Wednesday 2 October 2013

व्यंग्य (नईदुनिया, 26.09.13)
                   बापू की जेल यात्रा
                               ओम वर्मा
                                   om.varma17@gmail.com      
“बापू की जेल यात्रा पर निबंध लिखो।“ गुरुजी ने उधम मचाते बच्चों को कुछ काम देने के उदेश्य से ब्लैक बोर्ड पर लिखा। लिखकर कुर्सी पर बैठे ही थे कि सारे विद्यार्थी खट से लिखने बैठ गए। गुरुजी को अपने शिष्यों पर गर्व हो आया। वर्ना शिक्षक बनने के बाद से हर साल गुरुः ब्रम्हा, गुरुः विष्णु ...” सुनते सुनते उनके कान पकने लग गए थे और शाल श्रीफल से घररने लग गया था।
     मगर जैसे चुनाव के बाद कोई दल वाले प्रारंभिक रुझान में स्पष्ट बहुमत आता दिखने पर टीवी टाक शो में दहाड़ना शुरू कर देते हैं और रुझान पलटते ही उनकी सारी खुशी काफ़ूर हो जाती है कुछ वैसे ही इन मास्टरजी की क्षणिक खुशियों पर भी तुषारापात हो गया। हुआ यूँ कि सारे बच्चों ने निबंध में जो लिखा था उसका लुब्बो-लुबाब कुछ यूँ है कि “एक फलां फलां बापूजी पर एक नाबालिग कन्या ने दुराचार का आरोप लगाया है जिस कारण वे कानून की फलां फलां धारा के तहत और नए नए पोस्को कानून के पहले शिकार के रूप में जोधपुर के बैकुंठधाम...आय मीन जेल में बंद हैं।“ हालांकि भाषा सबकी अलग अलग थी मगर मजमून लगभग एक जैसा था...जैसे किसी ने लिखा कि वे जोधपुर में ध्यानमग्न हैं, किसी ने लिखा एकांतवास पर हैं और किसी ने लिखा कि जोधपुर जेल में सत्संग करने गए हैं। किसी ने लिखा नारी जगत का कल्याण करने गए हैं और किसी ने लिखा कि किसी कन्या की प्रेत-बाधा दूर करने गए हैं। 
     बहरहाल बच्चों के शब्द गुरुजी के सामने राजधानी एक्सप्रेस की तरह गुजरने लगे और वे किसी पुल की तरह थरथराते हुए मुख से कभी नारायण नारायण और कभी हरिओम हरिओम बड़बड़ाने लगे। पेट्रोल- डीजल की कीमतों का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों और मोदी के नाम पर बार बार उखड़ते रहने वाले  पितृ पुरुष आडवाणी की तरह गुरुजी का क्रोध भी शीघ्र ही शांत हो गया। गायब फाइलों का ठिकाना समझाते महामात्य की तरह फिर वे बोले, “अरे बच्चों, ये तुमने क्या लिख डाला ? मैंने तुम्हें बापू की जेल यात्रा ...
     बापू जी की जेल यात्रा पर ही तो लिखा है गुरुजी।“ एक तिलकधारी विद्यार्थी ने बीच में ही गुरुजी की बात काटते हुए कहा। गुरुजी ने अपना माथा ठोकते हुए कहा, अरे मूर्खों! मैंने तुम्हें गुजरात वाले बापू की जेल यात्रा पर लिखने को कहा था।“
     “अरे गुरुजी अपुन बी तो गुजरात वाले पेईSSज़ लिखेला है।“ एक टपोरीनुमा विद्यार्थी की इस बात पर गुरुजी का भेजा सचमुच में आउट हो गया। “अरे नालायकों... मैं तो उस महापुरुष की बात कर रहा हूँ जो पुणे की यरवड़ा जेल...”
     “तो सीधे सीधे बोलो ना कि संजय दत्त पे लिखना था ...!” एक पहलवान टाइप बच्चे ने फिर बात काटी। अब तो गुरुजी के सब्र की गांधीगिरी भी सेंसेक्स  की तरह धड़ाम से नीचे आ गिरी थी। उन्हें खुद अपने पढ़ाए उस पाठ पर शक़ होने लगा कि कहीं उस दिन महात्मा गांधी की जीवनी पढ़ाने में उनसे एक बापू की स्टोरी में दूसरे बापू की स्टोरी मिक्स करने जैसी कोई चूक तो नहीं हो गई।
     शीघ्र ही गुरुजी की समझ में सारी बात आ गई। उनके जहन में उनके द्वारा सत्य के प्रयोग में पढ़े गए और फिल्म डिवीज़न की न्यूज़ रील में देखे गए बापू थे जबकि बच्चों के दिमाग में हाल ही में टीवी चैनलों के प्राइम टाइम पर छाए रहे बापू थे। उन बापू की लीला अंग्रेज़ नहीं समझ पाए थे और इनकी लीला इनके भक्तों को समझने में भी दस बारह साल लग गए। 
     जय रामजी की बोलना पड़ेगा ! 
                                                               ***
100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001

मो. 09302379199 

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