विचार
वंशवाद के ताबूत में एक और कील!
ओम वर्मा om.varma17@gmail.com
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हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में व
इससे पहले सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की जो गत हुई है उसकी कल्पना किसी
कांग्रेसी या जी हुज़ूरी के शोर में डूबे गांधी परिवार ने शायद ही कभी की होगी।
गांधी परिवार को लेकर कांग्रेसियों की सोच कुछ ऐसी है कि ‘तेरे नाम से शुरू, तेरे नाम पे खतम’ ! पार्टी अध्यक्ष से लेकर उपाध्यक्ष और संसदीय दल
की अध्यक्ष तक गांधी ही गांधी...! 1999 में शरद पवार संगमा व तारीक अनवर के साथ मिलकर
सोनिया गांधी के विदेशी मूल के आधार पर अलग होकर भी पंद्रह साल तक साथ चलते रहे
हैं। एनडीए ने नरेंद्र मोदी को जब पीएम उम्मीदवार के रूप में सामने रख कर बढ़त ले ली थी तब यूपीए सिर्फ संवैधानिक प्रावधान की
दुहाई देता रह गया था कि पीएम सांसदों के द्वारा चुना जाता है। मगर वे यह भूल गए
थे कि किसी को पीएम उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ने पर कोई कानूनी रोक भी तो नहीं
है। यह भी सभी जानते थे कि जयपुर सम्मेलन में राहुल गांधी की पार्टी उपाध्यक्ष के
रूप में नियुक्ति ही इसलिए की गई थी कि भविष्य में उनका राजतिलक किया जा सके। जब
भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का दावेदार घोषित किया था तब यह कहने की हिम्मत
किसी कांग्रेसी में नहीं थी कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी को लाना ‘निर्बल से लड़ाई बलवान की ’ वाली बात साबित हो जाएगी। और तो और जैसी कि अब
माँग उठने लगी है, राहुल
की तुलना में प्रियंका को लाना शायद ज्यादा फलदायी हो सकता था, यह बात कोई भी कांग्रेसी न तो समझ सका न 10, जनपथ को समझा सका। समझाता भी कैसे, जहाँ एक ओर मनु सिंघवी सरीखे बड़े वफादार जब यह स्थापित करने
पर तुले थे कि “राहुल तो जन्मजात नेता हैं ”, एक वरिष्ठ नेता तो राहुल जी को जीवन में एक बार
पीएम के रूप में देखने के लिए ही जीवन जी रहे हैं, वहीं कुछ लोग सोनिया को देश की माँ बताकर उनके
एक इशारे पर झाड़ू तक लगाने के लिए तैयार बैठे थे। और तो और मासूमियत की हद तो तब
हो गई थी जब पिछले दिनों लोकसभा में सोते हुए राहुल गांधी का ‘चिंतन’ करते हुए बताकर बचाव किया गया था।
लोकसभा चुनावों की तरह विधानसभा के इन चुनावों
में भी जहाँ नरेंद्रभाई एण्ड कं. अपनी सभा व मीडिया में स्थानीय सरकारों की नाकामियों को बड़ी
शालीनता से उठाते रहे वहीं दोनों राज्यों में शासक दलों की स्थिति इतनी दयनीय थी
कि वे अपनी छोटी-मोटी उपलब्धियों को भी जनता के जहन में नहीं उतार सके! गुजरात के
2002 एपिसोड का मुद्दा तो लोकसभा चुनाव में ही पिट चुका था। नरेंद्र मोदी को
अमेरिका में बापू का नाम मोहनदास की जगह मोहनलाल बोल देने पर पानी पी पीकर कोसने वाले
काँग्रेसी मित्रों को राहुल द्वारा पृथ्वीराज चौहान के विधानसभा भंग होने के कारण
त्यागपत्र देने के बाद भी उन्हें सीएम बताने की बात पर यूँ चुप थे मानो उन्हें
साँप सूँघ गया था।
मोदी पर पुस्तकें आना, विदेशी अखबारों में उनके राज्य के विकास की
प्रशंसा होना और तभी मनमोहनसिंह को कमजोर पीएम बताने वाली दो किताबें आना व
अमेरिका के मेडिसन गार्डन में उनका भाषण अंतत: राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी में
वामन व विराट की इमेज बनाते चले गए।
महाराष्ट्र की जनता ने यह साबित कर दिया है कि
देश में उग्रवादी तेवर दिखाना, टोल नाकों पर उपद्रव करना व अन्य प्रांत से रोटी कमाने आए लोगों का
तिरस्कार जैसे मुद्दों की काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती। साथ ही
महाराष्ट्र में मुस्लिम समाज ने काँग्रेस व एनसीपी के बजाय जो विश्वास भाजपा में दिखाया है उसे सिर्फ संपूर्ण समुदाय में
सुरक्षा का भाव जागृत करके ही रिसिप्रोकेट किया जा सकेगा। ***
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100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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