Wednesday 22 April 2015

मेरा कुछ सामान रह गया है...!




     मेरा कुछ सामान रह गया है...!
                                               ओम वर्मा
                                     om.varma17@gmail.com
न 1971 में आई जेमिनी की फिल्म लाखों में एक नायक है भोला यानी मेहमूद जो अनाथभोला भालाअल्प शिक्षित व बेरोजगार है। एक चाल में सीढ़ियों के नीचे उसका आवास। भोला चाल के सभी परिवारों के घरेलू कामकाज निपटाता है और बदले में सब दया करके उसे भोजन दे देते हैं। चाल में रहने वाली लड़की गौरी जो भोला से प्यार करती है उससे रहमो-करम पर चल रही भोला की जीवन दशा देखी नहीं जाती। तभी एक दिन सिंगापुर से एक करोड़पति व्यक्ति अपने पुत्र भोला को खोजता हुआ आता है। जैसे ही चाल वालों को मालूम पड़ता है कि भोला रोड़पति से करोड़पति बनने वाला है और उनमें से प्रत्येक को एक-एक लाख रु. मिलने वाले हैंसभी का भोला के प्रति व्यवहार बदल जाता है। उससे कोई काम नहीं करवाताकोई उसे पौष्टिक पेयकोई अलार्म घड़ी, कोई टेबुल लैंपकोई सूटकेस और कोई टेबुल फैन  लाकर भेंट कर देता है। बाद में जैसे ही सभी को यह मालूम पड़ता है कि यह गौरी का चाल में ही रहने वाले ट्रक ड्राइवर शेरसिंह यानी प्राण के साथ मिलकर बनाया गया प्लान था जिसके तहत प्राण का क्लीनर जग्गा सूट बूट पहनकर मेहमूद का नकली करोड़पति बाप बनकर आया था और सबको लखपति बनने का ख्वाब दिखाकर चला गया था।
     भोला के फिर से जैसे थे” की स्थिति में पहुँचते ही सबकी नजरें फिर बदल जाती है। सब अपने द्वारा दी गई गिफ़्टें अपने अपने तर्क देकर वापस उठा ले जाते हैं। भोला ‘पुनः मूषको भवः’ वाली स्थिति में लौट आता है।
     यही हाल आज ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल का है। पार्टी बनी तो कुछ लोगों को उनमें जादूगर मैंड्रेक नजर आने लगा जिसके छड़ी घुमाते ही दिल्ली में रामराज्य आ जाएगा,दिल्ली वाले पड़ौसी राज्यों को बिजली और पानी देना शुरू कर देंगे। लिहाजा किसी ने एक करोड़ रु. चंदा दिया तो किसी ने कार दी। किसी ने पार्टी का लोगो बनाकर दिया और कइयों ने पार्टी का काम करने के लिए टीवी चैनल से लेकर आईटी सेक्टर की अपनी बड़ी बड़ी नौकरियाँ छोड़ दीं। मगर जो केजरीवाल कल अथाह जनता के बीच में इंसान से इंसान का हो भाईचारायही पैगाम हमारा” गाकर सबको कोरस में गाने पर प्रेरित कर देते थेवे आज अकेले ‘बिछड़े सभी बारी बारी...” गाने को मजबूर हैं। फिल्म में भोला से वापस ले ली गई गिफ़्टों की तरह केजरीवाल से भी वसूली अभियान शुरू हो गया है। कार माँगी जा  चुकी है,बौद्धिक अधिकार संपदा कानून के तहत पार्टी का लोगो वापस माँगा जा रहा है। सुना है कि जिन्होंने झाड़ू भेंट कर कई गोदाम भर दिए थे वे अपनी झाड़ूजिन्होंने दस-दसबीस बीस हजार देकर डिनर किया था वे भोजन के तात्कालिक मूल्यानुसार पैसे काटकर बाकी पैसे माँगने के लिए उपभोक्ता फोरम या चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाने का सोच रहे हैं।
     वैसे आज के युग में भेंट लेना व देना दोनों खतरे से खाली नहीं है। मोदी सर को भेंट में मिला कोट उन्हें दिल्ली चुनाव में ताश के चौकड़ी वाला कोट (एक हाथ भी न बनने पर पराजित के लिए कहा जाने वाला फ्रेज) साबित हुआ। वैसे ‘भेंट’ या ‘दान’ में दी गई वस्तु के बारे में जहाँ तक खाकसार को ज्ञान हैउसे वापस नहीं माँगा जा सकता या कहें कि नहीं माँगा जाना चाहिए। यहाँ कोई ‘राइट टु रिकाल’ लागू नहीं होता। लेकिन जहाँ आस्थाएँ भंग होने लगती हैं नई परंपराओं का जन्म भी वहीं होता है क्योंकि न तो आज दान लेने वालों में कोई महाराणा प्रताप है और न ही देने वालों में कोई भामाशाह! लोग आप के दरवाजे पर खड़े हैं और पुकार रहे हैं, “मेरा कुछ सामान रह गया है...लौटा दो ना...!     
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