूँ !                                            ***    

                               
                             100, रामनगर एक्स्टेंशन, देवास
455001    

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